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जहां सिकंदर महान की सेना मर गई, वहीं IRAN बसाने जा रहा है नई राजधानी! क्या है वजह?

Iran Capital Shift To Makran: ईरान अपनी राजधानी तेहरान से मकरान ले जाने की तैयारी में है वहीं मकरान, जहां कभी सिकंदर महान की एक-तिहाई सेना मौत के घाट उतरी थी. जल संकट, अमेरिकी हमलों का डर और रणनीतिक लोकेशन. जानें किन वजहों ने इस ऐतिहासिक फैसले को मजबूर किया है.

Iran Capital Shift To Makran: कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है. एक वक्त था जब सिकंदर महान (Alexander the Great) अपने सैनिकों के साथ भारत से लौटते वक्त एक रेगिस्तान में फंस गया था और वही इलाका, जहां उसकी एक-तिहाई सेना मौत के घाट उतर गई. अब, सदियों बाद, ईरान उसी इलाके मकरान को अपनी नई राजधानी बनाने की सोच रहा है. पर सवाल यह है कि क्या ईरान उस अभिशप्त जमीन पर नया इतिहास लिख पाएगा? या फिर यह फैसला उसके लिए एक और कठिन सफर साबित होगा?

अमेरिकी हमले के बाद ईरान का बड़ा फैसला!

जून 2025 को अमेरिका ने ईरान पर तीन बड़े हमले किए. नतांज, फोर्डो और इस्फहान ये तीनों ईरान के ये परमाणु ठिकाने बी-2 बॉम्बर से उड़ाए गए. फिर कतर पर इजराइल का हमला हुआ. इन घटनाओं के बाद ईरान में सुरक्षा का डर और बढ़ गया. ईरान के राष्ट्रपति पेजेशकियन कहते हैं कि राजधानी बदलना एक आर्थिक और पर्यावरणीय संकट से जुड़ा कदम है. तेहरान और आसपास के इलाकों में जल संकट, भू-धंसाव, और जनसंख्या विस्फोट की स्थिति बन चुकी है. तेहरान, करज और कज्विन जल संकट से जूझ रहे हैं.

अब हमें विकास की दिशा फारस की खाड़ी की ओर मोड़नी होगी. उन्होंने यह बयान होर्मोज्गान प्रांत के दौरे पर दिया था  जो फारस की खाड़ी के किनारे है, और सामने है दुबई. यानी वही इलाका जिसे अब ईरान की नई राजधानी के तौर पर देखा जा रहा है.

Iran Capital Shift To Makran: तेहरान का संकट- बांध सूखे, जमीन धंस रही है

तेहरान अब एक करोड़ से ज्यादा आबादी वाला शहर है, जो देश के कुल पानी का 25% इस्तेमाल करता है. लेकिन बारिश घटती जा रही है. पेजेशकियन ने बताया कि पिछले साल सिर्फ 140 मिमी बारिश हुई, जबकि सामान्य 260 मिमी होती है. यानी 50–60% की गिरावट. इस साल भी हालात उतने ही गंभीर हैं. ईरान के बांध, जो कभी राजधानी की 70% जल जरूरत पूरी करते थे, अब सूखने की कगार पर हैं. भूजल घटने से तेहरान की जमीन हर साल 30 सेंटीमीटर धंस रही है और इसे राष्ट्रपति ने “एक आपदा” कहा है. अगर इस क्षेत्र से तेहरान तक पानी पहुंचाना चाहें तो प्रति घन मीटर लागत €4 तक होगी, यानी अब यह फैसला सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि जीवित रहने का सवाल बन गया है.

Makran Where Alexander Lost Army: मकरान- नया सपना, पुराना जख्म

मकरान कोई साधारण जगह नहीं. यह बलूचिस्तान के पठार का हिस्सा है जो आधा पाकिस्तान में और आधा ईरान में. यहां दो बंदरगाह हैं एक पाकिस्तान का ग्वादर और ईरान का चाबहार. दोनों ही अरब सागर और फारस की खाड़ी के बीच उस जगह पर हैं, जिसे दुनिया “चोक पॉइंट” कहती है यानी जहां से वैश्विक तेल आपूर्ति गुजरती है.

रणनीतिक रूप से देखें तो ईरान की राजधानी अगर यहां आती है, तो यह उसके लिए सुरक्षा और व्यापार दोनों मोर्चों पर लाभ देगा. लेकिन इतिहास का एक पन्ना यहां हमेशा खून से लिखा रहेगा क्योंकि यही वो रास्ता था जहां सिकंदर महान की सेना खत्म हुई थी.

सिकंदर महान की ‘मौत की यात्रा’

साल था 325 ईसा पूर्व. भारत में राजा पोरस को हराने के बाद सिकंदर की सेना व्यास नदी तक पहुंची. सैनिकों ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया क्योंकि वो थक चुके थे, घर से दूर थे, और सुना था कि आगे गंगा के मैदानों में उनसे कई गुना बड़ी सेना इंतजार कर रही है. सिकंदर ने मान लिया और वापसी शुरू की. एक हिस्सा सुरक्षित रास्ते से भेजा गया, लेकिन सिकंदर खुद चला गेड्रोसिया (आज का मकरान) के रास्ते से. और वहीं उसकी एक-तिहाई सेना मौत के हवाले हो गई.

रेगिस्तान की दास्तान- एरियन की कलम से

यूनानी इतिहासकार एरियन ने अपनी किताब “The Anabasis of Alexander” में इस भयावह यात्रा का जिक्र किया है. ब्रिटिश विद्वान एडवर्ड जेम्स चिनॉक के अनुवाद में यह लिखा है कि सिकंदर ने गेड्रोसिया से एक कठिन रास्ता चुना. वहां न पानी था, न खाना.

चिलचिलाती धूप में सेना के जानवर प्यास से मर गए. कुछ सैनिक रेत में झुलस गए, कुछ थककर गिर पड़े, और कई प्यास में मर गए.” यह भी लिखा गया है कि जब कभी उन्हें पानी मिलता, “तो कई सैनिक अपनी प्यास पर काबू नहीं रख पाते और इतना पानी पी जाते कि वहीं मर जाते.”

इतिहासकारों का विश्लेषण

शोधकर्ताओं के मिश्रा, एडम मेंगेस्टैब और शवेता खोसा ने 2022 में अपने रिसर्च पेपर “Historical Perspective and Medical Distortions of Alexander the Great” में लिखा है कि सिकंदर भारत में 1,20,000 पैदल सैनिकों और 15,000 घुड़सवारों के साथ गया था. लेकिन फारस लौटते वक्त चार में से सिर्फ एक ही सैनिक जीवित बचा.” यानी गेड्रोसिया (मकरान) सिकंदर के लिए जीवित नरक साबित हुआ था.

वही मकरान, अब ईरान की नई उम्मीद विडंबना यह है कि जिस रेगिस्तान ने इतिहास के सबसे बड़े विजेताओं में से एक को तोड़ दिया, वही आज ईरान के भविष्य की नई राजधानी बनने जा रहा है. पेजेशकियन के मुताबिक अगर संसाधनों और व्यय के संतुलन को समझे बिना विकास किया गया, तो वह विनाश के अलावा कुछ नहीं होगा. ईरान अब उसी मकरान में “संतुलन” और “विकास” का नया अध्याय लिखना चाहता है. जहां कभी सिकंदर की सेना रेत में समा गई थी, वहीं अब ईरान एक आधुनिक शहर बसाने का सपना देख रहा है.

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Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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