USS Fitzgerald Bangladesh Visit 2025 US Navy: चटगांव के तट पर बुधवार की सुबह कुछ अलग थी. बंदरगाह के पानी में अमेरिकी झंडा लहराता एक विशाल जहाज दाखिल हुआ नाम था यूएसएस फिट्जगेराल्ड (USS Fitzgerald). अमेरिकी नौसेना का यह गाइडेड मिसाइल विध्वंसक जहाज 1971 के बाद पहली बार बांग्लादेश पहुंचा है. यह सिर्फ एक कर्टसी विजिट नहीं है, बल्कि तीन दिनों तक चलने वाला संयुक्त नौसैनिक अभ्यास भी होने वाला है. और यहीं से इस यात्रा के पीछे छिपे रणनीतिक मायने समझने की शुरुआत होती है क्योंकि इस बार अमेरिका की नजर केवल बांग्लादेश पर नहीं, बल्कि म्यांमार और उसके दुर्लभ खनिज खजाने पर भी है.
USS Fitzgerald Bangladesh Visit 2025 US Navy: अमेरिकी युद्धपोत का स्वागत और कार्यक्रम
बांग्लादेशी सेना की मीडिया विंग इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशन (ISPR) ने बताया कि यूएसएस फिट्जगेराल्ड के आगमन पर नौसेना के जहाज बनोजा अबू उबैदा ने उसका स्वागत किया. दोनों देशों के नौसैनिक अधिकारियों ने औपचारिक अभिवादन और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया. ISPR के मुताबिक, इस यात्रा से दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच पेशेवर ज्ञान, अनुभव और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा मिलेगा.
यह अमेरिकी युद्धपोत अगले तीन दिनों तक चटगांव बंदरगाह पर रहेगा. इस दौरान संयुक्त युद्धाभ्यास और ट्रेनिंग सेशन आयोजित होंगे, जिनका उद्देश्य दोनों देशों की नौसैनिक क्षमताओं को मजबूत करना है.
यूएसएस फिट्जगेराल्ड- आकार, दल और कमांड
चटगांव नौसेना क्षेत्र के कमांडर की 3 अक्टूबर की अधिसूचना के अनुसार, यह पोत 154 मीटर लंबा, 20.2 मीटर चौड़ा और 9,246 टन वजनी है. इस पर कुल 327 अधिकारी और नाविक तैनात हैं. यह अमेरिकी नौसेना के सबसे पुराने सक्रिय विध्वंसकों में से एक है और 30 वर्षों से सेवा में है. इसका गृह बंदरगाह सैन डिएगो (अमेरिका) है. इस यात्रा के दौरान बांग्लादेशी नौसेना के कैप्टन ए.एन.एम. इश्तियाक जहां फारूक मुख्य कॉरडिनेशन अधिकारी होंगे. साथ ही लेफ्टिनेंट कमोडोर मोहम्मद रेडवान उल इस्लाम को जहाज और तट के बीच संपर्क अधिकारी नियुक्त किया गया है.
USS Fitzgerald Bangladesh Visit 2025 US Navy: अमेरिका-बांग्लादेश नौसेना अभ्यास की योजना
चटगांव बंदरगाह प्राधिकरण (CPA) के दस्तावेज बताते हैं कि बंगाल की खाड़ी में 8 से 10 अक्टूबर तक अमेरिकी और बांग्लादेशी नौसेना के बीच एक विशेष समुद्री अभ्यास चलेगा. यह ड्रिल 24 घंटे लगातार होगी और इसका क्षेत्र चटगांव से बदरखाली तक फैला होगा. सीपीए ने सभी नौकाओं, जहाजों और मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों को इस इलाके से दूर रहने की सलाह दी है.
यह अभ्यास अमेरिका और बांग्लादेश के बीच चल रहे वार्षिक CARAT (Cooperation Afloat Readiness and Training) कार्यक्रम का हिस्सा माना जा रहा है. हाल ही में अमेरिकी नेवी सील्स ने भी बांग्लादेशी नौसेना की विशेष इकाई SWADS (Special Warfare Diving and Salvage) के साथ Tiger Shark Exercise किया था, जिसमें युद्ध चिकित्सा और गश्ती रणनीति पर ध्यान केंद्रित किया गया था.
इतिहास का फ्लैशबैक- 1971 और अमेरिकी 7वां बेड़ा
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान अमेरिकी नौसेना का 7वां बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेजा गया था. उस समय अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान के पक्ष में था. सोवियत संघ ने इसके जवाब में परमाणु पनडुब्बियां भेज दीं और अमेरिकी बेड़े को अंततः लौटना पड़ा. भारत के साथ युद्ध के बाद पाकिस्तान 2 टुकड़ों में बंट गया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ. अब, 54 साल बाद, वही अमेरिका बांग्लादेशी नौसेना के साथ अभ्यास कर रहा है जो अपने आप में एक बड़ा प्रतीकात्मक बदलाव है.
अमेरिका की नजर म्यांमार के दुर्लभ खनिजों पर
अमेरिका फिलहाल म्यांमार के Rare Earth Elements पर नजर गड़ाए हुए है. ये ऐसे तत्व हैं जिनका इस्तेमाल हाई-टेक हथियारों, जेट इंजनों और एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी में होता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही चीन से नाराज हैं, क्योंकि चीन ने इन तत्वों के प्रसंस्करण (processing) में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है. वर्तमान में चीन ने म्यांमार के काचिन राज्य की खदानों पर अपना प्रभाव बढ़ा लिया है और डिस्प्रोसियम व टर्बियम जैसे तत्वों पर लगभग एकाधिकार जमा लिया है.
चीन की चाल, अमेरिका की रणनीति
म्यांमार में तख्तापलट के बाद विद्रोहियों ने कई खदानों पर कब्जा कर लिया था, जिससे चीन की पकड़ कमजोर हुई. अब बीजिंग फिर से सैन्य और आर्थिक मदद देकर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है. ग्लोबल विटनेस की रिपोर्ट बताती है कि म्यांमार अब भारी Rare Earth Elements का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है. पिछले चार वर्षों में म्यांमार ने चीन को 3.6 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के Rare Elements निर्यात किए हैं.
दूसरी ओर, अमेरिका के पास फिलहाल केवल एक सक्रिय खदान है और उसे भी प्रोसेसिंग के लिए चीन भेजना पड़ता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर अमेरिका को इन संसाधनों तक पहुंच चाहिए, तो उसे म्यांमार के सैन्य शासन और विद्रोही गुटों दोनों से बातचीत करनी होगी.
बांग्लादेश क्यों है अमेरिका की कुंजी?
म्यांमार में सीधी मौजूदगी अमेरिका के लिए जोखिम भरी है गृहयुद्ध, तख्तापलट और चीन की गहरी पैठ इसकी सबसे बड़ी बाधाएं हैं. ऐसे में अमेरिका ने बांग्लादेश के रास्ते म्यांमार को साधने की रणनीति अपनाई है. राजनयिक हलकों में चर्चा है कि ढाका की मौजूदा सरकार से अमेरिका की बढ़ती नजदीकियां इसी “इंडो-पैसिफिक गेमप्लान” का हिस्सा हैं. यानी, अब बंगाल की खाड़ी केवल भौगोलिक समुद्र नहीं, बल्कि नई रणनीतिक जंग का मैदान बन चुकी है.
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