Eliyahu Bezalel Indian Israeli passed away: इजरायल और भारत की मित्रता अब अपने नए मुकाम पर है. वैश्विक राजनीति में एकमात्र यहूदी देश इजरायल अपनी एक खास पहचान रखता है. लगभग भारत की आजादी के समय ही इस छोटे से देश की नींव पड़ी थी. उस समय इसे बनाने में भारत में बसे यहूदियों का भी योगदान था. भारत के ऐसे ही एक अनमोल नगीने ने दोनों देशों की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाए. हम बात कर रहे हैं एलियाहू बेजालेल की, जिन्होंने इजरायल में चरवाहे की नौकरी से सफर शुरू कर कृषि क्षेत्र में अपनी मेहनत और लगन के दम पर एक प्रतिष्ठित पहचान बनाई. प्रवासी भारतीय सम्मान प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के उद्यमी एलियाहू बेजालेल का रविवार को 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया.
केरल के चेंदमंगलम गांव में जन्मे बेजालेल वर्ष 1955 में मात्र 25 साल की उम्र में इजरायल पहुंचे थे. हालांकि वे विदेश में रहने लगे थे, फिर भी अपनी मातृभूमि भारत के प्रति उनका भावनात्मक लगाव हमेशा अटल रहा. उनका कहना था कि “सह-अस्तित्व की भावना का पाठ” उन्हें भारत ने ही सिखाया. वर्ष 2006 में उन्हें प्रवासी भारतीय सम्मान दिया गया था, जो भारत सरकार द्वारा एनआरआई को प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है. एलियाहू ने दोनों देशों के प्रति अपने प्यार को समर्पित करते हुए माई मदरलैंड माई फादरलैंड नामक पुस्तक भी लिखी. एक सोशल मीडिया पोस्ट के मुताबिक उन्होंने अपने जन्म स्थान पर यहूदी सिनेगॉग के पास अपना घर भी बनवाया था. वे साल भर में दो महीने के लिए अपने इस घर में जरूर आते थे.
भारतीय होने पर रहा गर्व
एक बार ‘पीटीआई’ से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था, “मुझे भारतीय होने पर बेहद गर्व है. मेरे बच्चे और मेरे पोते-पोतियां खुद को गर्व से कोचीन का निवासी और भारतीय बताते हैं. वे मानते हैं कि वे ऐसी संस्कृति से आते हैं जो सभी धर्मों का सम्मान करती है और जहां हमारे पूर्वजों ने कभी भी यहूदी-विरोध का सामना नहीं किया.”
बेजालेल को मिले ढेरों पुरस्कार
नेगेव रेगिस्तान में बागवानी की शुरुआत कर बेजालेल ने 1964 में तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री लेवी एशखोल से सर्वश्रेष्ठ निर्यातक का पुरस्कार हासिल किया. बागवानी में मिली अपनी विशेषज्ञता को उन्होंने भारतीय किसानों के साथ भी साझा किया. 1994 में इजरायल की संसद, नेसेट, ने उन्हें कपलान पुरस्कार से सम्मानित किया.
इजरायल के दक्षिणी हिस्से में स्थित उनके खेत भारतीय किसानों और नेताओं के बीच हमेशा आकर्षण का केंद्र रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा, कृषि मंत्री शरद पवार और कृषिविद् एम.एस. स्वामीनाथन जैसे कई प्रमुख लोग उनके खेतों का दौरा कर चुके हैं.
रेगिस्तान में उगा दिए फूल
1971 से वे भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर बागवानी पर व्याख्यान देते रहे और नई तकनीक सिखाते रहे. इजरायल आने के कुछ वर्षों बाद उन्होंने नेगेव क्षेत्र में बसने का निर्णय लिया. यह एक ऐसा समय था जब वहां बहुत कम लोग रहना चाहते थे. 1958 में जब उस क्षेत्र में पहली पाइपलाइन पहुंची, तो उन्होंने छोटे पैमाने पर खेती शुरू कर दी. 1959 में उन्होंने ग्लेडियोली फूलों के ‘बल्ब’ उगाकर हॉलैंड को निर्यात करना शुरू किया. उन्होंने बताया था कि नेगेव की मिट्टी इन बल्बों की खेती के लिए बिल्कुल उपयुक्त थी और हॉलैंड के लोग इसमें विशेष रुचि रखते थे. यह प्रयास इतना सफल रहा कि इसके बाद बेजालेल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और जल्द ही उन्हें अनेक पुरस्कार मिलते गए.
1969 में इजरायल के कृषि मंत्रालय ने उन्हें बागवानी के उन्नत प्रशिक्षण के लिए इंग्लैंड भेजा. वहां से लौटकर उन्होंने दो साझेदारों के साथ मिलकर इजरायल का पहला आधुनिक ग्रीनहाउस बनाया. धीरे-धीरे यह क्षेत्र इजरायली विशेषज्ञता का वैश्विक उदाहरण बन गया. इसके बाद उन्होंने हॉलैंड को गुलाब निर्यात करना शुरू किया और इजरायल उस देश का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया.
बेजालेल का कठिन समय
बेजालेल ने कृषि के शुरुआती सिद्धांत वहीं सीखे. दि हिंदू को दिए गए एक इंटरव्यू में वे बताते हैं, “हमारा विवाह 1958 में हुआ. बटजियोन, जो मट्टांचेरी (केरल) की थीं, मुझसे एक वर्ष पहले युवाओं के प्रवासन कार्यक्रम के तहत इजराइल पहुंची थीं. हमारे पास कुछ नहीं था, न पानी, न उपजाऊ जमीन. हमें जो था, उससे ही संघर्ष कर काम चलाना था. शुरुआत में मैंने सड़क रखरखाव, वानिकी और चरवाहे के रूप में काम किया. हम 500–600 भेड़-बकरियों को चराने ले जाते थे. जब तक वे चरतें, मैं एक पूरी किताब पढ़ लेता था. पहले बच्चे के जन्म के बाद भी हम उसे खेत पर साथ ले जाते और एक उलटी मेज़ के अंदर रखकर काम करते थे. यह चुनौतीपूर्ण था, लेकिन हम जानते थे कि यह हमारी अस्तित्व की लड़ाई है.”
कुछ ही समय में वह डेविड बेन गुरियन (इजराइल के संस्थापक और पहले प्रधानमंत्री) की उस महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा बन गए, जिसमें विशाल रेगिस्तानी क्षेत्रों को उपजाऊ कृषि भूमि में बदलने का स्वप्न था. उन्हें इजराइल के दक्षिण में नेगेव रेगिस्तान के एक गांव में जमीन दी गई, जहाँ उन्होंने साबित किया कि रेगिस्तान में भी गुलाब खिल सकते हैं. उन्होंने कहा, “मुझे सेना में बुला लिया गया था, और उस दौरान मेरी पत्नी ने अकेले खेत संभाला, बच्चों की देखभाल की, करों का भुगतान किया, सब कुछ किया.”
ग्रीनहाउस क्रांति और इजरायल में चमक उठे बेजालेल
बेजालेल यूरोप भी गए, जहाँ उन्होंने इजराइल की छात्रवृत्ति पर आधुनिक ग्रीनहाउस तकनीक और फूलों की खेती सीखने के तरीके सीखे. लौटकर, दो भारतीय-यहूदी साथियों के साथ उन्होंने इजराइल का पहला आधुनिक ग्रीनहाउस स्थापित किया. यह बागवानी क्षेत्र में बड़े बदलाव की शुरुआत थी. उन्होंने ‘फर्टिगेशन’ तकनीक में महारत हासिल की, जिसमें पौधों को दिए जाने वाले हर बूंद पानी में सटीक मात्रा में खाद मिलाई जाती है.
वे कहते हैं, “कई लोग मेरा ग्रीनहाउस देखने आते थे. 10,000 वर्गमीटर में एक ही रंग के गुलाब उगाए जाते थे. सुबह-शाम कटाई होती, पैकिंग और निर्यात रोजाना चलता. हमारी इन उपलब्धियों को इजराइली सरकार ने मान्यता दी. प्रधानमंत्रियों ने व्यक्तिगत रूप से खेत और घर का दौरा किया. कई मौकों पर भारतीय नेता भी उनके साथ थे.”
बेजालेल ने बताया था कि कोचीन यहूदियों के छह गाँव इजराइल में बसे हैं. उन्होंने शिक्षा, कृषि और अन्य क्षेत्रों में उच्च मानक स्थापित किए हैं. उन्होंने द हिंदू को दिए इंटरव्यू मे कहा था, “हर मार्च में हम डेड सी के पास इकट्ठा होते हैं. गाते हैं, कोच्चि की कहानियाँ सुनाते हैं, यादें बाँटते हैं. अब हम मिश्रित नस्ल बन गए हैं. कोई कोचीन यहूदी अब अपने ही समूह में शादी नहीं करता. घर में मलयालम नहीं बोली जाती, इसलिए मेरे बच्चे यह भाषा जानते ही नहीं. हमें जोड़ने वाली भाषा अब हिब्रू है. इजराइल में हर प्रवासी के लिए हिब्रू सीखना अनिवार्य है और सरकार इसके लिए भत्ता भी देती है.”
भारतीय यहूदी विरासत केंद्र ने दी श्रद्धांजलि
भारतीय यहूदी विरासत केंद्र और कोचीन यहूदी विरासत केंद्र ने अपनी श्रद्धांजलि में लिखा, “उनका जीवन सादगी, दृढ़ संकल्प, और परिवार व कार्य के प्रति समर्पण से भरा रहा. एलियाहू बेजालेल ने कभी भी भारत से जुड़ी अपनी जड़ों को नहीं भुलाया.” वे अपनी बेटी के साथ किद्रोन में रहते थे और पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे.
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