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मिलावटी खाद्य पदार्थों की जांच के लिए एक ही लैब, नहीं हैं विशेषज्ञ, जांच हो रही प्रभावित, झारखंड हाईकोर्ट ने जतायी चिंता

झारखंड हाईकोर्ट ने मिलावटी खाद्य पदार्थ को लेकर गंभीर टिप्पणी की है और चिंता जतायी है. हाईकोर्ट ने कहा है कि मिलावटी खाद्य पदार्थ की बिक्री का मामला गंभीर बात है.

रांची, सतीश कुमार: मिलावटी खाद्य पदार्थों की जांच के लिए राज्य की एकमात्र राज्य खाद्य जांच प्रयोगशाला लाचार बन कर रह गयी है. रांची के नामकुम स्थित राज्य खाद्य जांच प्रयोगशाला में मैनपावर की कमी की वजह से जांच प्रभावित हो रही है. विशेषज्ञों की कमी और नियमित केमिकल्स, ग्लास की आपूर्ति नहीं होने की वजह से मिलावटी खाद्य पदार्थों के सभी पारा मीटर की जांच नहीं हो पा रही है. यहां पर बेहतर जांच के लिए 15 विशेषज्ञों समेत 19 पद स्वीकृत हैं, लेकिन सभी पद रिक्त पड़े हैं. फिलहाल, जांच के लिए मात्र पांच अस्थायी कर्मी कार्यरत हैं. इसमें एक फूड एनालिस्ट, एक लैब असिस्टेंट व तीन अटेंडेंट शामिल हैं. एनएबीएल की मान्यता मिल जाने के बावजूद मैनपावर के अभाव में लैब का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है. फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्डस अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) के प्रावधान के अनुसार मिलावटी खाद्य पदार्थों की जांच 14 दिनों में हो जानी चाहिए, लेकिन इसमें महीनों लग जाते हैं. इसके बावजूद सभी प्रकार के पारा मीटर की जांच नहीं हो पाती है. इधर, लैब को मिली एनएबीएल की मान्यता अप्रैल 2024 में समाप्त हो रही है.

फूड एनालिस्ट, माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट समेत विशेषज्ञ के सभी 15 पद रिक्त
राज्य खाद्य जांच प्रयोगशाला में जांच के लिए सभी आधुनिक उपकरण हैं. परंतु लैब में बेहतर जांच की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए विशेषज्ञ नहीं हैं. विशेषज्ञों के लिए 15 पद स्वीकृत हैं. इसमें फूड एनालिस्ट के दो, माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट के दो सीनियर साइंटिफिक अफसर के दो, साइंटिफिक अफसर के सात व लैब असिस्टेंट के दो पद शामिल हैं. इसकी वजह से माइक्रोबॉयोलाजी के साथ-साथ सब्जियों के पेस्टिसाइट्स समेत कई महत्वपूर्ण जांच नहीं हो पा रही है.

झारखंड : मिलावटी खाद्य पदार्थ खाकर लोग हो रहे बीमार, हाइकोर्ट ने कहा सरकार को नहीं है चिंता

हाईकोर्ट ने जतायी चिंता
झारखंड हाईकोर्ट ने मिलावटी खाद्य पदार्थ को लेकर गंभीर टिप्पणी करते हुए चिंता जतायी है. अदालत ने कहा है कि मिलावटी खाद्य पदार्थ की बिक्री गंभीर बात है. मिलावटी खाद्य पदार्थों का सेवन कर लोग बीमार हो रहे हैं. लेकिन राज्य सरकार को कोई चिंता नहीं है. अदालत ने पूछा है कि लोगों को नुकसान से बचाने के लिए क्या कदम उठाये गये हैं? साथ ही राज्य में कम से कम चार फूड लैब बनाने की बात कही है. इधर, राज्य में मिलावटी खाद्य पदार्थों की जांच के लिए एक ही राज्य खाद्य जांच प्रयोगशाला है. वह भी मैनपावर की कमी का दंश झेल रहा है. फूड सेफ्टी के सभी पारा मीटर की जांच नहीं हो पा रही है.

