बुढ़ापा को लेकर देश-विदेश की विभिन्न शोधशालाओं में गहन अनुसंधान कार्य चल रहे हैं. अधिकांश मामलों में देखा जाता है कि व्यक्ति की बायोलॉजिकल एज (कायिक आयु) उसकी क्रोनोलॉजिकल एज (मियादी आयु) से बढ़ी चढ़ी होती है. बुढ़ापा असमय क्यों आ धमकता है?
इन सभी बातों के सूक्ष्मता से अध्ययन के लिए ‘जरा विज्ञान’ अथवा ‘जेरानटोलजी’ नामक विज्ञान की शाखा की शुरुआत की गयी है, जिसमें वैज्ञानिक इस बात को खोजते हैं कि क्या इस स्थिति को कुछ काल तक टाला जा सकता है? किंतु ऐसा तभी संभव है, जब वैज्ञानिक इसके कारणों का पता लगा सकें. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि शरीर में जल्दी ही अशक्तता के लक्षण प्रकट होने का कारण शरीर कोशिकाओं में होनेवाली म्यूटेशन की प्रक्रिया है.
म्यूटेशन से प्रभावित कोशिकाएं फिर अपनी ही जैसी कोशिकाओं को जन्म देने लगती हैं, जिनकी क्रियाएं असामान्य होती हैं. फलत: शरीर में विपरीत लक्षण प्रकट होने लगते हैं. एक अन्य मत के अनुसार, ऐसा क्राॅस लिंकिंग से महत्वपूर्ण अणुओं के बीच बंधों का निर्माण हो जाता है. इन बंधों के कारण कोशिकाएं आगे अपना सहज स्वाभाविक क्रियाकलाप जारी नहीं रख पातीं और त्वचा, रक्त वाहिनियां कठोर बनने लगती हैं.
व्यक्ति के स्वयं के रहन-सहन, चिंतन-मनन एवं पर्यावरण प्रभाव के कारण ऐसा होता है. अचिंत्य चिंतन का दुष्प्रभाव आरंभ में तंत्रिका कोशिकाओं पर पड़ता है और बाद में फिर अन्य तंत्रों की कोशिकाएं प्रभावित होती चली जाती हैं. बुढ़ापे का एक अन्य कारण स्मरण शक्ति का लोप होना है.
इस पर वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे लोगों के तंत्रिका-तंतुओं में फंदे पड़ जाते हैं, जो बाद में तांत्रिकीय चकत्तों के रूप में प्रकट होते हैं. वैज्ञानिक जोविंग ने ध्यान प्रक्रिया का अध्ययन रक्त रसायनों पर किया. प्रयोग के अंत में वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इसके द्वारा शरीर के प्लाज्मा काटीसोल, प्लाज्मा प्रोलेक्टिन आदि रसायनों का स्तर घटाया जा सकता है. अंतत: वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है कि व्यायाम, सरल योगासन और ध्यान धारणा ही वह उपाय हैं, जो असमय बुढ़ापा से निजात दिला सकते हैं.
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य