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विश्व शतरंज में भारत की बढ़ती धमक

कई बार झटके लोगों को उबारने में सहायक होते हैं. टोरंटो में इस टूर्नामेंट के दौरान सातवें राउंड में अलिरेजा के हाथों बाजी हारने ने ही उन्हें खिताब जीतने के लिए मजबूत बनाया. उनकी मां पद्मा बताती हैं कि इस बाजी के हारने के बाद गुकेश थोड़ा हताश था.

विश्व शतरंज में आजकल सबसे चर्चित नाम डी गुकेश का है और वह अपना सपना साकार करने से मात्र एक जीत दूर हैं. वह सबसे कम उम्र (17 साल) में कैंडिडेट्स शतरंज टूर्नामेंट जीतने में सफल हो गये हैं. इस गौरव को पाने वाले आनंद के बाद वह दूसरे भारतीय हैं. गुकेश ने रूसी खिलाड़ी गैरी कास्परोव के रिकॉर्ड को तोड़ा है, जिन्होंने 40 वर्ष पूर्व सबसे कम उम्र में यह उपलब्धि प्राप्त की थी. कास्परोव ने 1984 में 22 वर्ष की उम्र में यह खिताब जीतकर रिकॉर्ड बनाया था.

गुकेश के साथ उनके शुरुआती दौर से कोच के तौर पर जुड़े रहे विष्णु प्रसन्ना बताते हैं कि वह जब 2017 में 11 वर्ष की उम्र में आये थे, तब उच्चस्तरीय शतरंज के गुर सीख रहे थे. पर उस समय भी उनके दिमाग में एक बात साफ थी कि उन्हें सबसे कम उम्र का विश्व चैंपियन बनना है. वह अपने इस सपने को पूरा करने के कगार पर पहुंच गये हैं. उन्हें वर्ष के आखिर में विश्व चैंपियन डिंग लिरेन से मुकाबला करना है. इसे जीत कर ही वह अपना सपना साकार कर सकते हैं.
कई बार झटके लोगों को उबारने में सहायक होते हैं. टोरंटो में इस टूर्नामेंट के दौरान सातवें राउंड में अलिरेजा के हाथों बाजी हारने ने ही उन्हें खिताब जीतने के लिए मजबूत बनाया. उनकी मां पद्मा बताती हैं कि इस बाजी के हारने के बाद गुकेश थोड़ा हताश था. पर मुझसे 10-15 मिनट बात करने के बाद फिर से सारा ध्यान शतरंज पर केंद्रित करने में सफल हो गया. वह कहती हैं कि मैंने उससे कहा कि खेल अभी खत्म नहीं हुआ है और अभी सात राउंड बाकी है, उनमें अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करो. गुकेश अपने प्रदर्शन से पांच बार विश्व चैंपियन रहे कार्लसन को गलत साबित करने में सफल रहे. भारत को आनंद के बाद दूसरा चैलेंजर निकालने में 30 वर्ष का समय लगा है.

विश्वनाथन आनंद विश्व चैंपियनशिप कैंडिडेट्स साइकिल में 1991 में सफल हुए थे और उन्हें कैंडिडेट्स खिताब जीतने में चार वर्ष लग गये थे. पर गुकेश अपने पहले ही प्रयास में खिताब जीतने में सफल हो गये हैं. यह भी सच है कि अपने पदचिह्नों पर चलने वाले इस खिलाड़ी को आनंद की भरपूर मदद मिली है. गुकेश सही समय पर वेस्टब्रिज आनंद शतरंज अकादमी में स्थान बनाने में सफल हुए. अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेने के दौरान यहीं उन्हें उनके साथ यात्रा करने वाले कोच ग्रजगोर्ज गजेवस्की (पोलैंड) मिले. पर बचपन के कोच प्रसन्ना की सलाह कि ‘अभ्यास करते समय शतरंज इंजन की मदद लेने की जगह स्वयं गणनाएं करने की आदत डालो’, ने ही उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में मदद की है.


गुकेश की सफलता देश में शतरंज के बदले माहौल का प्रतीक है. मुझे याद है कि भारत ने 2020 में रूस के साथ संयुक्त रूप से शतरंज ओलंपियाड का गोल्ड जीता था. पर इस सफलता पर देश में फीकी प्रतिक्रिया मिली थी, तब आनंद ने कहा था कि 1983 में भारत के आईसीसी विश्व कप जीतने पर जिस तरह की दीवानगी देश में बनी थी, उस तरह की दीवानगी बने बिना विश्व चैंपियन निकलना मुश्किल है. देश में शतरंज में क्रिकेट जैसी दीवानगी भले ही नहीं बनी है, पर कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में गुकेश सहित तीन खिलाड़ियों का भाग लेना भारतीय दबदबा को जताता जरूर है. भारत के इस मुकाम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं है.

यह भी कि देश में शतरंज जमाने से खेली जा रही है, पर इसे सही दिशा आनंद के 1988 में ग्रैंडमास्टर बनने के बाद ही मिली. यह वह दौर था, जब ग्रैंडमास्टर बनना बेहद कठिन था. यही वजह है कि अगले 10 से 12 वर्षों में हम केवल पांच और ग्रैंडमास्टर ही निकाल सके. पर 2000 के बाद ग्रैंडमास्टर बनने की गति में तेजी आयी और इसके साथ ही ग्रैंडमास्टर बनने की राह भी आसान होती चली गयी. वास्तव में, ग्रैंडमास्टर नॉर्म पाने के लिए टूर्नामेंट ग्रैंडमास्टर्स का खेलना जरूरी होता है. पर देश में ग्रैंडमास्टर्स की संख्या बढ़ने पर घरेलू टूर्नामेंटों की रेटिंग बेहतर होने से घर में ही ग्रैंडमास्टर निकलने लगे. पहले जीएम नॉर्म पाने के लिए भारतीय खिलाड़ियों को विदेश जाना पड़ता था, जो बहुत खर्चीला था. इसलिए कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी आर्थिक तंगी के कारण खिलने से पहले ही मुरझा जाते थे.

परंतु अब सही मायनों में देश में शतरंज क्रांति हो गयी है और पिछले चार वर्षों में देश को करीब 25 ग्रैंडमास्टर मिले हैं और यह संख्या अब 84 पहुंच गयी है.
गुकेश के कैंडिडेट्स खिताब जीतने पर गैरी कास्परोव ने कहा कि टोरंटो में भारतीय भूचाल शतरंज की दुनिया में बदलाव का संकेत है. उन्होंने इसमें आनंद के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि आनंद के बच्चे छाये हुए हैं. पर सही मायनों में गुकेश के विश्व चैंपियन बनने पर ही भारतीय शतरंज को नयी दिशा मिल सकती है.

पहली बार कैंडिडेट्स खिताब जीतने वालों में केवल कार्लसन ही ऐसे खिलाड़ी हैं, जो इस तरह 2013 में विश्व चैंपियन बन सके थे. इसके बाद 2020-21 तक वह इस खिताब पर कब्जा बनाये रखने में सफल रहे. चीनी ग्रैंडमास्टर डिंग लिरेन 2022 में नये विश्व चैंपियन बने. गुकेश के भाग्य का ताला अब डिंग लिरेन के मुकाबले से ही खुलना है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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