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अटलांटिक महासागर में अलार्म! 8850 किलोमीटर लंबा ‘भूरा रिबन’ बढ़ा, पर्यावरण और मछली पालन पर संकट

Great Atlantic Sargassum Belt Dangerous Algal Bloom: अटलांटिक महासागर में फैल रहा 8,850 किलोमीटर लंबा ग्रेट सार्गासम बेल्ट (‘भूरा रिबन’), पारिस्थितिकी, तटीय अर्थव्यवस्था और जलवायु पर गंभीर असर डाल रहा है. ये अटलांटिक महासागर में बन रहा है विशाल ‘भूरा रिबन’ वैज्ञानिकों को भी चिंतित कर दिया है.

Great Atlantic Sargassum Belt Dangerous Algal Bloom: पिछले 15 सालों से अटलांटिक महासागर में शैवालों की एक अद्भुत लेकिन चिंताजनक पट्टी लगातार बढ़ रही है. अंतरिक्ष से देखने पर यह अफ्रीका के पश्चिमी तट से लेकर मेक्सिको की खाड़ी तक फैला एक विशाल भूरा रिबन सा दिखता है. कभी केवल सार्गासो सागर तक सीमित रहने वाला यह शैवाल अब अटलांटिक महासागर के बड़े हिस्से में फैल गया है. वैज्ञानिकों ने इस घटना को ग्रेट अटलांटिक सार्गासम बेल्ट (GASB) नाम दिया है. मई में प्राप्त उपग्रह चित्रों से पता चला कि यह बेल्ट अब 37.5 मिलियन टन वजनी है और इसकी लंबाई लगभग 8,850 किलोमीटर तक पहुंच चुकी है. 2011 में इसका पहला बड़ा प्रस्फुटन देखा गया था, और तब से यह लगातार बढ़ रहा है. आज इसकी चौड़ाई अमेरिका महाद्वीप की चौड़ाई से लगभग दोगुनी हो गई है.

Great Atlantic Sargassum Belt Dangerous Algal Bloom: क्यों बढ़ रहा है सार्गासम बेल्ट?

सार्गासम आमतौर पर सार्गासो सागर के गर्म और पोषक तत्वों से खाली पानी में पाया जाता था. लेकिन हाल के वर्षों में यह पोषक तत्वों से भरपूर पानी में भी तेजी से फैल रहा है. इसका मुख्य कारण नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों की बढ़ती मात्रा है, जो प्रमुख नदियों और मानवजनित स्रोतों जैसे कृषि अपवाह, अपशिष्ट जल और वायुजनित प्रदूषण के माध्यम से महासागर में पहुंच रहे हैं.

फ्लोरिडा अटलांटिक विश्वविद्यालय के हार्बर ब्रांच ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए वैज्ञानिक अध्ययन “हानिकारक शैवाल” के अनुसार, 1980 और 2020 के बीच सार्गासम ऊतक में नाइट्रोजन की मात्रा 55 प्रतिशत और नाइट्रोजन-फॉस्फोरस अनुपात 50 प्रतिशत बढ़ गया. विशेष रूप से अमेजन नदी से आने वाले पोषक तत्व इस वृद्धि में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इसके बाद, ग्लूफ धारा और लूप धारा जैसी प्राकृतिक समुद्री धाराएं इस शैवाल को पूरे महाद्वीप में फैला देती हैं.

पारिस्थितिकी और आर्थिक प्रभाव

सार्गासम बेल्ट मछली, केकड़ा, झींगा, ईल, कछुआ और कई अकशेरुकी जीवों के लिए एक विविध और जटिल पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करता है. लेकिन इसका तेजी से फैलना कई चिंताएं भी पैदा कर रहा है. यह प्रवाल भित्तियों तक सूर्य की रोशनी पहुंचने से रोकता है, जो प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक है. इसके अपघटन के दौरान हाइड्रोजन सल्फाइड, मीथेन और अन्य ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं.

सार्गासम का तटीय क्षेत्रों में जमाव पर्यटन, मत्स्य पालन और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित करता है. सफाई प्रक्रिया महंगी और कठिन होती है, और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाने का खतरा रहता है. उदाहरण के तौर पर, 1991 में फ्लोरिडा तट पर सार्गासम के जमाव के कारण एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा था.

भविष्य और जलवायु परिवर्तन

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जैसे-जैसे महासागर गर्म होंगे, सार्गासम बेल्ट और तेजी से विकसित होगा. जलवायु परिवर्तन की वजह से हवा और धाराओं में बदलाव से सार्गासो सागर के उत्तर में इसकी सीमा बढ़ सकती है. यह केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं बल्कि आर्थिक और पारिस्थितिकी के लिए भी बड़ी चुनौती बनता जा रहा है.

इस तरह अटलांटिक महासागर का यह विशाल भूरा रिबन अब सिर्फ देखने में अद्भुत नहीं बल्कि पारिस्थितिकी और मानव गतिविधियों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुका है. वैज्ञानिक इसे लगातार मॉनिटर कर रहे हैं और भविष्य में इसके असर को कम करने के उपाय खोजने में लगे हैं.

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Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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