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DIVIDED POLITICS : राष्ट्रपति चुनाव की बिसात बिछनी शुरू, लेकिन बाजी किसके हाथ ?

आशुतोष कुमार पांडेय पटना : आगामी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासत तेज हो गयी है. एनडीए केंद्र की मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर मोदी फेस्ट मना रहा है, लेकिन दूसरी ओर ग्रैंड एलायंस ने सोनिया के नेतृत्व में दिल्ली में बैठक कर अपनी मंशासाफ कर दी है.विपक्षइस बाजी को अपने हाथ सेजानेदेनानहीं […]

आशुतोष कुमार पांडेय

पटना : आगामी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासत तेज हो गयी है. एनडीए केंद्र की मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर मोदी फेस्ट मना रहा है, लेकिन दूसरी ओर ग्रैंड एलायंस ने सोनिया के नेतृत्व में दिल्ली में बैठक कर अपनी मंशासाफ कर दी है.विपक्षइस बाजी को अपने हाथ सेजानेदेनानहीं चाहता है. जबकि, राष्ट्रपति चुनाव को एनडीए की नजर से आंकड़ों के आईनेमें देंखे, तो ऐसा लगता है कि बीजेपी जिसे चाहेगी, राष्ट्रपति वही बनेगा.हालांकिजानकार मानते हैं, बाजी कभी भी पलट सकती है? कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की ओर से एंटी एनडीए दलों की बुलायी गयी बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए. वहीं, बीजेपी पर लगातार हमलावर रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बुलाया नहीं गया. राजनीतिक जानकारों की मानें तोअसल खेल यही से शुरू होता है.

क्या है पूरा खेल ?

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो एनडीए के खिलाफ एकजुट हो रहे दलों में कुछ ऐसी बातें हैं जो उनकी एकजुटता पर थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन एक बड़ा सवाल खड़ा करती हैं. जानकार कहते हैं कि बीजेपी के खिलाफ सभी दल एक हों और एक फ्रंट बने यह मंशा सबसे पहले नीतीश कुमार के मन में आयी. उन्होंने पूर्व में मीडिया से बातचीत में कहा था कि बड़ी पार्टी होने के साथ उसका नेतृत्व कांग्रेस को करनी चाहिए. नीतीश की इस मंशा पर सोनिया गांधी ने मुहर लगा दी और गैर एनडीए दलों की एक बैठक दिल्ली में बुलायी. नीतीश कुमार इस बैठक में नहीं पहुंचे और उन्होंने अपने बदले शरद यादव को भेज दिया. हालांकि, नीतीश कुमार ने शनिवार को कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को यह सफाई दी कि सोनिया की भोज में शामिल न होने का लोगअनावश्यक ही गलत अर्थ लगा रहे हैं जबकि कांग्रेस महासचिव अहमद पटेल को उन्होंने पांच दिन पहले ही बता दिया था कि उनकी पार्टी की तरफ से पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव शामिल होंगे.

केजरीवाल पर सवाल

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर ग्रैंड एलायंश की मंशा है कि विपक्ष एकजुट हो. ऐसे में जब एनडीए के खिलाफ यह महागठबंधन तैयार हो रहा है, उसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का ना होना राजनीतिक जानकारों को आश्चर्य में डालता है. जानकार मानते हैं कि खबर यह मिली की सोनिया गांधी की ओर से बुलायी गयी बैठक में अरविंद केजरीवाल को न्योता नहीं मिला. विशेषज्ञों की मानें तो नीतीश कुमार का इस बैठक में नहीं शामिल होना और उनकी दी गयी सफाई से थोड़ा बहुत समझ में आता है, लेकिन केजरीवाल को इस बैठक से अलग रखना सियासत के लिहाज से कुछ और ही संदेश दे रहा है.

