नयी दिल्ली : कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीशा आरएम लोढ़ा ने इस सिस्टम की तारीफ की . कॉलेजियम सिस्टम के जरिये होने वाली जजों की नियुक्ति को लोढ़ा ने सही ठहराया और कड़े शब्दों में कहा कि न्यायपालिका पर लोगों का जो भरोसा है, उसे तोड़ने की कोशिश न की जाये.
मुख्य न्यायाधीश ने इसे न्यायपालिका की छवि खराब करने वाला बताया. कॉलेजियम सिस्टम की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि इस सिस्टम के पहले बैच से आनेवाला जज मैं हूं और अगर यह सिस्टम गलत है, तो हम भी गलत हैं. जस्टिस ने कहा कि आज हमारे समाज में कई तरह की बुराइयां घर कर गयीं हैं और जज भी समाज से ही आते हैं, इसलिए हो सकता है कि उनमें कुछ खराबी हो. उन्होंने कहा कि कोई भी परफेक्ट नहीं होता है.
प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, न्यायपालिका को बदनाम करने के लिए भ्रामक अभियान चल रहा है और गलत सूचना फैलाने के बार-बार प्रयास किये गये हैं. न्यायालय ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए की. इसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएल मंजूनाथ के नाम की पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के रुप में सिफारिश करने के कॉलेजियम के फैसले को गैर बाध्यकारी घोषित करने की मांग की गयी थी.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज मार्कंडेय काटजू ने न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था, साथ ही यूपीए सरकार ने जजों की नियुक्ति में कॉलेजियम सिस्टम की जगह जुडिशल अपॉइंटमेंट कमीशन बिल लाने की पहल की थी. जिसके तहत जजों की नियुक्ति का प्रावधान है. इस बिल में यह व्यवस्था है कि जजों की नियुक्ति छह सदस्यीय कमीशन के द्वारा हो, जिसमें चीफ जस्टिस के अलावा दो सीनियर जज, कानून मंत्री सहित दो प्रमुख कानूनविदों को भी रखा जाये.
क्या है कॉलेजियम सिस्टम
न्यायपालिका के जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण कॉलेजियम सिस्टम के जरिये होती है. इस सिस्टम के तहत भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के चार जज जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण से जुड़े मुद्दे का निर्णय करते हैं. इस सिस्टम का उल्लेख संविधान में नहीं है. संविधान की धारा 124 सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति से संबंधित है.