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रूस से रिश्ते

ऊर्जा क्षेत्र में दोनों देशों में सहयोग बढ़ने से स्थिरता बढ़ेगी तथा ऐसा होने से वैश्विक स्तर पर भी कई देशों को लाभ होगा.

भारत और रूस के संबंधों की ऐतिहासिकता को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही कहा है कि दोनों देशों के परस्पर संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं. कोरोना महामारी के कठिन दौर में दोनों मित्र देशों ने एक-दूसरे को समुचित सहयोग दिया है. पिछले महीने जब वैश्विक सामुद्रिक मुद्दे पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री मोदी कर रहे थे, तब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी उसमें शामिल हुए थे.

दोनों देशों की यह चिंता रही है कि व्यापक स्तर पर परस्पर व्यापारिक संबंधों की संभावनाओं को अभी तक साकार नहीं किया जा सका है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से इस देश में ठोस प्रयास हो रहे हैं. रूस के सुदूर पूर्वी हिस्से से सामुद्रिक मार्ग से भारत को जोड़ने के लिए रूपरेखा बन रही है. इस क्रम में रूस द्वारा आयोजित ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन महत्वपूर्ण है.

प्रधानमंत्री जहां इस बैठक को वीडियो के माध्यम से संबोधित कर रहे थे, वहीं केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप पुरी एक प्रतिनिधिमंडल के साथ फोरम के आयोजन स्थल व्लादिवोस्तोक में उपस्थित रहे. दो वर्ष पहले स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने आयोजन में हिस्सा लिया था. उनके साथ अनेक मुख्यमंत्री भी गये थे.

इस बार उन्होंने रूस के 11 सुदूर पूर्व के क्षेत्रों के गवर्नरों को भारत आमंत्रित किया है. भारत पिछले कई वर्षों से ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय विकास की दिशा में अग्रसर है.

जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है, रूस के सुदूर पूर्व हिस्से के विकास से दोनों देशों को लाभ संभावित है. इस संबंध में सामुद्रिक व्यापार बढ़ाने के साथ ऊर्जा, उड़ान, रक्षा तकनीक, सामरिक आदान-प्रदान आदि अनेक क्षेत्रों में असीम संभावनाएं है. अब इस सूची में स्वास्थ्य एवं दवा उद्योग के महत्वपूर्ण आयाम भी जुड़ गये हैं.

तेल और प्राकृतिक गैस की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव तथा उनके उत्पादन एवं वितरण से जुड़ी समस्याएं, विशेष रूप से भू-राजनीतिक तनातनी व अस्थिरता, दोनों देशों के लिए चिंता का कारण हैं. ऊर्जा क्षेत्र में दोनों देशों में सहयोग बढ़ने से स्थिरता बढ़ेगी तथा ऐसा होने से वैश्विक स्तर पर भी कई देशों को लाभ होगा.

भारत कई वर्षों से सामुद्रिक सुरक्षा के लिए प्रयासरत है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ बने क्वाड समूह, सुरक्षा परिषद में इस विषय को अहम मुद्दा बनाने तथा साउथ चाइना सी और फारस की खाड़ी में शांति स्थापित करने जैसी पहलें हो रही हैं.

भारत और रूस सामुद्रिक सुरक्षा और अन्य मामलों में चीन पर दबाव डाल सकते हैं क्योंकि तीनों देश ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे बहुपक्षीय समूहों के सदस्य हैं. दक्षिण भारत के बंदरगाहों से साउथ चाइना सी के रास्ते व्लादिवोस्तोक को जोड़ा जा सकता है. निवेश, तकनीक, अनुभव और संसाधन के साथ दोनों देशों की साझा संभावनाओं को साकार करने का समय आ गया है.

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