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हॉस्टल में लड़कियों की सुरक्षा पर खतरा चिंताजनक
बिहार का मुजफ्फपुर कांड व झारखंड का कस्तूरबा आवासीय विद्यालय देश से कुछ अहम सवाल पूछने को बेताब है. लड़कियों का मां बनना एक नैसर्गिक जरूरत और जन्मसिद्ध अधिकार है. मगर विद्यालय के सुरक्षित हॉस्टल से निकल कर आती खबरें अपने साथ ढेरों सवाल लाती हैं तो कठघरे में बेटियां होती हैं. मां बनना जुर्म […]
बिहार का मुजफ्फपुर कांड व झारखंड का कस्तूरबा आवासीय विद्यालय देश से कुछ अहम सवाल पूछने को बेताब है. लड़कियों का मां बनना एक नैसर्गिक जरूरत और जन्मसिद्ध अधिकार है. मगर विद्यालय के सुरक्षित हॉस्टल से निकल कर आती खबरें अपने साथ ढेरों सवाल लाती हैं तो कठघरे में बेटियां होती हैं. मां बनना जुर्म नहीं, मगर जब छिपती हुई खबर छपती है, तो पीछे जुर्म के निशान भी छोड़ जाती है. हॉस्टल भेज कर भविष्य के सपने संजोते बेटियों के मां-बाप के हाथ-पांव क्यों न फूल जाएं.
मासूम बेटियों को मझधार में छोड़ने वाली ‘ड्यूटी’ परस्त व्यवस्था को जवाब देना होगा. हॉस्टल में रह कर शिक्षा प्राप्त करती अविवाहित लड़कियां मां बनने लगें तो व्यवस्था से सवाल पूछना लाजिमी है. ‘ड्यूटी’ सब करते हैं मगर फर्ज को नौकरी के चश्मे से देखना सामाजिक जुर्म है. जिम्मेदारियों की कब्र पर खड़े होकर बेटियों का जनाजा देखने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.
एमके मिश्रा, त्वदीयं, मां आनंदमयीनागर, रातू (रांची)
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