Bihar Election 2025: समस्तीपुर जिले के हसनपुर विधानसभा क्षेत्र की सियासत में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. इस सीट से मौजूदा विधायक और लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से निष्कासित कर दिया गया है. पार्टी ने साफ कर दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में तेज प्रताप यहां से उम्मीदवार नहीं होंगे. ऐसे में यादव बाहुल्य इस सीट पर राजद के सामने नया और साफ-सुथरा चेहरा तलाशने की चुनौती खड़ी हो गई है.
यादवों की परंपरागत सीट
हसनपुर विधानसभा सीट को अब तक यादव बाहुल्य क्षेत्र माना जाता रहा है. इसीलिए यहां से अधिकतर चुनावों में यादव प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं. इस क्षेत्र से गजेंद्र प्रसाद हिमांशु, राजेंद्र यादव और सुनील कुमार पुष्पम जैसे नेताओं ने न केवल जीत दर्ज की बल्कि लंबे समय तक राजनीति में अपना प्रभाव भी बनाए रखा. गजेंद्र प्रसाद हिमांशु का नाम इस क्षेत्र की राजनीति में सबसे प्रभावशाली माना जाता है. उन्होंने सात बार चुनाव जीतकर यहां का प्रतिनिधित्व किया. वहीं, उनके भतीजे सुनील कुमार पुष्पम ने तीन बार जीत दर्ज की.
2020 में तेज प्रताप की जीत
2020 विधानसभा चुनाव में हसनपुर सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प रहा. इस चुनाव में आठ प्रत्याशी मैदान में थे, लेकिन असली लड़ाई तेज प्रताप यादव और जदयू के राजकुमार राय के बीच ही रही. तेज प्रताप को 80,991 मत मिले, जबकि राजकुमार राय को 59,852 मत मिले. तेज प्रताप ने करीब 21 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. जाप उम्मीदवार अर्जुन प्रसाद यादव और लोजपा प्रत्याशी मनीष कुमार सहनी भी चुनावी मैदान में थे, लेकिन वे मुकाबले से बाहर रहे.
सीट छोड़ने का संकेत
चुनाव जीतने के बाद तेज प्रताप यादव शायद ही इस क्षेत्र में सक्रिय दिखे. हाल ही में वे एक बार हसनपुर आए और लोगों से मुलाकात की, लेकिन जल्द ही यह खुलासा किया कि अगला चुनाव वे महुआ विधानसभा क्षेत्र से लड़ने का मन बना चुके हैं. इस बयान के बाद से ही यह तय माना जा रहा था कि हसनपुर में राजद नया उम्मीदवार उतारेगी. अब तेज प्रताप के निष्कासन ने इस अटकल को और पुख्ता कर दिया है.
दावेदारों की लंबी सूची
तेज प्रताप के पत्ता कटने के बाद अब राजद के सामने इस सीट के लिए कई नामों पर मंथन चल रहा है. इनमें पूर्व विधायक सुनील कुमार पुष्पम, रामनारायण मंडल, विभा देवी और ललन यादव जैसे नाम प्रमुख हैं. हालांकि, इन दावेदारों में सर्वसम्मति बनाना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा. हर कोई अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र और पुराने जनाधार के बूते टिकट का दावेदार है.
पहले विधायक थे गजेंद्र प्रसाद हिमांशु
हसनपुर विधानसभा सीट का गठन वर्ष 1967 में हुआ था. इस सीट के पहले विधायक गजेंद्र प्रसाद हिमांशु बने थे. वे लगातार 1980 तक यहां से चुनाव जीतते रहे. कभी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, तो कभी जनता पार्टी और बाद में जनता पार्टी सेक्यूलर की टिकट पर वे विधानसभा पहुंचे. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में आई सहानुभूति लहर में यह सीट उनके हाथ से निकल गई. कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद यादव ने उस चुनाव में उन्हें हराया. लेकिन 1990 में गजेंद्र प्रसाद हिमांशु ने फिर वापसी की और जीत दर्ज की.
1995 में उनके ही भतीजे सुनील कुमार पुष्पम ने उन्हें मात दे दी. 2000 में गजेंद्र प्रसाद हिमांशु ने वापसी की, लेकिन 2005 में हुए दोनों चुनावों में पुष्पम विजयी रहे. इसके बाद 2010 और 2015 में जदयू के राजकुमार राय ने यह सीट जीती. 2020 में तेज प्रताप यादव ने पहली बार यहां जीत दर्ज की थी.
राजद के लिए अगली रणनीति
अब सवाल यह है कि यादव बहुल इस सीट पर राजद किसे उम्मीदवार बनाएगी. पार्टी को ऐसा चेहरा उतारना होगा जो तेज प्रताप के निष्कासन से पैदा हुई असहजता को संभाल सके और जनता के बीच विश्वसनीय विकल्प के रूप में सामने आ सके. साथ ही जदयू और अन्य दल भी इस सीट को लेकर अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं.
हसनपुर की राजनीति में जिस तरह से चाचा-भतीजे के बीच वर्चस्व की लड़ाई से लेकर नए चेहरे उभरते रहे हैं, उससे साफ है कि आने वाला चुनाव बेहद रोचक होगा. तेज प्रताप की अनुपस्थिति में राजद को यहां अपने परंपरागत वोट बैंक को संभालना सबसे बड़ी चुनौती होगी.
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