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शारदीय नवरात्र : चलिए माता के दरबार
हमारा देश धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता की एक अनोखी मिसाल है. अभी पूरे देश में नवरात्रि की धूम है. जगह-जगह भव्य पंडाल सजे हुए हैं, तो कहीं रामलीला का आयोजन हो रहा है. इस त्योहार में आप सभी उत्साह और उमंग के साथ शामिल होते हैं. इस दौरान देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में स्थित माता […]
हमारा देश धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता की एक अनोखी मिसाल है. अभी पूरे देश में नवरात्रि की धूम है. जगह-जगह भव्य पंडाल सजे हुए हैं, तो कहीं रामलीला का आयोजन हो रहा है. इस त्योहार में आप सभी उत्साह और उमंग के साथ शामिल होते हैं. इस दौरान देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में स्थित माता दुर्गा के मंदिरों में भी पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. इस खास मौके पर हम चलते हैं मां दुर्गा के कुछ प्रसिद्ध मंदिर.
देश के प्राचीनतम शक्तिपीठों में एक अंबाजी मंदिर
यह भव्य अंबाजी मंदिर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित है.
-स्थान : अरासुर, बनासकांठा, गुजरात
-निर्माण : 1200 वर्ष पहले
गुजरात स्थित माता अंबाजी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख पीठ है. मां दुर्गा का यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है. इस मंदिर की सबसे खास बात है कि इसके अंदर माता की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है. यहांं माता का एक श्री-यंत्र स्थापित है. इस श्री-यंत्र का ही कुछ इस तरह से श्रृंगार किया जाता है कि आपको लगेगा मां अंबाजी साक्षात विराजमान हैं. यह मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित है.
चौथी शताब्दी में हुआ निर्माण
ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 1200 वर्ष पुराना है. इस मंदिर का निर्माण वल्लभी शासक, सूर्यवंश सम्राट अरुण सेन द्वारा लगभग चौथी शताब्दी में किया गया था.
बाद में इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम वर्ष 1975 से शुरू हुआ था, जो अब तक जारी है. उजले रंग के संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बहुत ही भव्य है. इस मंदिर का शिखर 103 फुट ऊंचा है. इसके शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं. इसे गुजरात के स्वर्ण मंदिर नाम से भी संबोधित किया जाता है.
इस मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है. इस पहाड़ पर भी देवी मां का एक प्राचीन मंदिर स्थापित है. माना जाता है कि यहां एक पत्थर पर मां दुर्गा के पैरों के निशान बने हैं. इसके साथ-साथ यहां माता के रथ चिह्न भी बने हैं.
गरबा नृत्य से शक्ति की आराधना
इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि यहीं भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार हुआ था. नवरात्रि के समय यहां बहुत बड़ा मेला लगता है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर के प्रांगण में गरबा करके माता शक्ति की आराधना करते हैं.
कैसे पहुंचा जा सकता है यहां
अंबाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से सटे बनासकांठा जिले में स्थित है. यहां तक पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन माउंट आबू है. माता अंबाजी का मंदिर अहमदाबाद से 180 किलोमीटर और माउंट आबू से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर अरावली हिल रेंज से घिरा हुआ है. इस वजह से भी इसकी भव्यतादेखते ही बनती है.
मां चामुंडा देवी, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
इस मंदिर में भगवान शिव और माता शक्ति दोनों का स्थान बना है.
-स्थान : कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
-निर्माण : 400 वर्ष पहले
मां चामुंडा देवी का मंदिर भी 51 शक्तिपीठों में एक है. बंकर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महा काली को समर्पित है. ऐसी मान्यता है कि यहां पर आनेवाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर माता सती का चरण गिरा था. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य भी लोगों को अपनी और आकर्षित करती है.
इस मंदिर की विशेष मान्यता
मां चामुंडा देवी मंदिर में भगवान शिव और शक्ति दोनों का स्थान है. ऐसी मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना मां की कृपा पाने का सबसे सरल तरीका है.
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार, एक बार चंड-मुंड नामक दो दैत्य देवी से युद्ध करने आये तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कालिका देवी ने जब चंड-मुंड के सिर देवी को उपहार स्वरूप भेंट किये तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चंड-मुंड का वध किया है, इसलिए आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी. माना जाता है कि इसी कारण श्रद्धालु देवी के इस स्वरूप की चामुंडा देवी के रूप में पूजा करते हैं.
400 वर्ष पहले हुआ माता का स्थानांतरण
ऐसी मान्यता है कि लगभग 400 वर्ष पहले राजा और पुजारी ने मंदिर को एक उच्च स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए देवी मां से अनुमति मांगी. देवी मां ने इसकी सहमति देने के लिए पुजारी को सपने में दर्शन दिया और एक निश्चित स्थान पर खुदाई करने को कहा. खुदाई के स्थान पर मां चामुंडा देवी की प्राचीन मूर्ति मिली, पर सभी मिल कर भी उस मूर्ति को हिलाने व बाहर लाने सक्षम नहीं थे. फिर चामुंडा देवी की मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित किया गया और उनकी पूजा की जाने लगी.
