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तेजस्वी को CM बनाने पर कांग्रेस खामोश क्यों? राहुल गांधी की रणनीति के पीछे क्या है बिहार का सियासी गणित? पढ़िए इनसाइड स्टोरी

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में सीएम चेहरे को लेकर असमंजस बरकरार है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को गठबंधन का स्वाभाविक चेहरा माना जा रहा है, लेकिन कांग्रेस अब भी उनके नाम की घोषणा से बच रही है. राहुल गांधी की चुप्पी ने सियासी हलचल बढ़ा दी है और नए समीकरणों की अटकलें तेज कर दी हैं.

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच महागठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को गठबंधन का स्वाभाविक चेहरा माना जा रहा है, लेकिन कांग्रेस अब भी खुलकर उनके नाम का ऐलान करने से बच रही है. 24 अगस्त 2025 को अररिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राहुल गांधी से जब सीधे तौर पर तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल किया गया, तो उन्होंने जवाब देने से परहेज किया. उन्होंने बस इतना कहा कि “हमारे गठबंधन के सभी दलों में बेहतर समन्वय है और प्राथमिकता वोट चोरी रोकने की है.”

राहुल गांधी के इस बयान ने बिहार के सियासी हलकों में कई तरह की चर्चाओं को जन्म दे दिया है. सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस आखिरकार किस रणनीति के तहत सीएम चेहरे पर चुप्पी साध रही है, जबकि अंदरखाने हर कोई मानता है कि तेजस्वी ही महागठबंधन के चेहरा हैं.

कांग्रेस का सतर्क रुख और वोट बैंक की गणित

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस की हिचक के पीछे वोट बैंक का जटिल समीकरण छिपा है. कांग्रेस लंबे समय से बिहार में अपने कमजोर होते जनाधार को मजबूत करने की कोशिश कर रही है. वर्ष 2020 में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी महज 19 सीटें ही जीत सकी थी. इस बार भी कांग्रेस कम से कम 70 सीटें चाहती है, लेकिन उसकी निगाहें खास तौर पर सवर्ण, दलित और गैर-यादव पिछड़े वोटरों पर टिकी हैं.

तेजस्वी यादव की लोकप्रियता यादव और मुस्लिम वोटरों में सर्वाधिक है, लेकिन लालू यादव के ‘जंगलराज’ की छवि अब भी उनके नाम से जुड़ी हुई है. कांग्रेस को डर है कि तेजस्वी को जल्दबाजी में सीएम चेहरा घोषित करने से सवर्ण और गैर-यादव पिछड़े वोटर एनडीए की ओर खिसक सकते हैं. यही वजह है कि पार्टी सतर्क रुख अपनाते हुए नेतृत्व का सवाल टाल रही है.

लालू की छवि और सवर्ण वोटरों की दुविधा

बिहार की राजनीति में लालू यादव का शासनकाल अब भी बहस का बड़ा मुद्दा है. बीजेपी बार-बार ‘लालू-राबड़ी राज’ का हवाला देकर सवर्ण और गैर-यादव ओबीसी वोटरों को साधने की कोशिश करती रही है. यही वह वर्ग है जो कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक हुआ करता था.

तेजस्वी यादव ने पिछले कुछ सालों में अपनी राजनीति का दायरा बढ़ाने की कोशिश जरूर की है, लेकिन उनकी छवि अब भी यादव-मुस्लिम राजनीति तक सीमित मानी जाती है. ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि अगर चुनाव से पहले उन्हें चेहरा घोषित किया गया तो सवर्ण और दलित वोटरों में नकारात्मक असर हो सकता है. यही वजह है कि पार्टी इस बार सॉफ्ट हिंदुत्व और राष्ट्रीय नेतृत्व पर फोकस कर रही है, ताकि सवर्ण वोटरों को दोबारा अपनी ओर खींचा जा सके.

