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FILM REVIEW: फिल्‍म देखने से पहले जानें कैसी है श्रद्धा कपूर की ”हसीना पारकर”

II उर्मिला कोरी II फिल्म: हसीना पारकर निर्देशक: अपूर्वा लखिया कलाकार: श्रद्धा कपूर, अंकुर भाटिया, सिद्धांत कपूर, दधि पांडेय और अन्य रेटिंग: डेढ़ अंडरवर्ल्ड डॉन और गैंगस्टर पर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं इस बार मुंबई की अपराध की दुनिया में आपा नाम से मशहूर दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की कहानी […]

II उर्मिला कोरी II

फिल्म: हसीना पारकर

निर्देशक: अपूर्वा लखिया

कलाकार: श्रद्धा कपूर, अंकुर भाटिया, सिद्धांत कपूर, दधि पांडेय और अन्य

रेटिंग: डेढ़

अंडरवर्ल्ड डॉन और गैंगस्टर पर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं इस बार मुंबई की अपराध की दुनिया में आपा नाम से मशहूर दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की कहानी को पर्दे पर लाया गया है. यह फिल्म अतीत और वर्तमान के अंदाज़ में कही गयी है. यह फिल्म गैंग वॉर की घटनाओं के बाद दाऊद इब्राहिम के डॉन बनने की कहानी बताता है और दर्शाता है कि उसके परिवार को इन सब से किस तरह से गुजरना पड़ा विशेषकर उसकी बहन हसीना पारकर.

फिल्म की कहानी में गैंगवॉर के साथ-साथ 92 के मुंबई दंगे ,93 के मुंबई बम ब्लास्ट को भी दिखाया गया है. फिल्म की कहानी की शुरुआत कोर्ट से होती है. हसीना पर आरोप है कि वह अपने भाई के क्राइम सिंडिकेट और बिजनस को मुंबई में चलाने का काम करती थी लेकिन हसीना अपना बचाव करती है और फिल्म की कहानी भी जिसमें हसीना पारकर के गैरकानूनी तरीके से अपनी परिवार की रक्षा करने को सही ठहराने और और उन्हें पीड़िता बताने की कोशिश हुई है.

फिल्म की कहानी में जिस तरह से हसीना को लाया गया है उससे प्यार करें या नफरत समझ नहीं आता है. फिल्म को देखते हुए आप महसूस करते हैं कि दाऊद की बहन के जीवन पर जीवन बनाने का कोई कारण नहीं है, जब कुछ भी असाधारण जैसा नहीं है. भारत में कई ऐसे लोग हैं जिनकी कहानी को बायोपिक के ज़रिये सामने लाया जा सकता है तो ऐसे में एक गैंगस्टर और उसकी बहन की कहानी को महिमामंडन करने की क्या ज़रूरत है.

हसीना की कहानी को काफी पॉलिश करके सामने लाया गया है. गरीबी और समाज ने उन्हें अपराध से जोड़ा. अपराधी अपने अपराध के लिए अक्सर यह दलीलें देते हैं. इस फिल्म में भी इस बात को दिखाया गया है. महिमांडन वाले इस फिल्म का स्क्रीनप्ले बहुत कमज़ोर है जिससे एक वक़्त के बाद बोरियत होने लगती है. शूटआउट एट लोखंडवाला देने वाले अपूर्वा इस बार मनोरंजक बायोपिक फिल्म देने से पूरी तरह चूक गए हैं.

अभिनय की बात करें तो फिल्म की कास्टिंग सबसे मिसफिट हैं. एक दो सीन को छोड़ दे तो श्रद्धा कहीं से भी हसीना पारकर के दबंग किरदार के आसपास भी नहीं दिखती है. उनकी बॉडी लेंग्वेज हो या संवाद अदाएगी दोनों में वह परिपक्वता नज़र नहीं आयी. श्रद्धा की बढ़ती उम्र को प्रोस्थेटिक मेकअप के ज़रिये दर्शाया गया होता तो बेहतर होता था. उनके गालों को जिस तरह से दिखाया गया है. उसे देखकर हंसी आती है कि जैसे चॉकलेट को मुँह में भरा गया है.

सिद्धांत कपूर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के किरदार में बहुत कमज़ोर रहे हैं. उनके चेहरे पर भावों की शून्यता साफ़ तौर पर दिखती है. उनकी बहुत ख़राब डबिंग हुई है. हसीना पारकर की खिलाफ लड़ रही वकील की भूमिक में दिखी अभिनेत्री ने अपने किरदार को पूरे आत्मविश्वास के साथ जीया है. अंकुर भाटिया अपने छोटे से किरदार में अच्छे रहे हैं बाकी के किरदार अपनी भूमिकाओं से कहानी को आगे बढ़ाते हैं.

फिल्म का गीत संगीत भी बहुत कमज़ोर है हाँ बैकग्राउंड संगीत ज़रूर थोड़ा अच्छा है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी औसत है. कुलमिलाकर यह फिल्म पूरी तरह से कमज़ोर फिल्म है फिर चाहे स्क्रीनप्ले हो या फिर कलाकारों का अभिनय. इस हसीना से दूर रहने में ही भलाई है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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