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मोदी सरकार में जगह पानेवाले चेहरे

।। संजय कुमार।। (डायरेक्टर, सीएसडीएस) देश के पंद्रहवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के साथ ही नरेंद्र मोदी की वह लंबी यात्र अपने पड़ाव तक पहुंच गयी है, जो पिछले साल जून में शुरू हुई थी. जून, 2013 में ही मोदी को भाजपा की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था. बाद […]

।। संजय कुमार।।

(डायरेक्टर, सीएसडीएस)

देश के पंद्रहवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के साथ ही नरेंद्र मोदी की वह लंबी यात्र अपने पड़ाव तक पहुंच गयी है, जो पिछले साल जून में शुरू हुई थी. जून, 2013 में ही मोदी को भाजपा की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था. बाद में वे पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार भी चुने गये थे. मोदी सरकार में उनके अलावा 45 मंत्री शामिल किये गये हैं, जिनमें 23 कैबिनेट मंत्री हैं, जबकि अन्य राज्य मंत्री. इससे पहले की यूपीए सरकार से तुलना करें तो यह छोटा मंत्रिमंडल है. खास बात यह भी है कि भाजपा के अपने बूते बहुमत हासिल करने के बावजूद मोदी ने पांच मंत्री गंठबंधन के सहयोगी दलों से बनाये. (लोजपा- रामविलास पासवान, टीडीपी- अशोक गजापति राजू, शिवसेना- अनंत गीते, शिअद- हरसिमरत कौर और एक राज्यमंत्री आरएलएसपी- उपेंद्र कुशवाहा). संदेश साफ है, गंठबंधन की राजनीति के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए मोदी इस गंठबंधन को जिंदा रखना चाहते हैं. ये पार्टियां चुनाव से पहले से भाजपा की गंठबंधन सहयोगी हैं. हालांकि कुछ छोटी सहयोगी पार्टियों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पायी है, क्योंकि उन्हें कुछेक सीटों पर ही कामयाबी मिली है.

यदि हम मंत्री के रूप में शपथ लेनेवाले चेहरों पर नजर डालें, तो लगता है कि मंत्रियों के चयन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव भी रहा है. संघ परिवार का सुझाव था कि मंत्रिमंडल में 75 साल से अधिक आयु के किसी नेता को शामिल न किया जाये. सबसे उम्रदराज मंत्री 74 वर्षीया नजमा हेपतुल्ला हैं, जिन्हें शामिल करने के पीछे दो उद्देश्य लगते हैं. पहला, मंत्रिमंडल में लिंग आधारित संतुलन बनाना और दूसरा, मुसलमानों को प्रतिनिधित्व देना. नजमा मोदी सरकार में अकेली मुसलिम मंत्री हैं. मंत्रिमंडल में सात महिला मंत्रियों को शामिल करने (जिनमें से छह को कैबिनेट रैंक और महत्वपूर्ण मंत्रलय दिये गये हैं) का संदेश साफ है, मोदी ने महिलाओं को पहले से अधिक प्रतिनिधित्व दिया है. महिला मंत्री हैं- सुषमा स्वराज, नजमा हेपतुल्ला, मेनका गांधी, हरसिमरत कौर, स्मृति इरानी, उमा भारती और निर्मला सीतारमन.

मोदी सरकार में शामिल कुछ मंत्री राजनीति का जाना-पहचाना चेहरा हैं, और यह हर कोई उम्मीद कर रहा था कि उन्हें सरकार में जगह मिलेगी. लेकिन कुछ नामों पर लोगों को हैरानी भी हुई है. यदि उम्र के फैक्टर को अलग कर दें, जो मंत्रियों के चयन का एक मूलभूत कारक रहा है, तो यह बता पाना थोड़ा कठिन होगा कि मंत्रियों के चयन का बड़ा आधार क्या रहा है- राजनीति में अनुभव या संबंधित विभाग के बारे में विशेषज्ञता. हालांकि तकनीकी विशेषज्ञता को राजनीतिक अनुभव पर वरीयता नहीं दी गयी है, लेकिन रिटायर्ड जनरल वीके सिंह (जो सेना प्रमुख से रिटायर होने के बाद पहली बार गाजियाबाद से सांसद चुने गये हैं) को रक्षा मामलों में उनकी विशेषज्ञता के चलते ही मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री के रूप में जगह दी गयी है. हालांकि इस बात का कोई औचित्य समझ में नहीं आता कि उन्हें उत्तर पूर्व मामलों का स्वतंत्र प्रभार क्यों दिया गया है, जबकि वे रक्षा से जुड़े मामलों में बेहतर सेवा दे सकते थे.

माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में शामिल ज्यादातर चेहरे पहले से मोदी की पसंद रहे हैं, लेकिन मंत्रिमंडल को छोटा और कुछ पुराने राजनीतिक घरानों से जुड़े युवा चेहरों को इससे बाहर रख कर, नरेंद्र मोदी ने एक संदेश साफ तौर पर दिया है कि वे प्रोफेशनल तरीके से काम करना चाहते हैं और किसी सांसद को मंत्रिमंडल में जगह देने के लिए कोई समझौता नहीं करना चाहते. यूपीए मंत्रिमंडल, जिसमें राजनीतिक घरानों से जुड़े युवा चेहरों की संख्या ज्यादा थी, से इतर मोदी ने वरिष्ठ नेताओं के बेटे-बेटियों को इसमें जगह देने में ज्यादा रुचि नहीं दिखायी है. ऐसे जिन प्रमुख युवा चेहरों को मंत्रिमंडल से बाहर रखा गया है, वे हैं- मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी, वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह, यशवंत सिन्हा के पुत्र जयंत सिन्हा, पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर, रमन सिंह के पुत्र अभिषेक, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पुत्र राजबीर सिंह, दिवंगत नेता प्रमोद महाजन की पुत्री पूनम महाजन, पूर्व मुख्यमंत्री साहेब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश वर्मा, लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान आदि.

पीयूष गोयल इसके एकमात्र अपवाद हैं, जो पूर्व जहाजरानी मंत्री वेदप्रकाश गोयल के पुत्र हैं. ऊपर जो नाम गिनाये गये हैं, उनमें कुछ इस आधार पर भले बाहर रखे जाने लायक थे कि वे पहली बार सांसद बने हैं, लेकिन इनमें कई नेता दूसरी या तीसरी बार सांसद बने हैं, या फिर उन राज्यों से जीत कर आये हैं जहां 2014 के जनादेश में भाजपा को सभी सीटों पर कामयाबी मिली है. जाहिर है, ऐसे नामों को मंत्रिमंडल में शामिल करने को लेकर नरेंद्र मोदी पर निश्चित रूप से दबाव भी रहा होगा. कुछ वरिष्ठ नेताओं, जो पार्टी के जाने-पहचाने चेहरे हैं और जिन्हें संभावित मंत्री में गिना भी जा रहा था, को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने पर भी बहुतों को हैरानी हुई होगी. इनमें राजीव प्रताप रूडी, शाहनवाज हुसैन, मीनाक्षी लेखी, अरुण शौरी, बीसी खंडूरी, रमेश पोखरियाल निशंक, मुख्तार अब्बास नकवी, कीर्ति सौम्या, एसएस अहलूवालिया, विजय गोयल जैसे नाम गिनाये जा सकते हैं. यदि मंत्रिमंडल में राज्यों के प्रतिनिधित्व पर गौर करें तो महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा आदि को आनुपातिक रूप से अधिक प्रतिनिधित्व मिलता दिख रहा है. ये वे राज्य हैं, जहां अगले कुछ महीनों में या अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. जाहिर है, मंत्रियों के चयन में इन राज्यों की राजनीतिक स्थिति का भी ख्याल रखा गया है.

जिन वरिष्ठ नेताओं को सरकार में जगह नहीं मिली है, अभी पार्टी भले यह दलील दे सकती है कि उन्हें संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी जायेगी, पर अनुमान यही है कि देर-सवेर इनमें से कुछ को मंत्रिमंडल में जगह दे दी जायेगी. सरकार में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. इसलिए भले ही ज्यादातर मंत्रियों ने जिम्मा संभाल कर कामकाज भी शुरू कर दिया है, लेकिन अनुमान यही है कि मंत्रिमंडल में शीघ्र एक विस्तार होगा. वित्त और रक्षा जैसे दो मंत्रालयों का जिम्मा एक मंत्री को सौंपे जाने का कोई औचित्य नहीं है और देर-सवेर इसकी जिम्मेवारी दो लोगों को देनी ही होगी.

जब भी कोई सरकार बनती है, मंत्रलयों का बंटवारा आसान नहीं होता है. हर बार कुछ नेता वाजिब कारणों से, जबकि कुछ बिना किसी कारण के नाराज हो जाते हैं. अब, जबकि मंत्रिमंडल का आकार छोटा रखा गया है, उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी ऐसी बातों को आसानी से सुलझा लेंगे. इस तरह के असंतोष को शांत करने के लिए इस छोटे मंत्रिमंडल को विस्तार देने का सबसे आसान विकल्प तो उनके सामने है ही.

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