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”INX मीडिया मामले में FIPB को नहीं दी गयी नियमों के उल्लंघन की जानकारी”

नयी दिल्ली : आर्थिक मामलों के विभाग के पूर्व सचिव डी सुब्बाराव ने बताया कि आईएनएक्स मीडिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए अनुमति देने में हुए ‘उल्लंघनों’ को विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड (एफआईपीबी) के संज्ञान में नहीं लाया गया. उन्होंने यह जानकारी इस सौदे में मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार मामले के जांचकर्ताओं को दी. […]

नयी दिल्ली : आर्थिक मामलों के विभाग के पूर्व सचिव डी सुब्बाराव ने बताया कि आईएनएक्स मीडिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए अनुमति देने में हुए ‘उल्लंघनों’ को विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड (एफआईपीबी) के संज्ञान में नहीं लाया गया. उन्होंने यह जानकारी इस सौदे में मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार मामले के जांचकर्ताओं को दी. आधिकारिक दस्तावेज इसका खुलासा करते हैं.

इसे भी देखें : INX मीडिया: जब जज ने कहा- चिदंबरम पर आरोप गंभीर, रिमांड जरूरी, जानें 15 मई 2017 से अबतक क्या-क्या हुआ

आईएनएक्स मीडिया सौदे के समय एफआईपीबी मामलों के जिम्मेदार अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी जांच एजेंसियों को दिये बयान में यही जानकारी दी कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियमों में हुए उल्लंघन को सरसरी तौर पर अनुमोदित किये जाने के बजाय भारतीय रिजर्व बैंक के पास भेजा जाना चाहिए था. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई इस मामले में क्रमश: मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही हैं. इस मामले में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को सीबीआई ने गिरफ्तार किया है.

ईडी को दिए अपने बयान में सुब्बाराव ने कहा कि एफआईपीबी इकाई को कंपनी से आगे के निवेश के बारे में पुष्टि करनी चाहिए थी कि क्या आईएनएक्स न्यूज प्राइवेट लिमिटेड में निवेश किया गया. यदि आगे के निवेश की बात पक्की है और इसकी पुष्टि कर ली गयी, तो यह एफआईपीबी नियमों का उल्लंघन बनता है. एफआईपीबी की इकाई को मामले की पूरी जानकारी एफआईपीबी को देनी चाहिए थी, ताकि उचित फैसला किया जाता.

वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग का सचिव एफपीआईबी का पदेन अध्यक्ष होता था. आंध्र प्रदेश के वर्ष 1972 बैच के आईएएस अधिकारी सुब्बाराव उस समय आर्थिक मामलों के सचिव थे. बाद में वह रिजर्व बैंक के गवर्नर भी बने. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 2017 में एफपीआईबी को भंग कर दिया था. सुब्बाराव ने जांचकर्ताओं को बताया कि आमतौर पर एफपीआईबी सचिवालय के किसी निदेशक या उप सचिव की जिम्मेदारी होती है कि वह सेबी या आरबीआई के दिशानिर्देशों का अनुपालन कराये और किसी उल्लंघन की जानकारी एफपीआईबी के संज्ञान में लाये, ताकि उस उल्लंघन से निपटने के बारे में निर्णय किया जा सके.

उन्होंने बताया कि आम प्रक्रिया में ऐसे मामलों को विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम के तहत उचित निर्णय लेने के लिए रिजर्व बैंक के पास भेज दिया जाता है, लेकिन इस मामले में उल्लंघन की जानकारी एफपीआईबी के संज्ञान में ही नहीं लायी गयी. सुब्बाराव ने अपने बयान में यह कहा है. उनका बयान पीएमएलए की धारा 50 के तहत लिया गया. मनी लांड्रिंग रोधी कानून (पीएमएलए) के तहत दिये गये बयान को अदालत में माना जाता है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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