देश में चल रहे लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग मतदान प्रतिशत बढ़ाने को लेकर गंभीर है. लेकिन इसी बीच चुनाव बहिष्कार की खबरें भी आ रही हैं, खास कर नक्सल क्षेत्रों से जहां चुनाव प्रचार करने गये प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को धमकाया जाता है. वोट ना करने की धमकी लोगों को दी जाती है. इस पर कहा जा रहा है कि अगर आपको सारे प्रत्याशी नापसंद हैं तो नोटा के जरिये अपना विरोध दर्ज कर सकते हैं.
नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार का मतलब हम लोकतंत्र में उनके अविश्वास से लगाते हैं. लेकिन खबरें ऐसी भी आती हैं कि फलां क्षेत्र में जनसुविधा के अभाव से त्रस्त जनता ने मतदान का बहिष्कार करने और किसी भी राजनीतिक दल को प्रचार नहीं करने देने का एलान किया है. नक्सलियों के बारे में हम कहते हैं कि वे लोकतंत्र में भरोसा नहीं रखते और देश के दुश्मन भारत को तोड़ने के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन असुविधाओं से त्रस्त जनता के मामले में ऐसा नहीं है.
ये लोग जागरूक हैं. लोकतंत्र में वोट का महत्व भली-भांति जानते हैं और नोटा के विकल्प के बारे में भी. फिर भी अगर वे बहिष्कार की बात करते हैं तो स्थिति चिंताजनक है. अगर इन लोगों को मतदान के लिए नहीं समझाया जा सकता, तो फिर नक्सली संगठन तो दूर की चीज हैं. इस बेरुखी का एकमात्र कारण है शिक्षा, रोजगार, आर्थिक स्थिति, मूलभूत सुविधाओं के मामले में घोर असमानता. इससे ग्रस्त जनता लोकतंत्र मे क्या विश्वास करेगी? ये बातें सुविधाभोगी शहरी समाज महसूस नहीं कर सकता. अगर लोगों को इनके समाधान की जरा भी उम्मीद दिखेगी तो वोट प्रतिशत बढ़िया होगा. वरना आप चाहे दीपिका कुमारी की फोटो दिखाएं या दीपिका पादुकोण की, कोई खास फर्क पहीं पड़नेवाला.
राजन सिंह, जमशेदपुर