तत्काल न्याय को इस देश में काफी समर्थन मिलने लगा है. क्योंकि इसमें आरोपी तत्क्षण मौत के घाट उतार दिया जाता है. बॉलीवुड के मसाला फिल्मों की तरह ही खूब ताली बजती है. कहा जाता है कि न्याय हो तो ऐसा हो!
जैसा कि हैदराबाद मामले में भीड़ ने पुलिस वालों पर फूल बरसाया. समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर क्या हो रहा है हमारे प्यारे देश में. क्या यह सब हमारी न्याय प्रणाली, संवैधानिक व्यवस्था को नेपथ्य में डालने का प्रयास तो नहीं हो रहा है? शपथ लेकर संसद के सदस्यों द्वारा ऐसे मुठभेड़ का स्वागत करने से समाज में क्या संदेश फैल रहा है? इन सदस्यों ने अदालतों में जजों की संख्या को बढ़ाने की क्यों नहीं मांग की?
सरकार पुलिस सुधार नहीं करेगी. अदालतों का बजट नहीं बढ़ाया जायेगा. तो क्या इसी तरह भीड़तंत्र के माध्यम से ही किसी को न्याय दिया जायेगा? बलात्कारी को मौत की सजा मिलनी चाहिए. हम सबको सोचना चाहिए कि कल कहीं ऐसा न हो कि एक चोर को भी पकड़कर लोग इसी तरह मार देंगे. क्योंकि उन्हें बस यही लगता है कि अदालत में वह बरी हो जायेगा. ऐसे में तो लोकतंत्र एक भीड़तंत्र में बदल जायेगा.
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड