10.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

नेशनल कैमरा डे : वाह से आह तक, मोबाइल ने बदली कैमरे की सूरत

फोटो की बात हो तो कैमरा की बात होना लाजिमी है. यह कहना गलत नहीं होगा कि अब कैमरा हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है. क्योंकि अब हम अपने जीवन के छोटे-छोटे पलों को कैमरे में कैद करना चाहते हैं ताकि फोटो के रूप में वह पल हमारे जीवन से कभी अलग […]

फोटो की बात हो तो कैमरा की बात होना लाजिमी है. यह कहना गलत नहीं होगा कि अब कैमरा हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है. क्योंकि अब हम अपने जीवन के छोटे-छोटे पलों को कैमरे में कैद करना चाहते हैं ताकि फोटो के रूप में वह पल हमारे जीवन से कभी अलग न हो. आज हर किसी के हाथ में मोबाइल रुपी कैमरा है. चाहे सेल्फी लेने की बात हो या फिर फोटोग्राफी का शौक पूरा करना हो तो कोई मुश्किल बात नहीं. क्योंकि अब न ही कैमरे में रील लगाने की जरूरत है और न ही उसके प्रिंट के लिए दो दिनों का इंतजार करना पड़ता है. लेकिन कभी वो जमाना भी था जब एक कैमरा खरीदने के लिए सोचना पड़ता था, फिर भी लोग खरीदते थे और शौक से फोटो भी खिंचवाते थे. सरस्वती पूजा या दुर्गापूजा या फिर किसी खास अवसर पर स्टूडियो में फोटो खिंचवाने की भीड़ लगी होती थी. पर समय के साथ कैमरा का दौर भी बदला, जिससे फोटोग्राफी में भी बदलाव हुआ. यही नहीं स्टूडियो का भी रूप भी बदला. नेशनल कैमरा डे पर जमशेदपुर के कुछ फोटोग्राफर ने कैमरे के उस रोचक दौर की बातें बतायी जब फोटोग्राफी मुश्किल होते हुए भी रोचक जॉब हुआ करता था. तकनीक ने आज बहुत चीजों को आसान बना दिया है. रीमा डे@जमशेदपुर की विशेष रिपोर्ट…

तब कैमरा होना शान की बात थी

कांट्रैक्टर्स एरिया बिष्टुपुर निवासी महेंद्र रुपारेल ने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत साइन बोर्ड में पेंटिंग के काम से की थी. इस दौरान उनकी मुलाकात एक स्टूडियो वाले से हुई. अपने काम के साथ-साथ उन्होंने कैमरा हैडलिंग और फोटो तकनीक के तरीके सीखे. क्योंकि उस समय फोटोग्राफी के लिए अलग से कोई इंस्टीच्यूट नहीं था. महेंद्र बताते हैं कि उस समय कैमरा हाथ में होना शान की बात होती थी. नये आदमी के लिए उस समय काम मिलना मुश्किल था. यही नहीं कि कैमरा चलाना सीख गये फोटोग्राफी करने लगे तो स्टूडियो खोल लिये, ऐसा नहीं हो सकता है. इसके लिए अभ्यास की जरूरत थी. करीब 2-3 साल उन्होंने स्टूडियो में काम किया. 1974 के आसपास बिष्टुपुर में मुरलीधर स्टूडियो की शुरुआत की. उस समय वे फोटोग्राफी, डार्क रुम में फोटो प्रिंट करना, सभी काम अकेले ही करते थे. प्लेट कैमरा, रोली कोड व रोली फ्लैक्स कैमरा, टूइन लैंस कैमरा से काम की शुरुआत की. लेकिन सबसे पहले जैय्स आइकॉन सेकेंड हैंड कैमरा 1200 रु में खरीदी थी. उससे काम करने लगे और बाद में धीरे-धीरे दूसरे कैमरे भी खरीदे. जैपेनिस मेड कैमरा कम दाम में मिलता था. करीब 1200-1500 में यह कैमरा मिल जाता था. एक समय याशिका कैमरा का दौर चला. उस समय प्रोफेशनल कैमरा मार्केट में उपलब्ध नहीं था, सरकार का नियम भी था कि प्रोफेशनल कैमरा नहीं बेचना है. कैमरा कोलकाता से खरीद कर लाते थे. फिर डार्क रुम में फोटो प्रोसेसिंग सारा काम खुद ही करते थे. लेकिन समय के बदलाव के आधुनिक तकनीक के आने से डार्क रुम और फोटो प्रोसेसिंग का काम अब न के बराबर होती है.समय के साथ कैमरे के दुनिया का विस्तार हुआ. तो वहीं फोटोग्राफी पर भी इसका असर पड़ा. स्टूडियो में पहले फोटोग्राफी होती थी. कैमरे की बिक्री कम होती थी. विशेष अवसर पर ही लोग फोटो खिंंचवाते थे.

फोटोग्राफी के पेशे से जुड़ा है पूरा परिवार

कदमा निवासी मनोज कुमार जे दोशी का कैमरा और फोटोग्राफी से 50 साल पुराना रिश्ता है. यूं तो उनका पूरा परिवार फोटोग्राफी में माहिर है लेकिन उन्हें कैमरा चलाने की तकनीक पिता ने सिखायी. मनोज कुमार जे दोशी के पिता जयंतीलाल दोशी पहले न्यू मुंबई स्टोर में फोटोग्राफी सेक्शन में काम करते थे. कुछ सालों के बाद उन्होंने स्टूडियो की शुरुआत की. उनके साथ उनकी पत्नी स्व मुक्ति बेन जयंती लाल दोशी भी बखूबी कैमरा हैंडलिंग करती थीं, साथ ही स्टूडियो में फोटोग्राफी भी करती थी. पिता के बाद मनोज ने इस कार्य को संभाला. मनोज ने बताया कि वह दौर था ब्लैक एंड व्हाइट का. प्लेट कैमरा का इस्तेमाल होता था. कपड़ा ओढ़ कर फोटोग्राफर फोटो खींचा करते थे. बाद में 120 रील का प्रयोग कैमरा में होने लगा जिससे सिर्फ 12 फोटो ही खिंचे जाते थे.

