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इस्तीफे को लेकर चाय पर चर्चा

।। पंकज कुमार पाठक ।। प्रभात खबर.कॉम नरेंद्र मोदी के दीवाने मेरे मित्र बिहारी बाबू इन दिनों खूब जोश में हैं. चुनाव के दौरान मोदी के गुण गाते-गाते उनकी स्थिति ऐसी हो गयी है कि अब उनके रिकॉर्डर में कोई दूसरा कैसेट फिट ही नहीं होता. हद तो तब हो गयी जब सुशासन बाबू के […]

।। पंकज कुमार पाठक ।।

प्रभात खबर.कॉम

नरेंद्र मोदी के दीवाने मेरे मित्र बिहारी बाबू इन दिनों खूब जोश में हैं. चुनाव के दौरान मोदी के गुण गाते-गाते उनकी स्थिति ऐसी हो गयी है कि अब उनके रिकॉर्डर में कोई दूसरा कैसेट फिट ही नहीं होता. हद तो तब हो गयी जब सुशासन बाबू के इस्तीफे को भी उन्होंने मोदी रंग में रंग दिया. ऑफिस की कैंटीन में चाय की चुस्की लेते-लेते कहने लगे, ‘‘जब से चायवाले के प्रधानमंत्री बनने का फैसला हुआ है ना पाठक जी, कैंटीनो का चाय में गजब का मिठास लगे लगा है.’’

तभी मेरे सहयोगी पांडेय जी तपाक से बोले, ‘‘गजब है जी! हमलोग के कैंटीन के चाय का टेस्टो अब मोदिये के कारण सुधरा है. उधर बिहार में दूसरों के मुंह का टेस्ट बिगड़ा, उसका कुछो नहीं. सुने नहीं का, बेचारे सुशासन बाबू को इस्तीफा देना पड़ गया. बिहार में उनका परफारमेंस देखिये भाई, का गजब ढाये हुए थे.’’ ‘‘कितना विकास हुआ है?’’ ‘‘आप खाली गुजरात घूमिए. अरे कबो बिहारो जाके देखिए बिहारी बाबू नाम खाली बिहारी होय से होता है!’’ मैंने कहा, ‘‘अरे भाई, इस्तीफा नीतीश जी नैतिकता के आधार पर दिये हैं.

देखिये चुनाव में..’’ मेरी बात आधे में काट कर बिहारी बाबू बोले, ‘‘अरे पाठक जी, आप भी बकलोल है का जी! कइसा नैतिकता महाराज? मोदी जी के डर से दे दिया इस्तीफा, समङो ना. देखिए, अब देश का प्रधानमंत्री बिहार आयेगा, तो प्रदेश के मुखिया को तो उनको रिसीव करे जाना पड़ेगा कि नहीं. इतना सब बक दिये हैं सुशासन बाबू कि उनकर के शरम आये लगा कि हम कइसे मुंह दिखायेंगे मोदी को, इहे से इस्तीफा दिये हैं समङो! नैतिकता का नौटंकी है खाली. अब देखिए, बेचारे जीतन जी को 56 इंच के सीने के सामने लाकर रख दिये. इ कइसा नैतिकता है पाठक जी, बताइये तो मुख्यमंत्री बना भी दिये तो अइसा आदमी को जिसका नाम जीतन है, लेकिन खुदे चुनाव हारा हुआ है. मैंने कहा, ‘‘अरे बिहारी बाबू, महादलित को राज्य का मुखिया बना दिये सुशासन बाबू, कितना लोग है जो ऐसा कदम उठाता है भई.’’

पांडेय जी ने कहा, ‘‘ठीक कह रहे है पाठक जी, सुशासन बाबू के इस फैसले से सालों से टूटे रिश्ते भी ठीक हो गये, लालू जी ने भी समर्थन दिया भाई, वो भी अनकंडीशनल. समङो?’’ तभी बिहारी बाबू बोले, ‘‘देखिए साहेब, राजनीति में अनकंडीशनल कुछो नहीं होता है. सब अपना राजनीति चमकाये में लगा है. जनता समझदार हो गयी है जातिवाला कार्ड से अब जीत-हार तय नई होगा, समङो आप लोग. अरे इ चुनाव से कुछ तो सबक लीजिए!’’ पांडेय जी बोले, ‘‘देखिएगा, सुशासन बाबू फिर चुन के आयेंगे और बिहार के अच्छे दिन वापस आयेंगे.’’ बिहारी बाबू ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘सिर्फ बिहार के नहीं पूरे देश के अच्छे दिन आ गये हैं.’’ तभी मेरी नजर घड़ी पर पड़ी. मैंने कहा, ‘‘लंच का टाइम खत्म हो गया है. काम पर चलिए, नहीं तो अच्छे और बुरे दिन का फर्क अभिए पता चल जायेगा.’’

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