नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह राजनीतिक पक्षपात के पहलू पर गौर नहीं करेगा, लेकिन केवल इस बात की जांच करेगा कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) और सतर्कता आयुक्तों के पदों पर नियुक्त व्यक्ति बेदाग छवि होने का मानदंड पूरा करता है या नहीं. शीर्ष अदालत 2015 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें वर्तमान सीवीसी केवी चौधरी और सतर्कता आयुक्त (वीसी) टीएम भसीन की नियुक्ति पर यह आरोप लगाते हुए चुनौती दी गयी थी कि उनका स्वच्छ रिकॉर्ड नहीं है और उनकी नियुक्ति के दौरान अपारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया गया. चौधरी को सीवीसी पद पर 06 जून, 2015 को जबकि भसीन को 11 जून, 2015 को वीसी नियुक्त किया गया था.
इसे भी पढ़ें: एम्स सीवीसी विवाद : क्या मोदी से झूठ बोलते हैं उनके मंत्री, नेता व अफसर?
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एमएम शांतागौदार की पीठ ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से पूछा कि क्या प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और नेता प्रतिपक्ष वाली चयन समिति द्वारा किया गया फैसला सर्वसम्मति से किया गया. वेणुगोपाल ने कहा कि हां, यह प्रशासनिक फैसला था. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि चौधरी के खिलाफ कई ज्ञापनों के बावजूद सरकार ने उन्हें सीवीसी के रूप नियुक्त किया, क्योंकि वह उनके पसंदीदा उम्मीदवार थे.
हालांकि, पीठ ने कहा कि उसके सामने सवाल यह है कि इन पदों पर नियुक्त व्यक्ति बेदाग छवि के हैं या नहीं. पीठ ने कहा कि सवाल बेदाग छवि का है, राजनीतिक पक्षपात का नहीं. व्यक्ति बेदाग छवि का होना चाहिए. हम इस पहलू पर गौर करेंगे. वेणुगोपाल ने दलील दी कि ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा का विस्तार बहुत सीमित है.
इस पर पीठ ने कहा कि मामला सीवीसी और वीसी की नियुक्ति से जुड़ा है और कुछ सामग्री है, जिसमें ‘खास सज्जन’ के बारे में ‘कुछ खास टिप्पणियां’ मौजूद हैं. पीठ ने वेणुगोपाल से इस मामले में दलीलें देने से पहले फाइलों पर गौर करने को कहा और आगे की सुनवाई के लिए सात सितंबर की तारीख तय की.