कैसे पहुंचा जा सकता है यहां
यह मंदिर पश्चिम पालमपुर से लगभग 10 किलोमीटर दूर, कांगड़ा से 24 किलोमीटर तथा धर्मशाला से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है. इस मंदिर तक किसी भी वाहन से पहुंचा जा सकता है. यहां मां चामुंडा देवी की मूर्ति में भगवान हनुमान और भैरो दोनों की छवि नजर आती है.
नैना देवी मंदिर, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश
यहां 1756 में सिख गुरु गोविंद सिंह ने महायज्ञ किया था.
-स्थान : बिलासपुर
-ऊंचाई : 11 हजार फुट
हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जहां पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इनमें से सबसे अधिक महिमा माता नैना देवी मंदिर की मानी जाती है. नैना देवी मंदिर भी 51 शक्तिपीठों में से एक है. मान्यता है कि यहां माता सती की आंखें गिरी थीं. नैना देवी मंदिर शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियों पर स्थित है. नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए मंदिर में पहुंचते हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए केबल कार द्वारा जाया जा सकता है.
यह मंदिर समुद्र तल से 11 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि सिख गुरु गोविंद सिंह ने जब वर्ष 1756 में मुगलों के खिलाफ अपना सैन्य अभियान छेड़ा, तो वह श्री नैना देवी गये और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए एक महायज्ञ किया. फिर उन्होंने सफलतापूर्वक मुगलों को हरा दिया था.
कैसे पहुंचा जा सकता है यहां
चंडीगढ़ से नैना देवी मंदिर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है. वहीं कीरतपुर साहिब से मंदिर की दूरी 30 किलोमीटर है, जिनमें से 18 किलोमीटर तक पहाड़ी रास्ते से गुजरना होता है. दूसरा रास्ता आनंदपुर साहिब से है, जिससे मंदिर की दूरी 20 किलोमीटर है. वहां आठ किलोमीटर पहाड़ी रास्ता पार करना होता है.
वैष्णो देवी मंदिर, कटरा, जम्मू-कश्मीर
माता ने भक्त को क्षमादान के रूप में खुद से ऊंचा स्थान दिया है.
-स्थान: जम्मू
-ऊंचाई : 5200 फुट
प्रचलित मान्यतानुसार अपने परम भक्त श्रीधर द्वारा दिये वचन की लाज रखने के लिए देवी ने वैष्णवी रूप धारण किया था और भैरोनाथ असुर का वध करने के पश्चात त्रिकूट पर्वत पर बनी गुफा में जाकर विराजमान हो गयी थीं. यही स्थान वर्तमान में मां वैष्णो देवी मंदिर के नाम से विख्यात है.
यह शक्ति को समर्पित पवित्रतम मंदिरों में से एक है. वेंकटेश्वर मंदिर के बाद यह दूसरा सर्वाधिक देखा जानेवाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है. इस मंदिर की व्यवस्था एवं प्रबंधन श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल द्वारा की जाती है. दूर-दूर से हर सालों लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं.
कैसे पहुंचा जा सकता है यहां
यह मंदिर जम्मू एनएच 1ए पर स्थित है. यहां तक जाने के लिए सबसे पहले कटरा पहुंचना होता है, जो मुख्य मंदिर से 50 किमी की दूरी पर स्थित है. दिल्ली सहित, मुंबई , श्रीनगर और बड़े महानगरों से जम्मू के ट्रेन सेवा उपलब्ध हैं. कुछ प्रमुख शहरों से भी कटरा के लिए रेल सेवा शुरू की गयी है.
महालक्ष्मी मंदिर, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
यहां सूर्य की सीधी किरणें देवी की मूर्ति के अलग-अलग हिस्सों पर पड़ती हैं.
-स्थान : कोल्हापुर, महाराष्ट्र
-निर्माण : सातवीं शताब्दी
यह मंदिर माता महालक्ष्मी को समर्पित है. स्थानीय लोगों के बीच यह ‘आई अंबाबाई’ मंदिर के नाम से प्रचलित है. देवी को धन-धान्य व सुख-संपत्ति की अधिष्ठात्री माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर माता सती का एक नेत्र गिरा था, जिसकी रक्षा करने के लिए अन्य शक्तिपीठों की भांति यहां भी काल भैरव मौजूद हैं. इस मंदिर को कोल्हापुर शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है.
सातवीं शताब्दी में निर्माण
कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में चालुक्य वंश के शासकों द्वारा करवाया गया था. मंदिर परिसर में दो मुख्य हॉल हैं – दर्शन मंडप और कूर्म मंडप. दर्शन मंडप में श्रद्धालु माता के दिव्य दर्शन प्राप्त करते हैं और कूर्म मंडप में माता के आशीर्वाद स्वरूप उन पर एक पवित्र शंख से पवित्र जल छिड़का जाता है. इस मंडप को शंख तीर्थ भी कहा जाता है.