फोटो खिंचने से लेकर प्रिंट में काफी समय देने की जरूरत होती थी. लेकिन सारा काम मैन्यूअल होता था, अब ऑटोमैटिक का दौर है. इसका विपरीत असर स्टूडियो पर पड़ा है . पहले लोगों में स्टूडियो में आकर फोटो खिंचवाने का जुनून था. अब सबके पास मोबाइल रूपी कैमरा है तो स्टूडियो आने की जरूरत पहले जैसी नहीं है.

कई कैमरा कंपनियां हो गयी बंद: मनोज बताते हैं कि कैमरा का रंगीन समय था जब कई कंपनियों ने फैमिली कैमरा निकाला था. भले हजार-पंद्रह सौ कीमत का ही था लेकिन उस समय उसकी कीमत आज के पांच हजार के बराबर होती थी. लोग घर के ओकेशन व पिकनिक में ले जाने के लिए कैमरा खरीदते थे. कैमरा के साथ रील भी फ्री मिलता था. इसका दूसरा फायदा यह होता था कि लोग फोटो प्रिंट करवाने स्टूडियो आते थे. 1995 के पहले कोडेक, फूजी, कलर प्लस जैसी कंपनी का बोलबाला मार्केट में था. फूजी कंपनी के कैमरा के साथ-साथ फिल्म और पेपर आता था जो आज भी आता है. लेकिन कोडेक कंपनी बंद हो गयी. 2005 तक ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लगभग खत्म हो चुका था. रंगीन फोटो का क्रेज बढ़ा. फिर रंगीन फोटो डिजिटल बना. अब फोटोग्राफर कंप्यूटर पर फोटो सेट करता है और प्रिंटर से प्रिंट करके फोटो निकाल देता है

जब सब सो जाते,तो बनता था डार्क रूम

75 वर्षीय समरजीत चावला ने कभी शौकिया तौर पर फोटोग्राफी की शुरुआत टू-इन कैमरे से की थी. लेकिन लंबे समय के बाद उन्होंने इस काम प्रोफेशनल बनाया. बेहतर फोटोग्राफी के लिए उन्हें कई सम्मान मिल चुका है. लेकिन स्टूडियो खोलने का सपना उनका पूरा नहीं हो पाया क्योंकि उन्हें कंपनी में नौकरी मिल गयी थी. नौकरी के बाद वे अपना सारा समय सिर्फ फोटोग्राफी में ही देते थे. लंबे सालों तक इस काम को करने के बाद उन्होंने बेटों को इसमें जोड़ा. बेटे ने इसमें अपनी पहचान बनायी और उनके अधूरे सपने को पूरा करते हुए स्टूडियो की शुरुआत की. समरजीत ने बताया कि 1960 में आरडी टाटा से मैट्रिक करने के बाद चाचा ने बारीडीह में स्टूडियो खोला. वे टाटा स्टील में नौकरी करते थे, इसलिए मैं ही वहां दिन भर रहता था. कैमरा चलाना उन्हीं से सीखा.सेकेंड हैंड रोली कोड कैमरा 2000 रु में खरीदा. शौकिया तौर पर फोटोग्राफी करते थे. घर पर जब सभी लोग सो जाते तो एक रुम को डार्क रुम बना कर काम करते थे. 1975 में कोलकाता में फैमिली ऑफ इंडिया प्रतियोगिता में मेरे चड़क मेला में खींची गयी तसवीर को द्वितीय पुरस्कार मिला.

स्टूडियो का दौर खत्म, अब डिजिटल का जमाना

समरजीत के पुत्र गोल्डी चावला 1994 से फोटोग्राफी कर रहे हैं. इसके पहले उन्होंने पुणे, मुंबई, कोलकाता व अन्य जगहों से कैमरा तकनीक की जानकारी प्राप्त की है साथ ही कोर्स भी किया है. गोल्डी ने बताया कि पहले ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना था. उस समय फोटो खिंचवाने के प्रति लोगों में ललक थी. 1998 में स्टूडियो खोला. स्टूडियो का मार्केट तेजी पर था. फॉर्म में पासपोर्ट साइज फोटो लगाना हो, या सरस्वती पूजा व दुर्गापूजा में फोटो खींचवाने के लिए लाइन लगी होती थी.

बंद हुए शहर के 20 नामचीन स्टूडियो: मोबाइल कैमरा आने के बाद फोटो क्रेज काफी बढ़ गया. लेकिन स्टूडियो का मार्केट डाउन हो गया. क्योंकि कोई भी स्टूडियो में आकर फोटो नहीं खींचवाता था. प्रिंट करने की जरूरत कम हो गयी. लोग कंप्यूटर और पेन ड्राइव व अन्य जगह पर फोटो सेव करके रख लेते हैं. मोबाइल कैमरा आने से शहर के करीब 20 नामचीन स्टूडियो बंद हो गये या यूं कहें कि बंद करना पड़ा. अब ऑनलाइन फोटोग्राफी, वीडियो एवं एलबम की डिमांड है. वेडिंग फोटोग्राफी का तकनीक भी बदली है.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel