Amit Shah: बिहार चुनाव को गृहमंत्री अमित शाह ने एनडीए के पक्ष में पूरी तरह बदल दिया. जब टिकट बंटवारे के बाद असंतोष बढ़ा, तब करीब सौ बागी नेता खुले विरोध पर उतर आए थे. ये सभी इस बात पर अड़े थे कि वे केवल अमित शाह के आश्वासन के बाद ही शांत होंगे. मामला खराब होता देख शाह बिहार में डेरा डालकर बैठ गए और दो-तीन दिन तक अपना पूरा समय इन्हीं को मनाने में लगे रहें. इस दौरान वे लगातार बागियों से मिलते रहे, उनकी शिकायतें सुनते रहे और एक-एक करके सभी को साधा. उनके कहने के बाद सभी नेता NDA के उम्मीदवार के पक्ष में पूरी मेहनत से प्रचार में जुट गए.
मंडल स्तर से कार्यकर्ताओं के साथ की बैठक
अमित शाह की रणनीति केवल बागियों को साधने तक सीमित नहीं रही. उन्होंने मंडल स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कीं. जमीनी कार्यकर्ताओं की भूमिका को समझते हुए उन्होंने जिले-दर-जिले जाकर चुनावी तैयारियों की समीक्षा की.
एनडीए को एकजुट रखना उनका मुख्य फोकस रहा. एलजेपी और जेडीयू के बीच जो मतभेद जमीन पर दिख रहे थे, उन्हें दूर करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. उन्होंने यह तय किया कि गठबंधन का वोट कहीं बिखरे नहीं और इसके लिए बूथ से लेकर जिला स्तर तक माइक्रो प्लानिंग की.
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अमित शाह की रणनिति ने पार्टी कैडर में भरा उत्साह
हर इलाके के कार्यकर्ताओं में कोर्डिनेशन हो इसके लिए स्पेशल प्लान बनाया. बिहार के बाहर रहने वाले कार्यकर्ताओं से भी लगातार संपर्क में रहे. जहां भी आवश्यकता पड़ती, वे पदाधिकारियों के लिए उपलब्ध रहे. उनकी यह सक्रियता और रणनीतिक ने पार्टी कैडर में नया उत्साह भरा.
आज एनडीए की बड़ी जीत के पीछे जिस राजनीतिक बिसात का जिक्र हो रहा है, उसकी सबसे अहम कड़ी अमित शाह की यही माइक्रो मैनेजमेंट वाली भूमिका रही. उन्होंने संगठन, कोर्डिनेशन और रणनीति- तीनों मोर्चों पर विजय का रास्ता तैयार किया.
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