सबसे बाहरी हॉल को गरुड़ मंडप कहा जाता है, जो कि बाद के वर्षों में बनवाया गया था. मंदिर के पांच भव्य गुंबद हैं, जिनमें से एक मंदिर के मध्य में और बाकी चार मंदिर की चारों दिशाओं में बने हैं. मंदिर के गर्भ गृह में एक ऊंचे मंच पर देवी महालक्ष्मी की भव्य मूर्ति प्रतिस्थापित की गयी है. काले मणिक पत्थर से बनी इस मूर्ति की ऊंचाई तीन फुट और वजन करीब 40 किलोग्राम है.
मंदिर की एक दीवार पर श्री-यंत्र खुदा हुआ है, जिसे माता का एक रूप माना जाता है. मंदिर के विशाल प्रांगण में अन्य देवी-देवताओं को समर्पित कई अन्य छोटे मंदिर भी हैं, जिनमें महाकाली और महा सरस्वती मंदिर प्रमुख हैं. यहां साल में दो बार सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें सीधी माता महालक्ष्मी की मूर्ति के अलग-अलग हिस्सों पर पड़ती है.
कैसे पहुंचा जा सकता है यहां
यह मंदिर राजधानी मुंबई से 400 किमी दूर कोल्हापुर शहर में स्थित है. श्री महालक्ष्मी मंदिर अपने देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है. यह देश के नौ प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. मंदिर के प्रांगण में एक मंदिर काल भैरव को भी समर्पित है. यह मंदिर प्रतिदिन सुबह साढ़े चार बजे खुलता है और रात में 10 बजे इसके पट बंद किये जाते हैं. यहां तक किसी भी वाहन से जा सकते हैं.
दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता
यहां मां अपने कालिका स्वरूप में और भगवान शिव नकुलेश्वर भैरव के रूप में विराजमान हैं.
-स्थान : कोलकाता
-निर्माण : 17वीं शताब्दी
दक्षिणेश्वर काली मंदिर को भी 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. पूरे देश में इसे धार्मिक आस्था के प्रमुख केंद्रों में से एक माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां देवी सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था और मां स्वयं यहां कालिका के रूप में स्थापित हुई थीं.
उनके साथ-साथ भगवान शिव भी यहां नकुलेश्वर भैरव के रूप में प्रतिष्ठित हैं. इस मंदिर में हमें मां के प्रचंड रौद्र रूप के दर्शन होते हैं. 25 एकड़ क्षेत्र में फैला यह मंदिर 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊंचा है. मंदिर के भीतरी भाग में चांदी से बना कमल का फूल है, जिसकी हजार पंखुड़ियां हैं.
मां के गले में नरमुंडों की माला सुशोभित है और वह भगवान शिव के सीने पर अपने पैर रख कर खड़ी हैं. उनकी लंबी-सी जीभ बाहर की ओर निकली हुई है, जो कि सोने की बनी है. उनके हाथ और दांत भी सोने से ही निर्मित हैं. मां का चेहरा श्याम रंग का है, जबकि आंखें सिंदूरी रंग की हैं. उनके माथे पर सिंदूरी रंग का ही तिलक लगा हुआ है. उनके एक हाथ में सुशोभित एक फरसा भी इसी रंग का है.
हर वर्ष होती है स्नान यात्रा
प्रतिवर्ष कालिका मंदिर में विशाल स्नान यात्रा का आयोजन होता है. इस दौरान मंदिर के मुख्य पुजारी मां को पवित्र स्नान करवाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के चलते ऐसा करते समय पुजारी की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है. इस स्नान और पूजा का यहां बड़ा महत्व है. लोग दूर-दूर से इस अवसर पर मां के दर्शन के लिए आते हैं. मां कालिका के अलावा यहां मां शीतला, मां षष्ठी और मां मंगला चंडी के भी मंदिर हैं.
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में जान बाजार की महारानी रासमणि द्वारा किया गया था. हरे-भरे मैदान में स्थित इस मंदिर में कुल 12 गुंबद हैं. इस विशाल मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के बारह मंदिर स्थापित किये गये हैं. हर सप्ताह मंगलवार और शानिवार के अलावा अष्टमी को मां की विशेष पूजा की जाती है. दशहरा के समय यहां भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है.
कैसे पहुंचा जा सकता है यहां
कोलकाता शहर में गंगा नदी (जिसे वहां हुगली नदी के नाम से जाना जाता है) के तट पर यह मंदिर स्थित है. यह मंदिर सुबह 5 बजे से रात्रि 10:30 तक खुला रहता है. बीच में तीन घंटे के लिए दोपहर 2 से 5 बजे तक पट बंद कर दिया जाता है. इस दौरान मां को भोग लगाया जाता है. हर रोज सुबह 4 बजे मंगला आरती होती है. भक्तों के लिए सुबह 5 बजे ही मंदिर का पट खोला जाता है.
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