Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सूबे की राजनीति में बड़ा झटका लग सकता है. चुनाव आयोग ने राज्य में रजिस्टर्ड 15 गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. आयोग ने साफ किया है कि बीते छह सालों में इन दलों ने एक भी चुनाव नहीं लड़ा है, इसके बावजूद वे लोक प्रतिनिधित्व कानून के तहत पंजीकृत पार्टियों को मिलने वाली सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं. ऐसे में इन दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की कार्रवाई की तैयारी है.
1 सितंबर को पेश होना होगा
चुनाव आयोग ने सभी 15 दलों से 1 सितंबर को दोपहर 3 बजे बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (सीईओ) के समक्ष पेश होकर जवाब देने को कहा है. यदि दल अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाए तो उन्हें डीलिस्ट (DeList) कर दिया जाएगा. इसका मतलब होगा कि ये दल चुनाव आयोग के रजिस्टर से बाहर हो जाएंगे और किसी भी चुनाव में पंजीकृत दल के रूप में हिस्सा नहीं ले पाएंगे.
इन दलों पर गिरी गाज
जिन दलों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें शामिल हैं:
- भारतीय आवाम एक्टिविस्ट पार्टी
- भारतीय जागरण पार्टी
- भारतीय युवा जनशक्ति पार्टी
- एकता विकास महासभा पार्टी
- गरीब जनता दल (सेक्युलर)
- जय जनता पार्टी
- जनता दल हिन्दुस्तानी
- लोकतांत्रिक जनता पार्टी (सेक्युलर)
- मिथिलांचल विकास मोर्चा
- राष्ट्रवादी युवा पार्टी
- राष्ट्रीय सद्भावना पार्टी
- राष्ट्रीय सदाबहार पार्टी
- वसुधैव कुटुंबकम पार्टी
- वसुंधरा जन विकास दल
- यंग इंडिया पार्टी
इनमें कई नाम ऐसे हैं जिनके बारे में आम मतदाता शायद ही जानते हों. इनमें से कुछ दल कागजों पर ही सक्रिय हैं, जबकि कुछ ने गठन के बाद कभी चुनावी अखाड़े में कदम ही नहीं रखा.
क्यों उठाया कदम?
आयोग का मानना है कि पंजीकृत रहते हुए भी चुनावी मैदान से दूरी बनाए रखने वाले दल सिर्फ रजिस्ट्रेशन से मिलने वाले फायदे उठा रहे हैं. पंजीकृत दलों को पार्टी नाम सुरक्षित रखने, चुनाव चिन्ह का दावा करने और टैक्स छूट जैसी सुविधाएं मिलती हैं. ऐसे में गैर-सक्रिय दलों को सूची से बाहर करना जरूरी है, ताकि व्यवस्था पारदर्शी और प्रभावी बनी रहे.
चुनावी समीकरण पर असर
हालांकि ये दल चुनावी राजनीति में खास प्रभाव नहीं रखते, लेकिन आचार संहिता लागू होने से पहले डीलिस्टिंग की यह कवायद एक सख्त संदेश माना जा रहा है. आयोग यह दिखाना चाहता है कि वह सक्रिय और निष्क्रिय दलों में फर्क करेगा और केवल उन्हीं को सूची में जगह देगा जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में वास्तविक भागीदारी निभा रहे हैं.
विपक्ष और क्षेत्रीय दलों की नजर
बड़े दलों के लिए यह मुद्दा भले ही अहम न हो, लेकिन कई छोटे और क्षेत्रीय संगठन इस कदम को लेकर सतर्क हैं. उनकी चिंता है कि भविष्य में निष्क्रियता के नाम पर और भी दलों की मान्यता पर तलवार लटक सकती है.