स्थायी और अनुबंध पर बहाली को लेकर चल रही प्रक्रिया
लैब के संचालन को लेकर जेपीएससी के माध्यम से दो माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की गयी है. वहीं, फूड एनालिस्ट की नियुक्ति के लिए एफएसएसएआइ के अनुसार नियमावली में संशोधन की प्रक्रिया चल रही है. ऐसे में इन पदों पर स्थायी नियुक्ति का मामला फंसा हुआ है. इधर, स्वास्थ्य विभाग की ओर से आउटसोर्स के माध्यम से अनुबंध पर सात एनालिस्ट की नियुक्ति की प्रक्रिया भी चल रही है. इनकी सेवा मोबाइल फूड वैन में ली जानी है.

स्ट्रीट व फास्ट फूड की आदत बीमारियों को दे रही दावत
आज के दौर में लोग खाने में स्ट्रीट फूड और फास्ट फूड को काफी पसंद कर रहे हैं. लोगों ने जाने-अनजाने में इसे अपने खान-पान का हिस्सा बना लिया है. शहर के होटलों और सड़कों पर ठेले में कई खाद्य पदार्थ बिना किसी जांच पड़ताल के धड़ल्ले से बिक रहे हैं. इनका जायका अच्छा लगता है, लेकिन ये हमारी और आपकी सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं. जानकारी के अनुसार, चाउमिन से लेकर मंचूरियन, पनीर चिली और फ्राइड राइस तक सेहत के लिए खतरनाक हो सकते हैं. चाउमिन से लेकर कई चाइनीज व्यंजनों में स्वाद बढ़ाने के लिए अजीनोमोटो का इस्तेमाल किया जाता है. अजीनोमोटो को मोनो सोडियम ग्लूमेट यानी एमएसजी भी कहते हैं. यह सफेद रंग का एक तरह का नमक जैसा होता है. अधिकांश चाइनीज व्यंजन, सूप और सलाद में अजीनोमोटो का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अधिक सेवन से कई तरह की परेशानी हो सकती है.

घी से लेकर पनीर और मसाले तक में मिलावट
बाजार में घी से लेकर पनीर और मसाले में भी मिलावट की जा रही है. लेकिन इसे देखनेवाला कोई नहीं है. मिलावटी घी में 25 प्रतिशत घी और बाकी मात्रा में पाम ऑयल और घी का सुगंध लाने के लिए एसेंस मिलाया जाता है. यह आपको पूरी घी की तरह लगेगा. यही नहीं, पनीर के नाम पर सिंथेटिक पनीर बिक रहा है. यह सही पनीर होता ही नहीं है. इसका स्वाद फीका लगता है, जबकि घर पर तैयार पनीर थोड़ा हार्ड होता है. इसमें थोड़ी घी की मात्रा भी निकलेगी. वहीं खोवा के नाम पर भी सिंथेटिक खोवा मिल रहा है.
ऐसे पहचानें मिलावटी पनीर :
-चिकनाई नहीं होने से पनीर खुरदरा होगा.
-फ्राइ करने के बाद पनीर रबर की तरह हो जायेगा.
-हाथ से मसलने पर पनीर टूटता चला जायेगा.

हल्दी और मिर्च पाउडर में हो रही मिलावट
बाजार में हल्दी और मिर्च पाउडर में भी मिलावट हो रही है. इसका इस्तेमाल कई जगहों पर हो रहा है. हल्दी पाउडर में चावल की खुदी के साथ रंग मिलाया जाता है. यही नहीं, लाल मिर्च पाउडर में भी रेड कलर मिलाया जाता है, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित होता है.

रेगुलर जंक फूड से मोटापा, बीपी और हार्ट की बीमारी
इन दिनों लोग रेगुलर जंक फूड का भी सेवन बड़ी मात्रा में कर रहे हैं. जिससे उन्हें कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. पैकेज्ड फूड में फैट, तेल और नमक की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो बीमारी बढ़ा रही है. जंक फूड के कारण लोगों को मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट की परेशानी, दांत की समस्या, कब्ज, सर दर्द, शुगर, स्किन की समस्या जैसे कील मुहांसे, थकान, डिप्रेशन व घबराहट की समस्या आदि देखने को मिलती है.

