रायपुर : छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने नक्सलियों को हिंसा का रास्ता छोड़ने की बात कही है. उन्होंने कहा कि अगर नक्सली हिंसा छोड़ते हैं तो उन्हें वह गले लगाने के लिए तैयार हैं. डॉ रमन सिंह ने कहा कि नक्सल गतिविधियों में शामिल भटके हुए लोग वास्तव में इस विशाल राष्ट्र रुपी परिवार के अंग हैं. अगर वे हिंसा और आतंक छोड़कर समाज और देश की मुख्य धारा में शामिल होना चाहें तो हम उन्हें गले से लगाने के लिए तैयार रहेंगे.
मुख्यमंत्री आज नक्सल हिंसा प्रभावित बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर में प्रसिद्घ बस्तर दशहरा के अवसर पर आदिवासी समाज के परम्परागत मुरिया दरबार को सम्बोधित कर रहे थे. रमन सिंह ने इस अवसर पर नक्सलियों से लोकतंत्र और विकास की मुख्य धारा से जुड़ने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि इन लोगों को अपनी अंतरात्मा से विचार करना चाहिए कि किसी भी समस्या का समाधान हिंसा अथवा बंदूक से नहीं हो सकता.
सिंह ने भटके हुए लोगों, विशेष रुप से युवाओं का आह्वान किया कि वे अपने घर-परिवार, समाज, राज्य और देश के हित में सोचे और हिंसा का रास्ता जल्द से जल्द छोडें. युवा अपनी ऊर्जा रचनात्मक कार्यो में लगाएं. मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सल समस्या के निदान के लिए हम सभी लोगों से सहयोग लेने को तैयार हैं.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं से आदिवासी बहुल बस्तर अंचल में जनता की सामाजिक आर्थिक बेहतरी का और विश्वास का एक नया वातावरण निर्मित हुआ है. नगरनार का इस्पात संयंत्र बहुत जल्द शुरु हो जाएगा, जिससे इस इलाके में रोजगार बढेगा और लोगों के जीवन में समृद्घि आएगी.
मुख्यमंत्री ने कहा कि अपनी योजनाओं के जरिए शासन और प्रशासन इस अंचल में दूरदराज के गांवों तक लोगों के बीच पहुंचकर उनके हर सुख-दुख में भागीदार बन रहा है. मुख्यमंत्री ने जगदलपुर में दन्तेश्वरी मंदिर के नजदीक सिराहासार भवन में आयोजित बस्तर दशहरे के वार्षिक अनुष्ठान मुरिया दरबार में अंचल के जनप्रतिनिधियों और गांव-गांव से आए आदिवासी समाज के लोगों के साथ बैठकर उनके गांवों और इलाकों का हालचाल जाना.
रमन सिंह ने कहा कि हर जिले, हर विकासखण्ड में बडी संख्या में आश्रम-स्कूल और छात्रावास खोले गए हैं. स्कूलों में बच्चों के मध्याह्न भोजन की बेहतर व्यवस्था की गयी है. नक्सल पीडित बच्चों के लिए पोटा केबिन जैसे आवासीय स्कूल संचालित किए जा रहे हैं. इन सुविधाओं का लाभ यहां के बच्चों को मिलना चाहिए. उन्होंने आदिवासी समाज के इन सभी प्रतिनिधियों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि उनके क्षेत्र के हर गांव और हर घर का हर बच्चा स्कूल जरुर जाए.
बस्तर दशहरा लगभग 75 दिनों तक चलने वाला देश और दुनिया में अपने ढंग का अनोखा आयोजन है. इसमें विभिन्न रीति-रिवाजों के साथ शक्ति की देवी मां दन्तेश्वरी की पूजा-अर्चना होती है. दंतेवाडा की माई दन्तेश्वरी के साथ पूरे इलाके के गांव-गांव से देवी-देवताओं की डोली यहां आती है. सैकडों वर्ष पुराना बस्तर दशहरा आदिवासी समाज की गौरवशाली समृद्घ परम्परा और सामाजिक समरसता का प्रतीक है.