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0.12 ग्राम के हथियार से अमेरिका हिला! जानें ये क्या चीज है जिससे ट्रंप भी चीन के आगे गिड़गिड़ाने पर हो गए मजबूर

Trump Tariff Policy China Shook US Economy: ट्रंप की टैरिफ नीति का उल्टा असर! चीन ने 0.12 ग्राम के सोयाबीन से अमेरिका की अर्थव्यवस्था हिला दी. किसानों के साइलो भर गए, दाने सड़ गए और ट्रंप की सियासत डगमगा गई. एक फसल ने कैसे सुपरपावर को झुका दिया जानें इसके बारे में.

Trump Tariff Policy China Shook US Economy: कभी-कभी जंग बंदूकों से नहीं, दानों से लड़ी जाती है. और इस बार जंग का मैदान है  अमेरिका के खेत. वजन सिर्फ 0.12 ग्राम, पर असर ऐसा कि पूरी अमेरिकी अर्थव्यवस्था हिल गई. ये कहानी है सोयाबीन के उस छोटे से दाने की, जिसने चीन के हाथों अमेरिका को झुका दिया है और ये सब हुआ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति की वजह से. जो बीज उन्होंने लगाया था, वही अब अमेरिका के किसानों की तबाही बन गया है. ये कहावत ठीक साबित हो रही है कि अगर बोए पेड़ बबूल का आम कहां से पाये.

‘मूक हथियार’ बना सोयाबीन

अमेरिका को भरोसा था कि टैरिफ की धमकी से चीन झुक जाएगा. ट्रंप ने सोचा कि अगर चीन को व्यापार में कुछ और चाहिए, तो उसे अमेरिकी शर्तें माननी पड़ेंगी. लेकिन चीन ने सबक सिखा दिया है कि कभी-कभी चुप रहकर जवाब देना ज्यादा असरदार होता है. अप्रैल 2025 में चीन ने ट्रंप के टैरिफ के जवाब में अमेरिकी सोयाबीन की खरीद पूरी तरह रोक दी. ये वही फसल थी जो कभी अमेरिकी किसानों की रीढ़ मानी जाती थी और चीन उसका सबसे बड़ा खरीदार था. कुल अमेरिकी सोयाबीन का लगभग आधा हिस्सा.

अब खेतों में 4.5 अरब बुशल की रिकॉर्ड फसल पड़ी है, साइलो भर चुके हैं, और कीमतें गिरकर 10 डॉलर प्रति बुशल तक पहुंच गई हैं. मध्य-पश्चिम के किसान, जो कभी ट्रंप के कट्टर समर्थक थे, अब सरकार की राहत योजनाओं की राह देख रहे हैं.

Trump Tariff Policy China Shook US Economy: ‘ट्रंप टैरिफ’ का उल्टा असर

ट्रंप प्रशासन ने शुरुआत की थी चीन के आयात पर भारी टैरिफ लगाकर. मकसद था कि बीजिंग को व्यापार में रियायतें देने के लिए मजबूर करना. लेकिन हुआ उल्टा. चीन ने भी जवाबी वार करते हुए अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिया और सीधे निशाने पर लिया सोयाबीन उद्योग को. नतीजा सामने है कि मई 2025 तक चीन को अमेरिका से सोयाबीन की बिक्री शून्य हो गई. इसका मतलब है 52% की गिरावट और करीब 12.6 अरब डॉलर का नुकसान. किसानों की हालत ये है कि खेतों में फसल पड़ी है, गोदाम फट रहे हैं, पर खरीदार नहीं. भले ही वाशिंगटन बेलआउट पैकेज का एलान करे, पर नुकसान का दर्द मिट नहीं रहा.

ट्रंप की दलीलें और ‘किसानों का प्यार’

किसानों के गुस्से के बीच ट्रंप ने एक बार फिर वही पुरानी स्टाइल अपनाई बयानबाजी और भरोसे का तड़का. उन्होंने कहा कि हमारे देश के सोयाबीन किसानों को नुकसान हो रहा है क्योंकि चीन सिर्फ बातचीत के लिए सोयाबीन नहीं खरीद रहा है. हमने टैरिफ से इतना पैसा कमाया है कि उसी में से हम किसानों की मदद करेंगे. मैं अपने किसानों को कभी निराश नहीं करूंगा! इसके साथ ही ट्रंप ने बाइडेन पर भी हमला बोला कि सुस्त जो बाइडेन चीन के साथ वह समझौता लागू नहीं करवा पाए जिसमें अरबों डॉलर के हमारे कृषि उत्पाद खरीदने की बात थी. लेकिन मैं करूंगा. उन्होंने एलान किया कि वे चार हफ्तो में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने वाले हैं, और इस मीटिंग में सोयाबीन चर्चा का मुख्य विषय रहेगा. ट्रंप का नया नारा भी तैयार है कि सोयाबीन और दूसरी पंक्ति की फसलों को फिर से महान बनाओ!

चीन का शांत पलटवार

ट्रंप की बयानबाजी के बीच चीन ने एक शब्द भी ज्यादा नहीं कहा. बीजिंग ने न तो अमेरिका की नाराजगी का जवाब ट्वीट में दिया, न धमकी से. उसने सीधा रास्ता चुना नए सप्लायर तलाशने का. अब चीन की सोयाबीन आ रही है ब्राजील, अर्जेंटीना और यहां तक कि उरुग्वे से. क्योंकि चीन के लिए भरोसे की कीमत ज्यादा है, और इन देशों को वो “ज्यादा स्थिर, ज्यादा विश्वसनीय और कम आक्रामक” मानता है. अमेरिका का बाजार पीछे छूट गया, और चीन ने बिना कोई गोली चलाए, अमेरिका की खेती और राजनीति दोनों को झटका दे दिया.

इस आर्थिक जंग की मार सिर्फ़ किसानों तक सीमित नहीं है. अर्थशास्त्रियों की मानें तो अगर यही टैरिफ युद्ध चलता रहा, तो अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ सकता है. अनुमान है कि GDP में 0.5% से 6% तक की गिरावट आ सकती है, मजदूरी 5% तक घट सकती है, और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं. दुनिया की विकास दर घटकर 3% रह सकती है, जिससे बाकी देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी प्रभावित होंगी. एक छोटे से दाने की वजह से अब पूरी आर्थिक मशीनरी हिचकिचाने लगी है.

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Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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