जब 16वीं लोकसभा का गठन हो जायेगा, तब विचारणीय प्रश्न यह होगा कि क्या संसद की कार्यवाही सुचारु रूप से चलेगी या फिर वही शोर-शराबा, हंगामा, संसदीय कार्यवाही स्थगित होना फिर से दिखेगा? आगामी लोकसभा और नये जनप्रतिनिधियों के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वे संसदीय मर्यादाओं का निर्वाह करें या यूं कहें कि नये सांसदों को असली परीक्षा की घड़ी से तब गुजरना होगा जब संसदीय कार्यवाही शुरू होगी.
फिलहाल जनता तो यही उम्मीद करती है कि पूर्व में शर्मसार कर देनेवाली घटनाएं फिर न घटें और गंठबंधन सरकार हो या पूर्ण बहुमतवाली अकेली पार्टी की सरकार, वह अपने चुनावी वादे पूरे करे. लोकतांत्रिक देश को सही ढंग से चलाने के लिए यह अति-आवश्यक है. वादे करते समय तो सारी पार्टियों ने हामी भरी है. अब नतीजों के बाद देखना यह है कि कौन कितने पानी में है.
सतीश सिंह, ई-मेल से