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नरेंद्र मोदी के पदचिह्नों पर ग्लोबल लीडर्स

भारत में वर्ष 2014 में पहली बार 30 साल बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. उन्होंने देश को कई विजन दिये. 15 अगस्त को लाल किले से पहली बार देश को संबोधित किया, तो ‘मेक इन इंडिया’ का नारा दिया. दुनिया भर के निवेशकों का आह्वान किया कि वे […]

भारत में वर्ष 2014 में पहली बार 30 साल बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. उन्होंने देश को कई विजन दिये. 15 अगस्त को लाल किले से पहली बार देश को संबोधित किया, तो ‘मेक इन इंडिया’ का नारा दिया. दुनिया भर के निवेशकों का आह्वान किया कि वे भारत में फैक्टरी स्थापित करें, ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके.

मोदी के इस विजन को दुनिया भर नेता चुरानेलगे हैं. इसका दुष्प्रभाव भारतीय कामगारों पर ही पड़नेलगा है. विदेशों में भारतीयों का काम करना मुश्किल होने जा रहा है, क्योंकि वीजा न मिलने से देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ेगी, क्योंकि अमेरिका के बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने वीजा नियमों को सख्त कर दिया है. इसका एकमात्र उद्देश्य बड़ी संख्या में भारतीय तकनीकविदों के इन देशों में नौकरी के लिए जाने से रोकना और वहां के स्थानीय लोगों को रोजगार देना है.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन’ का नारा देकर बड़ी संख्या में उन भारतीयों की आकांक्षाओं पर कुठाराघात किया है, जो अमेरिका में नौकरी करनेकी इच्छा रखते थे. ट्रंप ने भारतीय आइटी कंपनियों पर आरोप लगाया कि वह अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां छीन रही हैं. इसलिए उन्होंने एच-1बी वीजा नियमों को सख्त करने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिये.

इससे पहले, मंगलवार को ऑस्ट्रेलिया सरकार ने अपने 457 वीजा (अमेरिका के एच1बी की तर्ज पर दिया जा रहा वीजा) कार्यक्रम को बंद कर दिया. विदेशों से काम करने के लिए ऑस्ट्रेलिया जानेवालों को यह वीजा मिलता था. इन दोनों फैसलों का सीधा असर भारत की आइटी कंपनियों पर पड़ेगा. ऑस्ट्रेलिया में ये वीजा प्रतिवर्ष लगभग 60 फीसदी और अमेरिका में 70 फीसदी भारतीयों को दिया जाता है.

अमेरिका का एच-1बी और ऑस्ट्रेलिया का 457 वीजा कार्यक्रम नॉन-इमीग्रेंट वीजा है. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की कंपनियां विदेशों से इंजीनियर, साइंटिस्ट और कंप्यूटर प्रोग्रामर को अपने देश नौकरी करने के लिए इसी वीजा पर बुलाती हैं. इसके लिए भारतीय कंपनियों को वर्क आउटसोर्सिंग के जरिये ये वीजा आवंटित किया जाता है. अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय कंपनियां वर्कफोर्स को अमेरिका भेजती हैं.

ट्रंप का आरोप है कि भारतीय कंपनियां एच-1बी वीजा नियमों का उल्लंघन करते हुए अमेरिकी नागरिकों की नौकरी छीन रही हैं. भारतीय कंपनियों पर ऑस्ट्रेलिया में भीयहीआरोप लग रहे हैं.

ज्ञात हो कि अमेरिका का एच-1बी वीजा कार्यक्रम उस स्थिति में जारी किया जाता है, जब किसी काम के लिए किसी खास टैलेंट की जरूरत पड़ती है और अमेरिका में ऐसा व्यक्ति उपलब्ध नहीं होता. ट्रंप प्रशासन का मानना है कि भारतीय आइटी कंपनियां इस वीजा के सहारे ऐसे प्रोफेश्नल्स को भी अमेरिका बुला रहे हैं, जिन्हें कम वेतन देकर अमेरिका में काम कराया जा रहा है. फलस्वरूप अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां खत्म हो रही हैं.

भारतीय कंपनियों की बढ़ जायेंगी मुश्किलें
अमेरिकीप्रशासनकी मुहिम सफल रही, तो भारतीय कंपनियों का अमेरिका में काम करना मुश्किल हो जायेगा. उन्हें अपनी ज्यादातर जरूरतों के लिए अमेरिकी नागरिकों को नौकरी देनीहोगीया एच-1बी वीजा पर आनेवालों को ज्यादा भुगतान करना होगा. दरअसल, प्रस्तावमेंकहा गया हैकिएच-1बी वीजा पर काम करनेवालों की न्यूनतम सैलरी 60 हजार डॉलर से बढ़ा कर 1.10 लाख डॉलर कर दी जाये. यदि ऐसा हुआ, तो भारतीय कंपनियों का मुनाफा बहुत कम हो जायेगा.

कंपनियों के मुनाफे में कमी, एच-1बी वीजा वालों का वर्तमान वेतन
कंपनी प्रॉफिट मार्जिन मेंकमी अभी वार्षिक सैलरी
टीसीएस 2.30 फीसदी 70,000 डॉलर
इंफोसिस 1.70 फीसदी 80,000 डॉलर

मोदी के सपनों पर कुठाराघात
प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अपने पहले अमेरिका दौरे पर नरेंद्र मोदी ने मेडिसन स्क्वायर में अपने ऐतिहासिक भाषण में अपने ग्लोबल ड्रीम को परिभाषित किया था. उन्होंने कहा था कि जिस तरह पूरी दुनिया से लोग अमेरिका आते हैं, वैसे ही भारत से लोग पूरी दुनिया में जाते हैं. देश में स्किल डेवलपमेंट पर जोर देते हुए मोदी ने कहा था कि उनकी कोशिश होगी कि पूरी दुनिया में भारतीय स्किल की जरूरत पड़े, जिससे मौजूदा सदी में भारत पूरी दुनिया के लिए वर्कफोर्स प्रोवाइडर बन सके. लेकिन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के फैसले ने उनके इस सपने पर एक तरह से कुठाराघात किया है.

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