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प्रेम उठे तो बांटना

प्रेम परमात्मा है, इसे बांटो! जब तुम्हारी झोली भर जाये, तो बांटना सीखो, क्योंकि जितना तुम बांटोगे, उतनी झोली भरती जायेगी. यह जीवन का अंतस का गणित बड़ा अनूठा है. बाहर की दुनिया में, बाहर के अर्थशास्त्र में तुम अगर बांटोगे, तो आज नहीं कल दीन-दरिद्र हो जाओगे. मुल्ला नसरुद्दीन ने एक भिखारी को किसी […]

प्रेम परमात्मा है, इसे बांटो! जब तुम्हारी झोली भर जाये, तो बांटना सीखो, क्योंकि जितना तुम बांटोगे, उतनी झोली भरती जायेगी. यह जीवन का अंतस का गणित बड़ा अनूठा है. बाहर की दुनिया में, बाहर के अर्थशास्त्र में तुम अगर बांटोगे, तो आज नहीं कल दीन-दरिद्र हो जाओगे. मुल्ला नसरुद्दीन ने एक भिखारी को किसी धुन-मग आकर पांच सिक्के दे दिया. मुल्ला मस्ती में था कि आज दिल देने का था. भीखारी को भी भरोसा नहीं आया.

उसने भी उलट-पुलट कर सिक्कों को देखा कि असली है कि नकली! फिर मुल्ला नसरुद्दीन की तरफ देखा. नसरुद्दीन ने भी उसे गौर से देखा. आदमी भला मालूम पड़ता है, चेहरे से सुशिक्षित, संस्कारी और कुलीन मालूम पड़ता है. कपड़े यद्यपि फटे-पुराने हैं, मगर कभी कीमती रहे होंगे. मुल्ला ने पूछा- यह तेरी हालत कैसे हुई? भिखारी हंसने लगा और कहा- यही हालत आपकी हो जायेगी. ऐसे ही मैं बांटता था. बाप तो बहुत छोड़ गये थे, मगर मैंने लुटा दिया. जब ऐसी हालत हो जाये, तो मेरे झोपड़े में आ जाना; वहां जगह काफी है.

इससे यह अर्थ निकलता है कि बाहर की दुनिया में अगर बांटोगे, तो घटता है. भीतर की दुनिया में नियम उल्टा है- रोकोगे तो घटेगा और बांटोगे तो बढ़ेगा. अध्यात्म का अर्थशास्त्र और है, गणित और है. तुम्हारे भीतर प्रेम उठे तो द्वार-दरवाजे बंद करके उसे भीतर छिपा मत लेना, अन्यथा सड़ जायेगा; प्रेम जहरीला हो जायेगा. प्रेम उठे, तो बांटना! और बांटते समय कोई शर्त मत लगाना, क्योंकि शर्त प्रेम बांटने में बाधा बनती है.

आनंद उठे, तो उसे लुटाना! फिर यह भी फिक्र मत देखना कि कौन पात्र है और कौन अपात्र है? पात्र-अपात्र तो कंजूस देखते हैं. मेरे पास लोग आ जाते हैं और पूछते हैं : न आप पात्र देखते हैं न अपात्र, आप किसी को भी संन्यास दे देते हैं! मैं कहता हूं: मैं लुटा रहा हूं! क्या मैं कोई कंजूस हूं, जो पात्र-अपात्र देखूं? इसको देंगे, उसको नहीं देंगे. यह आदमी ऐसा सुबह सात बजे दिन चढ़े उठता है, तो इसे नहीं देंगे. वह जो ब्रह्ममुहूर्त में उठता है, उसे देंगे. यह सब बेकार की बातें हैं. क्या सात बजे उठनेवाला संन्यासी नहीं हो सकता? दिन भर भी सोया रहे, तो भी संन्यासी हो सकता है.

– आचार्य रजनीश ओशो

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