दिल्ली की बैठक के मायने

दिल्ली में चली बैठक से निकलकर जो बड़ी बात सामने आयी, वह यह कि असल मुद्दे पर चर्चा ही नहीं हुई. यानी, राष्ट्रपति चुनाव के लिए जुटे दलों के नेताओं ने बाकी सभी मुद्दों पर चर्चा की और राष्ट्रपति का चुनाव गौण हो गया. बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि बैठक में राष्ट्रपति चुनाव की जगह यूपी के सहारनपुर, कश्मीर और ईवीएम मशीन के डेमो पर चर्चा हुई. जानकार इस बात को विपक्ष में एका नहीं होने का कारण मानते हैं. वहीं दूसरी ओर जाने-मानें राजनीतिक जानकार प्रो. अजय कुमार झा कहते हैं कि बैठक का मूल लक्ष्य 2019 का लोकसभा चुनाव है और राष्ट्रपति चुनाव के बहाने सभी दलों के नजरिये को टटोला जा रहा है. वह कहते हैं कि सोनियाजी की बुलायी इस बैठक में एक दूसरे को कई फ्रंट पर नापसंद करने वाले नेता भी एक जगह पहुंचे, लेकिन नीतीशजी और केजरीवाल की गैर मौजूदगी इस ओर इशारा करती है कि बीजेपी के खिलाफ भले ही कोई अपने-अपने स्तर से हमला करे, लेकिन एक फ्रंट पर आकर एक स्वर में यह कठिन लगता है.

एकजुटता जरूरी

बैठक में जदयू की ओर से शरद यादव-केसी त्यागी, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, बसपा सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी की ओर से रामगोपाल यादव के साथ अखिलेश यादव भी पहुंचे थे. राजनीतिक विशेषज्ञ कई कारणों से राष्ट्रपति चुनाव की बाजी किसी के हाथ में नहीं देख रहे हैं. उनका मानना है कि नीतीश और केजरीवाल का बैठक में नहीं होना यदि तात्कालिक है तो कोई बात नहीं, लेकिन आगे भी इस तरह का हो तो यह विपक्षी एकता के लिये गंभीर साबित हो सकता है. विशेषज्ञों की मानें तो ग्रैंड एलायंस के लिये आशा की किरण एनडीए से नाराज दल थोड़ा बहुत बन सकते हैं. जैसे, राष्ट्रपति चुनाव के लिए शिवसेना के पास 2.34 फीसदी मत है. जानकार कहते हैं कि ग्रैंड एलायंस के साथ बाकी दल और शिवसेना मिल जाए, तो बाजी पलट भी सकती है. हालांकि, यह भी दिगर है कि तमाम गतिरोध के बावजूद शिवसेना का स्टैंड अभी भी एनडीए के खिलाफ है कि नहीं, यह पता नहीं चल पाया है. जबकि, कहा जा रहा है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति ने जरूर यह इशारा किया है कि वह राज्य हित में बीजेपी के उम्मीदवार को समर्थन कर सकती है. तेलंगाना राष्ट्र समिति के पास 1.99 फीसदी मत हैं.

दिलचस्प होता चुनाव

जानकारों की मानें तो कई बार सार्वजनिक मौके पर पीएम मोदी भी राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की खुलकर तारीफ कर चुके हैं, वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी प्रणव मुखर्जी को अपना पसंदीदा उम्मीदवार बता चुके हैं. मीडियामेंचल रही खबरों के मुताबिक, ग्रैंड एलायंस की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में शरद पवार, शरद यादव और मुलायम सिंह से लेकर मीरा कुमार तक की चर्चा है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है किसी भी नाम पर विपक्ष का एकजुट होनाजरूरीहै. बैठक के बाद ममता बनर्जी का मीडिया को यह कहना कि राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के चयन पर सहमति नहीं बनने की स्थिति में एक कमेटी का गठन किया जायेगा, जो इसके लिये रास्ता सुझाएगी.अपने-आपमें कई सवाल खड़े करता है. राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 25 जुलाई से पहले होना है, क्योंकि 25 जुलाई को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कार्यकाल खत्म हो रहा है.ऐसेमें कब कमेटी बनेगी, कब उम्मीदवारपर सहमति बनेगी. यह बड़े सवाल हैं. फिलहाल, इन सारी कवायदों के बीच राष्ट्रपति का चुनाव दिलचस्पहोता जा रहा है, देखना यह होगा कि बाजी किसके हाथ में जाती है.

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