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केरल में खिसक रही है वाम मोर्चे की जमीन

Local body elections in Kerala : इस चुनावी नतीजे को कांग्रेस और भाजपा, दोनों अपनी उपलब्धि के रूप में बता रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नतीजे को जहां केरल की राजनीति में एक ऐतिहासिक पल बताया है, वहीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने यूडीएफ की जीत को उत्साह बढ़ाने वाली बताया.

Local body elections in Kerala : केरल में स्थानीय निकायों के चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने बड़ी जीत हासिल की है, जबकि सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) को बड़ा झटका लगा है. इन सबके बीच तिरुवनंतपुरम में भाजपा की विजय चौंकाने वाली है, जो प्रधानमंत्री की योजनाओं का प्रतिबंब हैं. वहां उसने माकपा के लंबे वर्चस्व को खत्म कर दिया है. गौरतलब है कि तिरुवनंतपुरम कांग्रेस सांसद शशि थरूर का क्षेत्र है. हालांकि शशि थरूर ने एक्स पर एक पोस्ट में यूडीएफ को राज्यभर में शानदार प्रदर्शन के लिए बधाई दी और कहा कि यह केरल के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक मजबूत राजनीतिक संकेत है.


केरल में छह नगर निगमों, 14 जिला पंचायतों, 87 नगरपालिकाओं, 152 ब्लॉक पंचायतों और 941 ग्राम पंचायतों में चुनाव हुए थे. यूडीएफ ने चार नगर निगमों-कोल्लम, कोच्चि, त्रिशूर और कन्नूर में तो जीत हासिल की ही, उसे सात जिला पंचायतों, 54 नगरपालिकाओं, 79 ब्लॉक पंचायतों और 505 ग्राम पंचायतों में भी विजय मिली. एलडीएफ को महज एक नगर निगम कोझिकोड समेत सात जिला पंचायतों, 28 नगरपालिकाओं, 63 ब्लॉक पंचायतों और 340 ग्राम पंचायतों में जीत मिली.

जबकि भाजपा ने तिरुवनंतपुरम नगर निगम के अतिरिक्त दो नगरपालिकाओं और 26 ग्राम पंचायतों में भी जीत हासिल की. चूंकि केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं, ऐसे में, तिरुवनंतपुरम की जीत को भाजपा स्वाभाविक ही केरल में एक नये अध्याय की शुरुआत के तौर पर देख रही है. इसका एक और संदेश यह है कि अगले विधानसभा चुनाव में एलडीएफ के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

इस नतीजे का एक और संदेश यह है कि लंबे समय से दो गठबंधनों के बीच बंटे केरल में अब भाजपा के रूप में तीसरे राजनीतिक दल की पैठ हो गयी है. इस चुनाव में तीन प्रमुख धर्मों ने भी अहम भूमिका निभायी. हिंदू भाजपा के साथ रहे, ईसाइयों ने कांग्रेस का समर्थन किया, तो मुसलमानों का बड़ा हिस्सा वाम मोर्चे के साथ खड़ा था. इस चुनावी नतीजे को कांग्रेस और भाजपा, दोनों अपनी उपलब्धि के रूप में बता रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नतीजे को जहां केरल की राजनीति में एक ऐतिहासिक पल बताया है, वहीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने यूडीएफ की जीत को उत्साह बढ़ाने वाली बताया.


ये नतीजे उस कांग्रेस के लिए निश्चित रूप से बड़ी जीत है, जो पिछले दस वर्ष से विपक्ष में है. कांग्रेस को इस चुनाव से पहले कई झटके लगे, जिनमें यौन शोषण की शिकायतों और अंदरूनी कलह के कारण पलक्कड़ के विधायक का पार्टी से निष्कासन शामिल था. इसके बावजूद कांग्रेस ने अपने प्रचार में सबरीमाला में सोने की चोरी के मामले को जोर-शोर से उठाया. नतीजे बताते हैं कि मध्य केरल में ईसाइयों की बड़ी आबादी ने यूडीएफ को समर्थन दिया. चुनाव में सत्तारूढ़ एलडीएफ ने हालांकि विकास और जनकल्याण पर केंद्रित अपने दस वर्ष की उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार किया, पर वह उतना असरदार साबित नहीं हो पाया. दूसरी तरफ यूडीएफ ने ज्यादा सामंजस्य बिठाकर प्रचार किया, जिसमें कचरा प्रबंधन, भ्रष्टाचार के आरोप और नागरिक सेवा जैसे ठोस जमीनी मुद्दे थे.

पंडालम जैसी कुछ नगरपालिकाओं में एलडीएफ के अंदरूनी झगड़े का भी उसकी पराजय में हाथ था. वाम मोर्चे को सबसे बड़ा झटका, जाहिर है, तिरुवनंतपुरम में ही लगा है, जहां पिछले पैंतालीस साल से माकपा का वर्चस्व था. तिरुवनंतपुरम नगर निगम के 101 वार्डों में से भाजपा ने 50 वार्डों पर जीत हासिल की है. वहां से जीते दो निर्दलीय अब प्रशासन का भविष्य तय करेंगे, क्योंकि निगम परिषद बनाने के लिए 51 सदस्यों की जरूरत है. आंकड़ा बताता है कि केरल में पिछले एक दशक में आरएसएस और भाजपा के सवा सौ कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गयी. वाम कैडर आधारित हिंसा के लिए कुख्यात केरल में इन हत्याओं के पीछे पीपल्स फ्रंट ऑफ इंडिया का हाथ था. संघ के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने की वजह यह रही कि आरएसएस ईसाई चर्चों के करीब आ रहा था.


तिरुवनंतपुरम में वाम मोर्चे की शिकस्त के कई कारण हैं. सबरीमाला मंदिर से सोने की कथित चोरी स्थानीय निकाय चुनाव में एक बड़ा मुद्दा थी. वाम मोर्चे के कमजोर होने का एक और कारण है मनुष्य और वन्यजीवों के बीच बढ़ता टकराव. केरल की 941 ग्राम पंचायतों में से एक चौथाई में वन्यजीवों के हमले की घटनाएं हाल के वर्षों में बढ़ी, जो सीधे-सीधे वाम मोर्चा सरकार द्वारा इस समस्या से प्रभावी ढंग से न निपट पाने का सबूत है. बढ़ती महंगाई और आवश्यक वस्तुओं की कीमत में तेजी ने भी लोगों को क्षुब्ध किया हो, तो आश्चर्य नहीं. इसके अलावा मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से का समर्थन भी विजयन सरकार खो चुकी है. दरअसल मुस्लिमों के बीच यह धारणा बन चुकी है कि सरकार ने हिंदुत्व के एजेंडे के खिलाफ अपना रुख नरम कर लिया है. वाम मोर्चे ने हाल ही में राज्य विधानसभा में तीसरे कार्यकाल के लिए सोशल मीडिया अभियान शुरू किया था. पर स्थानीय निकाय के चुनावी नतीजे तो यही बताते हैं कि यह अभियान मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को पसंद नहीं आया है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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