बहुत समय पहले की बात है, कहीं से एक संत एक गांव में आये, गांव की चहारदीवारी के अंदर एक पीपल के पेड़ के नीचे धूनी रमाकर रहने लगे और भगवान का भजन करने लगे, धीरे-धीरे गांव वाले भी उनकी शरण में आने लगे, गांव वालों ने उनके लिए एक झोपड़ी भी बनवा दी, कुछ ही समय में साधू बाबा मशहूर हो गए. उसी गांव में एक सेठ भी रहता था जो काफी घमंडी था, वह बाबा से चिढ़ता था और कहता था कि बाबा तो ढोंगी है, ढोंग करता रहता है.
उसने कहा कि अगर बाबा सच्चा है तो देवी के शेर को बुलाकर दिखाए, जब लोगों ने बाबा को यह बात बताई तो बाबा ने कहा अगर उसकी यही इच्छा है तो उसे में अपने ठाकुर जी से कह कर शेर के दर्शन करा दूंगा. अगले दिन बाबा जंगल में जाकर बड़े दीन भाव से अपने ठाकुर जी को पुकारने लगे भक्त की लाज रखने को प्रभु शेर के रूप में दर्शन दो, दर्शन दो प्रभु, इतने में एक दहाड़ता हुआ शेर प्रकट हुआ और बाबा जी के पास आ गया.
बाबा जी ने उसे अपने कपड़े से बांध लिया और कहा चलो प्रभु मेरे साथ, शेर बाबा के साथ ऐसे चल रहा था जैसे पाली हुई बकरी, शेर को आता हुआ देख कर द्वारपाल ने डर से गांव के दरवाजे बंद कर दिए, शेर दरवाजा खोल कर बाबा के साथ अंदर आ गया, जैसे ही बाबा शेर को लेकर सेठ के घर के आगे आए सेठ दरवाजे बंद करके छिप गया, बाबा ने कहा दरवाजा तो बंद कर दिया है, इसने तो आपके दर्शन भी नहीं किये, शेर ने पंजा मारा और दरवाजा खोल दिया, बाबा जी शेर के साथ अंदर चले गए और बोले सेठ जी आप ने शेर से मिलना था तो में ले आया हूं, लो देख लो, यह देख कर सेठ जोर जोर से रोने लगा और बाबा जी के चरणों में गिर पड़ा और मांफी मांगने लगा.
सेठ दोनों हाथों को जोड़ कर आखें मूंद, सर झुका कर शेर के आगे खड़ा हो गया. इतने में बाबा और शेर दोनों ही गायब हो गये. सेठ का सिर नीचा ही रह गया, इसीलिए कहते हैं की घमंडी का सर नीचा.