समय से पहले बूढ़ा बना रहे जंक फूड
जंक फूड आपको उम्र से पहले बूढ़ा बनाकर नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए यह जरूरी है कि इन्हें अपनी रेगुलर डाइट से बाहर करें. इनमें वसा और चीनी की अधिकता होती है तथा मोनोसोडियम ग्लूटामैट (एमएसजी ) का उपयोग किया जाता है. इसलिए फास्ट फूड खाते ही सिर दर्द जैसी समस्या और अन्य लक्षण नजर आने लगते हैं. जंक फूड में अधिक मात्रा में केमिकल्स जैसे कि मोनोसोडियम ग्लूटामेट, फ्लेवर, कलर, एसिडिटी व प्रिजर्वेटिव्स मोटापे का कारण बन सकते हैं. साथ ही रक्तचाप से जुड़ी समस्या और हृदय रोग तथा मधुमेह का जोखिम होता है. जंक फूड आवश्यक पोषक तत्व जैसे- विटामिन, प्रोटीन और फाइबर प्रदान नहीं करते.

मिलावटी खाद्य पदार्थों का हार्ट का असर
जेनरल फिजिशियन डॉ संजय सिंह ने कहा कि खाद्य पदार्थों में मात्रा को बढ़ाने के लिए मिलावट की जाती है. सरसों के तेल में नकली तेल मिला दिया जाता है, जिससे लोगों के हार्ट पर बहुत बुरा असर पड़ता है. इससे कई लोगों की मृत्यु तक हो गयी है. मिलावटी चीजें खाने से शरीर में कई तरह के लक्षण भी दिखते हैं. इसमें सांस और पैर फूलना शामिल हैं. अगर खाद्य पदार्थों में मिलावट होती है, तो कुछ का लांग टर्म में और कुछ का शॉर्ट टर्म में शरीर में असर पड़ता है. यह लोगों को अपंग बना देता है. इसलिए मिलावट करनेवाले लोगों को सोचना चाहिए कि आप जो काम कर रहे हैं, वह कितना अमानवीय है. मिलावटी खाद्य पदार्थ का सेवन करने से लोगों को हमेशा के लिए लकवा हो सकता है.

आंत, लिवर और किडनी पर असर
जेनरल फिजिशियन डॉ विद्यापति ने कहा कि मिलावटी खाद्य पदार्थों के नियमित उपयोग से जहरीले तत्व रोज हमारे शरीर में जा रहे हैं. खाना हमारी आंत में जाता है. इसका पहला प्रभाव हमारी आंत पर पड़ता है. मिलावटी खाद्य पदार्थ पचते नहीं हैं. इससे एसिडिटी ज्यादा होती है. इससे अल्सर होने के चांस ज्यादा होते हैं. मिलावटी भोजन सबसे पहले आंत को नुकसान पहुंचाता है. उसके बाद लिवर को डैमेज करता है. फिर यह वेस्ट मटेरियल हमारी किडनी को डैमेज करता है. इन सब चीजों के डैमेज होने से वेस्ट मटेरियल ठीक से नहीं निकल पाते हैं. इस तरह से शरीर में आंत, लिवर, किडनी और ब्रेन का सर्किल तैयार हो जाता है. इससे शरीर बुरी तरह प्रभावित होता है. इससे बचने की जररूत है.

स्वस्थ और पौष्टिक आहार खायें
डायटीशियन सरोज श्रीवास्तव ने कहा कि फास्ट फूड खाना कभी भी सही नहीं माना गया है. खाने का कभी मन भी हो, तो इसकी मात्रा एकदम सीमित रखें तथा हफ्ते में एक बार ही लें. साथ ही घर में फ्रेश मटेरियल्स से बनायें, क्योंकि बाहर के खाने में एक ही तेल को बार-बार प्रयोग करते हैं, जो शरीर को नुकसान पहुंचाता है. स्वस्थ आहार का मतलब ऐसे खाद्य पदार्थों से है, जो विटामिन, कैल्शियम और प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं तथा आपको सेहतमंद और तंदरुस्त रखते हैं. जैसे हरी सब्जियां और फलियां, फल, साबुत अनाज, दही, पनीर, अंडा, दाल, सलाद, सूप, दूध, हर्बल टी, ड्राई फ्रूट्स जैसे-बादाम, काजू, किशमिश, मूंगफली, मखाने, मुरमुरे, उबले चने आदि. मांसाहारी लोग मछलियां और चिकन शामिल कर सकते हैं. तला भूना खाना, मीठे खाद्य पदार्थ , जंक फूड्स, कैफीन, चीज, बटर, मेयोनीज़, सॉफ्ट ड्रिंक्स अथवा कोल्ड ड्रिंक्स , डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ , अल्कोहल जैसे खाद्य पदार्थ बिल्कुल नहीं खायें. स्वस्थ भोजन के साथ-साथ पानी खूब पीयें.

