वाशिंगटन : भारतीय वायु सेना के पूर्व प्रमुख जनरल (सेवानिवृत्त) वी के सिंह का कहना है कि भारत को नियंत्रण रेखा पर सीमापार से पाकिस्तानी गोलीबारी और चीन द्वारा सीमा के बढ़ते अतिक्रमण का ‘‘कड़ा जवाब’’ देना चाहिए.
सिंह ने कहा, ‘‘अगर आप यह संदेश देना चाहते हैं कि ‘ठीक है आप जो चाहे कर सकते हैं, लेकिन हम उसका जवाब नहीं देंगे’, तो वह और कुछ करते चले जाएंगे.’’कश्मीर में नियंत्रण रेखा के उस पार से पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी और चीन द्वारा सीमा के अतिक्रमण की घटनाओं के बारे में पूछे जाने पर, सिंह ने स्पष्ट किया कि भारत को इस तरह के ‘‘प्रयासों का कड़ा जवाब देना चाहिए.’’
उन्होंने कहा, ‘‘देखिए, जहां तक पाकिस्तान से सटी नियंत्रण रेखा की बात है, तो इसके अपने पहलू हैं, बहुत सी चीजें होती हैं. लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी तो है कि आप किस तरह का संदेश देना चाहते हैं.’’ भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के झंडाबरदार अन्ना हजारे के साथ अमेरिका की यात्रा पर आए सिंह ने कहा, ‘‘सबको पता है कि पाकिस्तान हमारे खिलाफ छद्म युद्ध छेड़े हुए है और अगर आतंकवादी घुसपैठ नहीं कर पाएंगे तो वह नियंत्रण रेखा पर कुछ और करेंगे, ऐसे में एक कड़ा संदेश दिए जाने की जरुरत है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक चीन की बात है, चीन ताकत और मजबूत इच्छा की इज्जत करता है. अगर आप उस तरह की नीतियां अपनाने की कोशिश करेंगे, जैसी 1950 के दशक में अपनाई गई थीं तो आप परेशानी में पड़ जाएंगे.’’ सिंह ने कहा, ‘‘सरकारी स्तर पर एक ज्यादा मजबूत जवाब होना चाहिए. तभी लोगों को एहसास होगा कि कोई काम क्यों किया जाना चाहिए अथवा नहीं किया जाना चाहिए.’’
छह अगस्त को नियंत्रण रेखा के आसपास एक हमले में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बिगड़ गए थे. उसके बाद से दोनों पक्ष एक दूसरे पर 2003 के संघर्ष विराम समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाते रहते हैं. भारत ने लद्दाख क्षेत्र में चीन द्वारा विवादित सीमा का कई बार उल्लंघन करने का आरोप लगाया है.
भारत की रक्षा क्षमताएं बढ़ाने के लिए पहल करना चाहिए : सिंह
वाशिंगटन : भारत के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल (सेवानिवृत्त) वी के सिंह का कहना है कि अगर भारत को एक दोस्त और एशिया में एक महत्वपूर्ण बिंदु माना जाता है तो उसकी रक्षा क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिए अमेरिका को उसके साथ संयुक्त उपक्रम की स्थापना के लिए प्रयास करने चाहिए.
सिंह ने कहा कि दोनों देशों के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी में सहयोग की बहुत संभावना है और अगर भारतीय सैन्य अधिकारियों को अमेरिका के साथ बातचीत में बेहतर भूमिका दी जाए तो चीजें तेज रफ्तार से आगे बढ़ेंगी.
उन्होंने कहा, ‘‘अगर अमेरिका को लगता है कि भारत एक दोस्त है और उसके लिए एशिया में एक महत्वपूर्ण बिंदु है तो दोनों के बीच संयुक्त उपक्रम के तौर पर बेहतर सहयोग पर काम किया जा सकता है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘अब नीतियों को ठोस शक्ल देने का समय आ गया है.’’ यह याद दिलाते हुए कि अमेरिका प्रौद्योगिकी का गढ़ है, सिंह ने कहा थल, जल और वायु क्षेत्रों में बहुत कुछ साझा किया जा सकता है, जिससे अमेरिका को बेहतर आर्थिक लाभ और भारत को तकनीकी फायदा मिल सके.
सिंह ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि भारत के साथ यह तकनीक साझा करने पर अमेरिका में कुछ एतराज हैं. मुझे लगता है कि यह दोनों देशों के परस्पर हित में है.’’ उन्होंने कहा कि भारत को प्रौद्योगिकी की दरकार है, साजो सामान की नहीं, ‘‘उसके पास कुछ भी बनाने की महान क्षमताएं हैं, खास तौर से निजी क्षेत्र में, बशर्ते प्रौद्योगिकी उपलब्ध हो.’’
सिंह ने दावा किया कि भारतीय प्रणाली पर नौकरशाहों का प्रभुत्व है जो भारत और अमेरिका के बीच सेना से सेना के बीच वास्तविक वार्ता में बाधक है, नतीजतन विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच रक्षा संबंधों की वास्तविक क्षमता का दोहन नहीं हो पा रहा.
सिंह भारत के ऐसे एकमात्र जनरल हैं, जिन्हें अमेरिका के प्रतिष्ठित आर्मी वार कालेज में इंटरनेशनल फैलो ऑफ फेम में जगह दी गई. उन्होंने मार्च 2010 से फरवरी 2012 के बीच भारतीय सेना के प्रमुख के पद पर रहते दोनों देशों के बीच मजबूत रक्षा संबंधों पर जोर दिया.