नयी दिल्ली : मुस्लिम परिवार में शादी तोड़ने के लिए तीन तलाक पर दूसरे दिन की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि तीन तलाक शादी खत्म करने का सबसे खराब और अवांछनीय रूप है. हालांकि, इसके पहले शीर्ष अदालत ने गुरुवार को पहले दिन की सुनवाई के दौरान यह कहा था कि पहले वह यह तय करेगा कि यह इस्लाम का मौलिक हिस्सा है या नहीं. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह साफ कर दिया कि मुस्लिमों में प्रचलित बहुविवाह के मसले पर संभवत: विचार नहीं किया जायेगा, क्योंकि यह तीन तलाक से जुड़ा मुद्दा नहीं है.
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न्यायमूर्ति जोसेफ कुरियन, आरएफ नरीमन, यूयू ललित तथा अब्दुल नजीर की सदस्यता वाली पीठ ने इस मामले में विचारणीय मुद्दे तय करते हुए कहा कि हम इस पर गौर करेंगे कि क्या तीन तलाक पवित्र है और क्या इसे मौलिक अधिकार की तरह लागू किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि इस पीठ में विभिन्न धर्मों सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम से ताल्लुक रखने वाले जज शामिल हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि इस निष्कषर्ष पर पहुंचता है कि तीन तलाक धर्म का मौलिक हिस्सा है, तो वह उसकी संवैधानिक वैधता के सवाल में नहीं जायेगा.
करीब छह दिन होने वाली सुनवाई के पहले दिन विभिन्न पक्षों के वकीलों ने दलीलें पेश की. अमित सिंह चड्ढा (याचिकाकर्ता सायरा बानो के वकील) ने सुनवाई की शुरुआत करते हुए कहा कि तीन तलाक इस्लाम का मौलिक हिस्सा नहीं है. इसलिए इसे हटाया जा सकता है. इसे गैर-इस्लामिक बताते हुए पाकिस्तान तथा बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों का उदाहरण दिया. इस पर कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर हम विभिन्न इस्लामिक देशों के कानूनों को देखना चाहेंगे.
इंदिरा जयसिंह (एक अन्य याचिकाकर्ता की वकील) ने कहा कि पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत कानून माना जायेगा. इस हिसाब से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला कानून नहीं रह सकता. एकतरफा तलाक गैर-कानूनी है. इसके असर पर विचार के लिए इसे ‘न्यायिक निरीक्षण’ के तहत लाया जाना चाहिए.
सलमान खुर्शीद (निजी तौर पर कोर्ट की मदद करने वाले वकील) ने कहा कि तीन तलाक ‘नॉन इश्यू’ (कोई मुद्दा नहीं) है, क्योंकि पति-पत्नी के बीच समझौते की कोशिशों के बिना इसे पूरा ही नहीं माना जाता.. एक बार में तीन तलाक नहीं होता, बल्कि यह प्रक्रिया तीन महीने की होती है. कोर्ट ने कहा कि क्या सुलह की कोशिश की बात संहिताबद्ध (कोडिफाइड) है? खुर्शीद ने कहा, नहीं.
कपिल सिब्बल (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील) ने कहा कि यह एक नॉन इश्यू है, क्योंकि कोई भी विवेकशील मुस्लिम खुशनुमा सुबह में जागकर तलाक, तलाक और तलाक नहीं कहेगा. तुषार मेहता (एएसजी, केंद्र की ओर से) ने कहा कि सरकार तीन तलाक को लिंग आधारित भेदभाव मानती है. यह बराबरी के हक का उल्लंघन करता है. इसलिए सरकार तीन तलाक का विरोध करती है.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए छह दिन तय किये. तीन दिन उनके लिए, जो तीन तलाक को चुनौती दे रहे हैं और तीन दिन उनके लिए जो इसका बचाव कर रहे हैं. इसके तहत पीठ द्वारा तय किये गये सवालों पर बहस के लिए दोनों को दो-दो दिन और प्रतिवाद के लिए एक-एक दिन मिलेगा. दलीलों को दोहराये जाने पर कोर्ट वकीलों को रोक देगा. वकीलों को तीन तलाक की वैधता विषषय पर फोकस करना होगा.
मामले में कुल 30 पक्ष हैं. केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी 15 मई को दलीलें रखेंगे. सात याचिकाओं पर सुनवाई पीठ सात याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें पांच पृथक रिट याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं. उन्होंने समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती दी है. याचिकाओं में दावा किया गया है कि तीन तलाक असंवैधानिक है.