बच्चों में मोटापा अच्छा नहीं, काउंसलिंग तक की आ रही नौबत
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ बच्चों के मोटापे का प्रमुख कारण बन रहे हैं. अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स का सेवन शरीर और मस्तिष्क के काम करने के तरीके को बदल सकता है. कैंसर के बढ़ते जोखिम के बीच यह सबसे बड़ी चिंता का कारण है. उच्च वसा व चीनी वाले खाद्य पदार्थ, पिज्जा, बर्गर, बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक्स और स्नैक्स के अलावा ज्यादातर लोगों को अब कुछ पसंद ही नहीं आ रहा. इससे जुड़े विज्ञापन बाल मन पर गहरा प्रभाव उत्पन्न कर रहे हैं. ऐसे में बच्चों को काउंसलिंग की सलाह दी जा रही है. इस संबंध में प्रभात खबर ने स्वास्थ्य विभाग के बाल रोग चिकित्सक डॉ विनोद कुमार से लंबी बातचीत की.

कामकाजी लोगों के बच्चों के साथ समस्या अधिक
चिकित्सक डॉ विनोद ने बताया कि मौजूदा वक्त में पैरेंट्स के पास समय का अभाव है. बच्चों को बहलाने के लिए जल्दी ही जंक फूड सौंप देते हैं, इससे उनमें एक खास तरह की प्रवृत्ति जन्म लेने लगती है. जंक फूड में कार्बोहाइड्रेट से भरपूर उच्च वसा वाले उत्पाद शामिल होते हैं. सफेद ब्रेड, चिप्स, पिज्जा, बर्गर और इस तरह के कई बेकरी प्रोडक्ट्स में उच्च मात्रा में फैट होता है. इन उत्पादों में सैचुरेडेट फैट की मात्रा अत्यधिक होता है.

खून की नली में अर्ली एज में जमा हो रहा फैट
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों या जंक फूड में सैचुरेटेड फैट की मात्रा काफी ज्यादा रहती है, जो खून की नली में अर्ली एज में जमा होता जाता है. यह बच्चों की गतिविधि को कम या प्रभावित करता है. जंग फूड के सेवन और मोटापे से बच्चों को अर्ली एज में गैस-एसिडिटी, डायबिटीज और ब्लड शुगर अपनी चपेट में ले रहे हैं. पांच साल से कम बच्चों को एंडोस्कोपी कराना पड़ा है.

छोटी उम्र में देनी पड़ रही एसिडिटी की दवा
बच्चों को पीपीआइ गैस की दवा लंबे समय तक देनी पड़ रही है. छोटे-छोटे बच्चे एसिडिटी की दवाइयां खाते मिले, जो आमतौर पर 40-50 की उम्र के लोग खाते हैं. जंक फूड आमतौर पर आपको लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस नहीं कराता है. इसका मतलब है कि बच्चों को जल्द ही फिर से भूख लगने लगती है.

ऑनलाइन फूड डिलीवरी सिस्टम से उपलब्धता सहज
ऑनलाइन फूड डिलीवरी सिस्टम का चलन बढ़ा है. ऐसे में फास्ट फूड और स्नैक्स की सुविधा भी एक प्रमुख कारक हैं, खासकर जब लोगों के पास समय की कमी होती है. कभी-कभी लोग थका हुआ, आलस, तनावग्रस्त या उदास महसूस करने पर आरामदायक भोजन के रूप में जंक फूड का सहारा लेते हैं. ऐसे में बच्चों के पास यह आसानी से पहुंच जाता है.

बचपन में मोटापे के संकट के खिलाफ ज्यादा सतर्क होकर लड़ना होगा. स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए बेहतर खान-पान की बेहतर आदतों को शामिल करने के साथ ही सक्रिय रूप से काम करने की जरूरत है. छोटे बच्चों की गिरती सेहत बेहतर बनाने के लिए स्कूलों के अलावा घरों में मां-बाप और परिवार को भी भरपूर सहयोगी की भूमिका में आना होगा. डॉ विनोद कुमार, बाल रोग विशेषज्ञ सह क्षेत्रीय उपनिदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं, दक्षिणी छोटानागपुर

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