मुस्लिम-दलित समीकरण पर नजर

राहुल गांधी अपनी “वोटर अधिकार यात्रा” के दौरान मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों का मुद्दा लगातार उठा रहे हैं. जानकार मानते हैं कि यह रणनीति सीधे तौर पर मुस्लिम और दलित वोटरों को साधने की कोशिश है. बिहार की राजनीति में यह दोनों वर्ग बेहद अहम हैं. 18% मुस्लिम और 17% दलित वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं.

कांग्रेस को विश्वास है कि राहुल गांधी का राष्ट्रीय चेहरा इन दोनों तबकों को एकजुट कर सकता है. पार्टी मानती है कि यादव-मुस्लिम समीकरण तेजस्वी के नेतृत्व में स्वाभाविक रूप से मजबूत होगा, लेकिन सवर्ण, दलित और गैर-यादव ओबीसी वोटों को साथ लाने के लिए उसे अपनी अलग रणनीति पर चलना होगा.

कांग्रेस के भीतर असहमति

कांग्रेस की दुविधा सिर्फ वोट बैंक तक सीमित नहीं है. पार्टी के भीतर भी तेजस्वी को लेकर मतभेद कायम हैं. सासाराम सांसद मनोज कुमार और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह जैसे नेता तेजस्वी को स्वीकार करने को तैयार हैं, जबकि कुछ नेता अब भी उनके नेतृत्व आशंका जाहीर कर रहे हैं. हालांकि कन्हैया कुमार ने जून 2025 में तेजस्वी को महागठबंधन का चेहरा बताकर समर्थन दिया था, लेकिन हाईकमान अब भी चुप है.

सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव की तर्ज पर बिना सीएम चेहरा घोषित किए विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति बना रही है. यह पार्टी को विकल्प खुले रखने का मौका देगा. आम सहमति यही है कि अगर आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनती है तो तेजस्वी को सीएम पद की जिम्मेदारी मिल सकती है.

सीट बंटवारे का पेच

महागठबंधन की एक और बड़ी चुनौती सीट बंटवारा है. वर्ष 2020 में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार आरजेडी इतनी उदारता दिखाने के मूड में नहीं नजर आ रही है. दूसरी ओर, कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2024 में अपने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन का हवाला देकर ज्यादा सीटों की मांग कर रही है. जानकार मानते हैं कि कांग्रेस का तेजस्वी को चेहरा न घोषित करना कहीं न कहीं उसी दबाव की राजनीति का हिस्सा है. इससे कांग्रेस को बातचीत की मेज पर मजबूत स्थिति मिल सकती है.

भविष्य की राह और सियासी समीकरण

कांग्रेस की रणनीति साफ है कि वह गठबंधन में रहते हुए भी अपने विकल्प खुले रखना चाहती है. पार्टी तेजस्वी यादव की ताकत को नकार नहीं रही, लेकिन बिहार की सामाजिक संरचना को देखते हुए वह नेतृत्व के सवाल को फिलहाल टाल रही है. महागठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती एकजुटता है. एनडीए के पास नीतीश कुमार की स्थापित छवि और बीजेपी का मजबूत संगठन है. इसके मुकाबले महागठबंधन को आंतरिक मतभेदों को किनारे कर सधी हुई रणनीति अपनानी होगी.

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Abhinandan Pandey
Abhinandan Pandey
भोपाल से शुरू हुई पत्रकारिता की यात्रा ने बंसल न्यूज (MP/CG) और दैनिक जागरण जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अनुभव लेते हुए अब प्रभात खबर डिजिटल तक का मुकाम तय किया है. वर्तमान में पटना में कार्यरत हूं और बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को करीब से समझने का प्रयास कर रहा हूं. गौतम बुद्ध, चाणक्य और आर्यभट की धरती से होने का गर्व है. देश-विदेश की घटनाओं, बिहार की राजनीति, और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि रखता हूं. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स के साथ प्रयोग करना पसंद है.

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