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दिल्ली प्रदूषण : क्यों भारतीय शहरों में घुट रहा है दम ?

दिल्ली में छाये घने कुहरे ने शहरी जीवन के सामने कई सवाल छोड़ दिये हैं. अगर शहरों में सांस लेने में भी तकलीफ होने लगे तो फिर भारत के तेज विकास का क्या मतलब है? तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण और फिर उससे पैदा हो रही हर रोज नयी परेशानी को लेकर अचानक से कोई […]

दिल्ली में छाये घने कुहरे ने शहरी जीवन के सामने कई सवाल छोड़ दिये हैं. अगर शहरों में सांस लेने में भी तकलीफ होने लगे तो फिर भारत के तेज विकास का क्या मतलब है? तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण और फिर उससे पैदा हो रही हर रोज नयी परेशानी को लेकर अचानक से कोई समाधान भी निकाला नहीं जा सकता. विशेषज्ञ इसके लिए असमान विकास और औद्योगिकीकरण को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे और बेंगलुरू नौकरियों के केंद्र बन गये और छोटे शहर पीछे छूटते गये. जहां – जहां नौकरियों की कमी थी, लोग पलायन करने लगे. लिहाजा बेहद कम समय में रियल इस्टेट का कारोबार बढ़ने लगा.

अंतर्राष्ट्रीय अरबन प्लानरों की मुताबिक भारत में उपभोक्तावाद अपने चरम पर है.ज्यादातर लोग कार खरीदने में रूचि दिखा रहे हैं. भारतीय शहरों को प्रकृति और कृषि दोनों से जोड़ना चाहिए. ग्रामीण इलाकों में शहरी ऊर्जा की जरूरत है. वहीं शहरों में पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन होना चाहिए. भारत में अब गार्डेन सिटी की जरूरत है. पार्किंग स्पेस से ज्यादा ग्रीन स्पेस की जरूरत है. ध्यान देने वाली बात है कि शहर सिर्फ कम्यूनिटी नहीं है. भारत में यह तय करने वाला कोई नहीं है कि कहां इमारत बनाया जाये और कहां खुला स्पेस छोड़ा जाये. अगर आप अच्छा शहर चाहते हैं तो आम लोगों के आइडिया को शामिल करना होगा. शहर में सिर्फ वर्तमान नहीं बल्कि इसमें अतीत भी बसता है और भविष्य की उम्मीदें भी इस पर टिकी रहती है.

क्यों जरूरी है बेहतरीन आर्किटेक्चर

भारत के मशहूर आर्किटेक्ट बी भी दोशी के मुताबिक इमारत और शहर हमारे शरीर और मन का ही विस्तार है. यह हमारे जीवन का हिस्सा है. जब आप इस तरीके से सोचने लगते हैं तब ही आप किसी शहर के साथ न्याय कर सकते हैं. उन्होंने भारतीय शहरों के बारे में एक बार बात करते हुए कहा था कि चंडीगढ़ शहर के वास्तुकार ली कार्बूजियर की मशहूर टिप्पणी की बात की जिसमें वे कहते थे कि बिल्डिंग और इंसान के बीच एक खास तरह का रिश्ता होता है. इस रिश्ते का असर लाइफ क्वालिटी पर भी पड़ता है.

बी भी दोशी के मुताबिक हमारे पुराने शहर आज के तुलना में बनावट की दृ्ष्टि से ज्यादा संपन्न थे. चाहे आप जैसेलमेर का किला, केरल का मंदिर देखें हर जगह लाइट के क्वालिटी, छत से लेकर खुले स्पेस तक का ख्याल रखा गया है. दोशी के मुताबिक आज आर्किटेक्चर की चर्चा आम लोगों के बीच बहुत कम होती है. इसमें बदलाव होनी चाहिए. देश के बड़े शहरों में ही डिजायन के स्कूल क्यों है. हम क्यों नही बेयरफुट आर्किटेक्ट तैयार कर सकते हैं. छोटे शहरों में अच्छे संस्थान होने चाहिए.

Prabhat Khabar Digital Desk
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