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हमारा नाकुछपना

जब कोई हमारी खुशामद करता है, हमें अपमानित या दुखी करता है या हमें चोट पहुंचाता है या प्यार जताता है, तो इन सब बातों को हम संग्रह क्यों कर लेते हैं? इन अनुभवों को ढेर और इनकी प्रतिक्रियाओं के अलावा हम क्या हैं? हम कुछ भी नहीं हैं अगर हमारा कोई नाम ना हो, […]

जब कोई हमारी खुशामद करता है, हमें अपमानित या दुखी करता है या हमें चोट पहुंचाता है या प्यार जताता है, तो इन सब बातों को हम संग्रह क्यों कर लेते हैं? इन अनुभवों को ढेर और इनकी प्रतिक्रियाओं के अलावा हम क्या हैं? हम कुछ भी नहीं हैं अगर हमारा कोई नाम ना हो, किसी से जुड़ाव ना हो, कोई विश्वास या मत ना हो. यह ना कुछ होने का भय ही हमें बाध्य करता है कि हम इन सब तरह के अनुभवों को इकट्ठा करें, संग्रह करें. और यह भय ही, चाहे वो जाने में हो या अनजाने में, यह भय ही है जो हमारी एकत्र करने, संग्रह करने की गतिविधियों के बाद हमें अंदर ही अंदर तोड़ने, विघटन और हमारे विनाश के कगार पर ले आता है.

यदि हम इस भय के सच के बारे में जान सकें, तो यह सत्य ही हमें इस भय से मुक्त करता है ना कि किसी भय से मुक्त होने के उद्देश्य से लिया गया कोई संकल्प. क्योंकि वाकई हम कुछ भी नहीं हैं. हमारा नाम और पद हो सकता है, हमारी संपत्ति हो सकती है, आपके पास ताकत और आप प्रसिद्ध भी हो सकते हैं, लेकिन इन सब सुरक्षा उपायों के बावजूद हम कुछ नहीं हैं.

आप इस नाकुछ होने, खालीपन से अनजान हो सकते हैं या आप सहज ही नहीं चाहते कि आप इस नाकुछपने को जानें, लेकिन ये हमेशा यहीं आपके पास ही, आपके अंदर ही होता है. आप इससे बचने के लिए चाहे जो कर लें. आप इससे पलायन के लिए चाहे कितने ही कुटिल उपाय कर लें, वैयक्तिक या सामूहिक पूजा-पाठ सत्संग कर लें, ज्ञान या मनोरंजन के द्वारा इससे बचने की कोशिश कर लें, लेकिन जब भी आप सोयें या जागें- हमारा नाकुछपना हमेशा यहीं होता है.

आप इस नाकुछ होने और इसके भय से केवल तभी संबंध बना सकते हैं, जब आप इससे बचाव या पलायन के प्रति बिना पसंद या नापसंद के जागरूक रह सकें. आप इससे किसी अलग या वैयक्तिक चीज की तरह नहीं जुड़े हैं. आप वो अवलोकनकर्ता नहीं हैं, जो इसे एक दूरी से इसे देख रहे हैं, लेकिन आपके बिना, जो कि सोच रहा है, अवलोकन कर रहा है यह नहीं है. आप और यह नाकुछपना एक ही है. आप और यह नाकुछ होना एक संयुक्त घटना है दो अलग-अलग प्रक्रम नहीं हैं.

जे कृष्णमूर्ति

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