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धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को एकजुट करने की तैयारी में तृणमूल

कोलकाता: वर्ष 2019 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में तृणमूल कांग्रेस बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में है. वह चाहती है कि भाजपा और आरएसएस की विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ धर्म-निरपेक्ष दल एकजुट हों. तृणमूल सुप्रीमो सह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कुछ दिन पार्टी नेताओं से एक पुस्तिका तैयार करने को कहा था, जिसमें […]

कोलकाता: वर्ष 2019 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में तृणमूल कांग्रेस बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में है. वह चाहती है कि भाजपा और आरएसएस की विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ धर्म-निरपेक्ष दल एकजुट हों. तृणमूल सुप्रीमो सह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कुछ दिन पार्टी नेताओं से एक पुस्तिका तैयार करने को कहा था, जिसमें देश में सांप्रदायिक राजनीति की बुराइयों और भाजपा, आरएसएस के खतरे को रेखांकित किया जाए.

तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हम देश में धर्म-निरपेक्ष दलों और पार्टियों को एकजुट करना चाहते हैं. धर्म निरपेक्ष ताकतों को साथ लाने में तृणमूल अहम भूमिका अदा करेगी. पुस्तिका का मसौदा तैयार कर लिया गया है. शीर्ष नेतृत्व से मंजूरी मिलने का इंतजार है. सांप्रदायिक राजनीतिक के खिलाफ अपील के अलावा पुस्तिका में तृणमूल सरकार की उपलब्धियां, नीतियां और सिंगूर भूमि अधिग्रहण की तफसील होगी. ममता बनर्जी ने राज्य में भगवा ब्रिगेड के उभार के खिलाफ तीन सूत्री कार्यक्रम तैयार किया है.

पुस्तिका इसी कार्यक्रम का हिस्सा है. राज्यभर में तीन से 11 नवंबर तक छोटी रैलियां निकाली जायेंगी और नुक्कड़ सभाएं की जाएंगी. इसके जरिये लोगों को राज्य पर सांप्रदायिकता और भाजपा-आरएसएस से तथाकथित खतरे के बारे में जागरूक किया जायेगा. इस पुस्तिका में आगामी संसद सत्र में भाजपा के खिलाफ तृणमूल के आक्रामक रुख के बारे में भी बताया जाएगा. एक तृणमूल सांसद ने कहा कि हम उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि इसके नतीजे बहुत हद तक यह साफ करेंगे कि हवा का रुख किस तरफ है. भाजपा देश में तेजी से लोकप्रियता खो रही है. कांग्रेस अब भी अस्त-व्यस्त है.

विपक्ष में अब भी एक खालीपन है. जैसे वक्त गुजरेगा, भाजपा विरोधी मंच की अपील गति पकड़ेगी. हम इस खालीपन को भरना चाहते हैं. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जनादेश के बाद तृणमूल की लोकप्रियता बढ़ी है. तृणमूल नेता ने इस बात पर खेद जताया कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 34 सीटें जीतने के बावजूद पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में कोई भूमिका नहीं निभा सकी, क्योंकि भाजपा को खुद ही बहुमत मिल गया था. तृणमूल 2014 के बाद बड़ी भूमिका नहीं निभा सकी. लेकिन वर्ष 2019 के बाद यह स्थिति नहीं होगी. चाहे धर्म निरपेक्ष मोर्चा हो या संघीय मोर्चा, तृणमूल के बिना भाजपा विरोधी मंच नहीं बन सकता.

Prabhat Khabar Digital Desk
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