Bihar Election 2025| औरंगाबाद, ओमप्रकाश : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए नामांकन शुरू हो चुका है. भारतीय जनता पार्टी और जन सुराज के अधिकतर उम्मीदवारों की घोषणा भी हो चुकी है. दोनों प्रमुख गठबंधनों और राजनीतिक दलों में टिकट के लिए मारामारी जारी है. एक दौर ऐसा था, जब टिकट के लिए कोई मारामारी नहीं थी. वह दौर राजनीतिक शुचिता का दौर था. हम बात कर रहे हैं, वर्ष 1952 से 1977 तक की राजनीति का. तब तक दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र था. वर्ष 1972-73 में हुए परिसीमन में दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त हो गया. वर्ष 1952 के पहले आम चुनाव में और 1967 में स्वतंत्रता सेनानी रामनरेश सिंह दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए. वर्ष 1967 में 23 वोट से जीत-हार हुई थी, जो एक रिकॉर्ड था. विधानसभा चुनाव के इतिहास में औरंगाबाद जिले में इसके बाद कभी इतने छोटे अंतर से जीत-हार का फैसला नहीं हुआ.
1977 में रामविलास सिंह को दिला दिया टिकट – डॉ संजय
रामनरेश सिंह के पुत्र डॉ संजय कुमार सिंह ने प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) से खास बातचीत में कहा कि आज के नेताओं में एक-दूसरे का टिकट कटवाने की होड़ लगी रहती है. रामनरेश सिंह ने अपनी अस्वस्थता के कारण अपने राजनीतिक शिष्य रामविलास सिंह को जनता पार्टी का टिकट वर्ष 1977 में दिलाने में भूमिका निभायी, जबकि वे रामविलास सिंह से 2 बार चुनाव हार चुके थे.
बुधई गांव में जन्मे, दाउदनगर को बनाया कर्मभूमि
डॉ संजय बताते हैं कि वे आम जनता के लिए जितना विनम्र थे, अपने परिजनों के लिए अनुशासन के मामले में उतने ही सख्त थे. पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं. क्षेत्र के विकास के साथ कोई समझौता नहीं. कई शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की. औरंगाबाद-पटना रोड को पीडब्ल्यूडी की सड़क में शामिल कराया. हेल्थ सेक्टर में काम किया. तत्कालीन दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र के नवनिर्माण में उनकी बहुत बड़ी भूमिका थी. हालाकि, उनकी जन्मभूमि गोह प्रखंड का बुधई गांव है, लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि दाउदनगर को बनाया.
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द्वारका प्रसाद बोले- नेता राजनीति के एजेंडा पर बात करते थे
द्वारका प्रसाद उर्फ गुरुजी, अवकाश प्राप्त अनुमंडल कृषि पदाधिकारी एवं वरिष्ठ रंगकर्मी ने अपना संस्मरण साझा करते हुए बताया कि उस समय आदर्श राजनीति का दौर था. जात-पांत की भावना नहीं थी. राजनीतिक सुचिता का दौर था. उम्मीदवार अपनी राजनीति के एजेंडे पर बात करते थे. लंबे समय तक चुनाव प्रचार चलता था. आज वैसी राजनीति देखने को नहीं मिल रही.
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