Sharad Purnima Vrat Katha: शरद पूर्णिमा का पावन पर्व आज 06 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. शरद पूर्णिमा के लिए अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का होना आवश्यक है. इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने और उसके बाद दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके अतिरिक्त, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में खीर रखने की परंपरा भी है. यदि आप भी इच्छित फल प्राप्त करना चाहते हैं, तो शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा से पूजा करें. इसके साथ ही, पूजा के दौरान इस व्रत की कथा अवश्य पढ़ें.
शरद पूर्णिमा व्रत कथा
एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक नगर में एक साहुकार निवास करता था. उसके दो पुत्रियाँ थीं, जो पूर्णिमा के उपवास का पालन करती थीं. किंतु, साहुकार की छोटी पुत्री इस उपवास को अधूरा छोड़ देती थी, जबकि बड़ी पुत्री हमेशा श्रद्धा और समर्पण के साथ इस व्रत का पालन करती थी. जब दोनों का विवाह हुआ, तो बड़ी पुत्री ने विवाह के बाद भी अपनी आस्था के साथ उपवास जारी रखा. इस व्रत के फलस्वरूप, उसे एक सुंदर और स्वस्थ संतान प्राप्त हुई. वहीं, छोटी पुत्री को संतान प्राप्ति में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिससे वह बहुत चिंतित रहने लगी. इस समस्या के समाधान के लिए, साहुकार की छोटी बेटी और उसके पति ने ब्राह्मणों को बुलाकर अपनी कुंडली दिखाई और जानना चाहा कि संतान प्राप्ति में समस्या का कारण क्या है.
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विद्वान पंडितों ने बताया कि उसने पूर्णिमा के व्रत को सही तरीके से नहीं किया, इसलिए उसके साथ यह घटना घटित हो रही है. ब्राह्मणों ने उसे इस व्रत की विधि समझाई. इसके बाद उसने विधि अनुसार व्रत किया. इस बार उसकी छोटी बेटी का जन्म तो हुआ, लेकिन वह कुछ दिनों के बाद ही जीवित रह सकी. उसने अपनी मृत संतान को पीढ़े पर लिटाकर कपड़ा रख दिया और अपनी बहन को बुलाया, उसे उसी पीढ़े पर बैठने के लिए कहा जिस पर छोटी बहन की मृत संतान थी. जैसे ही बड़ी बहन पीढ़े पर बैठने लगी, बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी. बड़ी बहन को यह सुनकर आश्चर्य हुआ और उसने कहा कि क्या तुम अपनी संतान की मृत्यु का दोष मुझ पर लगा रही हो? छोटी बहन ने उत्तर दिया कि यह तो पहले से ही मरा हुआ था, आपके प्रभाव से इसके प्राण वापस आ गए. इसके बाद शरद पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया.

