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प्रधानमंत्री आवास योजना की कछुआ चाल पर पीएम मोदी ने जतायी नाराजगी, राज्यों को दिया ये टारगेट…

नयी दिल्लीः अगले पांच सालों में देश के गरीबों को सस्ती कीमतों पर आवासी उपलब्ध कराने के लिए सरकार की आेर से शुरू की गयी प्रधानमंत्री आवास योजना की कछुआ चाल को देख पीएम नरेंद्र मोदी ने नाराजगी जाहिर की है. बीते दिनों राज्यों के सचिवों के साथ वीडियाे काॅन्फ्रेंसिंग के जरिये की गयी बैठक […]

नयी दिल्लीः अगले पांच सालों में देश के गरीबों को सस्ती कीमतों पर आवासी उपलब्ध कराने के लिए सरकार की आेर से शुरू की गयी प्रधानमंत्री आवास योजना की कछुआ चाल को देख पीएम नरेंद्र मोदी ने नाराजगी जाहिर की है. बीते दिनों राज्यों के सचिवों के साथ वीडियाे काॅन्फ्रेंसिंग के जरिये की गयी बैठक में उन्होंने देश के राज्यों के सचिवों को प्राथमिकताआें के आधार पर एक रोडमैप पीएमआे को भेजने का निर्देश दिया है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2022 तक शहरी गरीबों के लिए 4,025 शहरों में 2 करोड़ रियायती घर बनाया जाना है.

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मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, पीएम मोदी ने 12 जुलाई को विडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये राज्य के मुख्य सचिवों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि 2015-16 और 2016-17 में स्वीकृत हुए घरों को 2017-18 के अंत तक पूरा कर लिया जाये. राज्यों द्वारा भेजे गये प्रस्तावों के आधार पर 2015 से मार्च 2017 तक 2000 शहरों में केवल 17 लाख घरों की स्वीकृति मिली थी. कुल 95,660 करोड़ रुपये के निवेश में केंद्र द्वारा 27,879 करोड़ रुपये मिलने थे.

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केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृति केवल उन्हीं राज्यों को सूची मिली थी, जिन्होंने लाभार्थियों की सत्यापित सूची भेजी थी. कई राज्यों द्वारा भेजी गयी सूची में लाभार्थी सत्यापित नहीं थे. अभी तक यह जानकारी नहीं है कि राज्यों ने इस योजना के तहत 2015 से अभी तक कितने घर बनाये हैं. पीएम मोदी ने अब राज्यों से स्कीम के क्रियान्वयन योजना की साप्ताहिक समीक्षा करने को कहा है. साथ ही, सभी राज्यों को 2022 तक लक्ष्य पूरा करने के रोडमैप को भी पीएमओ के पास भेजने को कहा है. कैबिनेट सचिव इन रोडमैप को मॉनिटर करेंगे.

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शहरी विकास मंत्रालय ने हाउजिंग टेक एक्सपर्ट्स के साथ स्कीम का ज्यादा अच्छे से क्रियान्वयन करने के लिए कार्यशाला आयोजित करने को भी कहा है. प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में निजी भागीदारी संतोषजनक नहीं रही है. योजना के कुछ हिस्से पूरी तरह से निजी निवेश पर निर्भर हैं, जैसे स्लम का पुनर्विकास आदि. सरकार के लिए यह चिंता का सबसे बड़ा सबब बना हुआ है.

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