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Gallstones in Children: 6 साल तक के बच्चों में बढ़ रहे हैं पित्त की पथरी के मामले, डॉक्टरों ने दी समय पर पहचान और लाइफस्टाइल सुधारने की चेतावनी

Gallstones in Children: एक समय केवल वयस्कों की बीमारी मानी जाने वाली पित्त की पथरी अब भारत में बच्चों को भी तेजी से प्रभावित कर रही है. इस बढ़ते रुझान को देखते हुए शिशु रोग विशेषज्ञ अधिक जागरूकता और रोकथाम की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं.

Gallstones in Children: बच्चों के स्वास्थ्य में चौंकाने वाले बदलाव देखने को मिल रहे हैं. देशभर के अस्पताल और क्लीनिक बता रहे हैं कि बच्चों में पित्त की पथरी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. पहले इसे केवल मध्यम आयु वर्ग की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब 6 साल तक के बच्चों में भी इसके मामले सामने आ रहे हैं, जिससे डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ गई है. पित्त की पथरी ठोस जमाव होता है जो पित्ताशय में बनता है. यह अक्सर कोलेस्ट्रॉल या बिलीरुबिन से बना होता है. कई बार इसके लक्षण नहीं दिखते, लेकिन जब यह पित्त के प्रवाह को रोक देता है, तो तीव्र पेट दर्द, मतली, उल्टी और पाचन संबंधी समस्या पैदा हो सकती है.

डॉ. संदीप कुमार सिन्हा ने कही यह बात

गुरुग्राम स्थित मेदांता-द मेडिसिटी में बाल शल्य चिकित्सा एवं बाल मूत्रविज्ञान विभाग के निदेशक डॉ. संदीप कुमार सिन्हा ने कहा, “हम शहरी इलाकों में बच्चों में पित्त की पथरी के मामलों में स्पष्ट वृद्धि देख रहे हैं,”. “इसके कारण अनेक हैं- मोटापा, खराब खानपान की आदतें, अनुवांशिक प्रवृत्ति और थैलेसीमिया जैसी कुछ रक्त संबंधी बीमारियां.” डॉ. सिन्हा के अनुसार, यह समस्या अक्सर अनदेखी रह जाती है क्योंकि इसके लक्षण अस्पष्ट होते हैं. “बच्चे पेट दर्द की शिकायत कर सकते हैं या खाना खाने से मना कर सकते हैं और माता-पिता इसे सामान्य पाचन समस्या मान लेते हैं. लेकिन ऊपरी पेट में लगातार या बार-बार होने वाला दर्द कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.”

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सर्वेक्षण में सामने आयी यह बात

भारतीय शिशु रोग अकादमी द्वारा पांच महानगरों में किए गए हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि पेट दर्द की वजह से अस्पताल में भर्ती किए गए हर 200 बच्चों में से लगभग 1 बच्चे को पित्त की पथरी थी. यह समस्या उन बच्चों में अधिक पाई गई जिनका जीवनशैली निष्क्रिय थी और जिनके भोजन में जंक फूड, प्रोसेस्ड फूड और संतृप्त वसा की अधिकता थी.

चेयरमैन डॉ. रमन कुमार का क्या है कहना

अकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ. रमन कुमार ने समय पर निदान की महत्ता पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “अल्ट्रासाउंड पित्त की पथरी का पता लगाने का सुरक्षित और प्रभावी साधन है. कई मामलों में दवाओं और खानपान में बदलाव से स्थिति संभाली जा सकती है, खासकर यदि लक्षण न हों. लेकिन जब जटिलताएं पैदा होती हैं जैसे पित्ताशय में सूजन या अग्नाशयशोथ तो सर्जरी जरूरी हो जाती है.” जिन बच्चों में लक्षण होते हैं या जटिलताएं सामने आती हैं, उनमें लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी (पित्ताशय निकालने की प्रक्रिया) मानक इलाज है. हालांकि बिना लक्षण वाले बच्चों में स्थिति जटिल हो जाती है, क्योंकि अक्सर अल्ट्रासाउंड अन्य कारणों से किया जाता है और पित्त की पथरी का पता चल जाता है.

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ऐसे मामलों में सिर्फ दो विकल्प मौजूद

डॉ. सिन्हा के अनुसार, ऐसे मामलों में दो विकल्प होते हैं- सतर्क प्रतीक्षा या सर्जरी. “माता-पिता को यह समझना जरूरी है कि प्रतीक्षा के दौरान जटिलताओं का खतरा बना रहता है. आपसी समझ के आधार पर सूचित निर्णय लेना चाहिए. कई माता-पिता पीलिया, अग्नाशयशोथ जैसी जटिलताओं के डर से जल्दी सर्जरी करवाना पसंद करते हैं.” उन्होंने आगे कहा कि लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी बच्चों के लिए सुरक्षित है और इससे जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है.

बचाव के उपाय

बाल रोग विशेषज्ञ अब माता-पिता, स्कूलों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने की अपील कर रहे हैं. रोकथाम के लिए मुख्य उपाय हैं

  • रेशेदार आहार, फल और सब्जियों से भरपूर संतुलित आहार को प्रोत्साहित करना.
  • जंक फूड, शर्करा युक्त पेय और संतृप्त वसा का सेवन सीमित करना.
  • नियमित शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देना और स्क्रीन टाइम कम करना.
  • नियमित स्वास्थ्य जांच, विशेषकर उन बच्चों में जिनके परिवार में पित्त की पथरी या चयापचय विकार का इतिहास है.

यह हम सभी के लिए चेतावनी

डॉ. सिन्हा ने कहा “यह हम सबके लिए चेतावनी है,”. “बच्चों का स्वास्थ्य केवल अनुवांशिक कारणों से नहीं, बल्कि उस माहौल से भी तय होता है जिसे हम उनके लिए बनाते हैं. अब समय आ गया है कि हम इस पर गंभीरता से ध्यान दें कि वे क्या खाते हैं, कितने सक्रिय हैं और उनकी स्वास्थ्य संबंधी शिकायतों पर हम कितनी जल्दी प्रतिक्रिया देते हैं.”

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Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

Saurabh Poddar
Saurabh Poddar
Digital Media Journalist having more than 2 years of experience in life & Style beat with a good eye for writing across various domains, such as tech and auto beat.

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