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सीमॉस टेक्निक से विकसित हुआ राडार, अब दीवारों के पार देखना होगा संभव

भारतीय शोधकर्ता नित नये अनुसंधान के जरिये अपनी प्रतिभा से दुनिया को परिचित कराते रहते हैं. इसी क्रम में भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा राडार विकसित किया है, जिसके जरिये दीवार के आर-पार देखना संभव है. यह राडार आकार में अत्यंत छोटा है. सीमॉस टेक्निक से तैयार राडार की कार्यप्रणाली, गूगल […]

भारतीय शोधकर्ता नित नये अनुसंधान के जरिये अपनी प्रतिभा से दुनिया को परिचित कराते रहते हैं. इसी क्रम में भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा राडार विकसित किया है, जिसके जरिये दीवार के आर-पार देखना संभव है. यह राडार आकार में अत्यंत छोटा है. सीमॉस टेक्निक से तैयार राडार की कार्यप्रणाली, गूगल का नया चैटबॉट, कीबोर्ड शॉर्टकट बनाने के तरीके समेत गैजेट्स की दुनिया की हलचलों के साथ प्रस्तुत है आज का इन्फो टेक्नोलॉजी पेज…
भारतीय शोधकर्ताओं ने चावल के दाने से भी छोटी चिप पर एक ऐसा राडार विकसित किया है, जो दीवार के आर-पार की गतिविधियों को देखने में सक्षम है. भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित थ्रू-द-वॉल राडार (टीडब्ल्यूआर) वास्तव में एक तरह की इमेजिंग तकनीक है. इस तरह के राडार रक्षा क्षेत्र से लेकर कृषि, स्वास्थ्य और परिवहन समेत विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी साबित हो सकते हैं.
इस राडार को विकसित करने वाले शोध दल का नेतृत्व कर रहे भारतीय विज्ञान संस्थान के इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर गौरव बनर्जी का कहना है कि दुनिया के कुछ ही देशों के पास ऐसी तकनीकी क्षमता है जिसके जरिये किसी राडार के पूरे इलेक्ट्रॉनिक्स को एक चिप पर स्थापित किया जा सकता है.
रेडियो तरंग के सिद्धांत पर काम करता है राडार
कंप्लीमेंटरी मेटल-ऑक्साइड सेमिकंडक्टर यानी सीमॉस तकनीक के उपयोग से विकसित इस राडार में एक ट्रांसमीटर, एक एडवांस फ्रीक्वेंसी सिंथेसाइजर और तीन रिसीवर लगाये गये हैं जो जटिल राडार संकेत उत्पन्न करने में सक्षम हैं. इन सभी इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट को एक छोटे से चिप पर स्थापित किया गया है. शोधकर्ताओं का मानना है कि आकार में छोटा होने के कारण आसानी से बड़े पैमाने पर इस राडार का उत्पादन किया जा सकता है.
यह राडार किसी वस्तु से संकेतों के टकराकर वापस लौटने के सिद्धांत पर काम करता है. इस तरह के संकेतों के आधार पर वस्तु या इंसान का एक खाका तैयार किया जा सकता है और यह निर्धारित करने में मदद मिल सकती है कि वह वस्तु किस गति से आगे बढ़ती है. असल में टीडब्ल्यूआर तकनीक आम राडार से एक कदम आगे की तकनीक है जो रेडियो तरंगों के जरिये दीवारों को भेदने के सिद्धांत पर काम करती है, जिसे प्रकाश की किरणें भी नहीं भेद सकती हैं.
चुनौतीपूर्ण था ऐसा राडार बनाना
डॉ गौरव बनर्जी के अनुसार, टीडब्ल्यूआर इमेजिंग के जरिये राडार डिजाइन करना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है. इसकी एक वजह यह है कि दीवारों से गुजरते हुए संकेत मंद पड़ जाते हैं. लेकिन हाइ फ्रिक्वेंसी से युक्त रेडियो तरंगें इस चुनौती को हल करने में उपयोगी साबित हो सकती हैं.
इस तरह के राडार में खास तरह के चर्प सिग्नल का उपयोग किया जाता है, जिसमें माइक्रोवेव ट्रांसमीटर, एक रिसीवर और एक एडवांस फ्रिक्वेंसी सिंथेसाइजर जैसे कस्टमाइज्ड इलेक्ट्रॉनिक्स की आवश्यकता होती है. इस राडार के विकास से जुड़ी विशिष्ट चुनौतियों से पार पाने के लिए वैज्ञानिकों ने नये आर्किटेक्ट और सर्किट डिजाइन तकनीक का उपयोग किया है, जिसमें विस्तृत बैंडविड्थ ट्रान्सीवर डिजाइन शामिल है. राडार के नये डिजाइन की बदौलत ही भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक इन सभी इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट को एक छोटी चिप में लगाने में सक्षम हो सके हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस चिप को विकसित करने का मूल कारण एयरपोर्ट सुरक्षा से जुड़े एप्लिकेशन की मदद करना है. हालांकि, शोधार्थियों की टीम स्वास्थ्य जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इस चिप के उपयोग के तरीके खोजने में जुटी है. टीडब्ल्यूआर सिस्टम की एक विशेषता है कि यह किसी घर को स्कैन करके वहां मौजूद व्यक्ति की गतिविधियों से लेकर उनके सांस लेने की दर तक का आकलन कर सकती है.
न्यूरल-कन्वरसेशनल मॉडल आधारित गूगल का नया चैटबोट मीना
उपभोक्ता और उद्योग इन दिनों चैटबोट में काफी रुचि दिखा रहे हैं. बीते दशक इस एप्लिकेशन के उभार को देखते हुए इस वर्ष इसमें बदलाव देखने को मिल सकता है. वर्तमान में चैटबोट में सीमित प्रश्नों के उत्तर वाला इंटरफेस देखने को मिलता है, लेकिन गूगल कुछ महत्वपूर्ण बदलाव के साथ नये तरह के चैटबोट पर काम कर रहा है जो इंसानों की तरह व्यवहार करेगा. खबरों के मुताबिक, इस नये चैटबोट का नाम मीना रखा गया है और गूगल की ब्रेन रिसर्च टीम इस पर काम कर रही है.
रिसर्च टीम की मानें तो यह चैटबोट हर तरह का चैट में सक्षम होगा. यह एंड-टू-एंड प्रशिक्षित तंत्रिका संवादी मॉडल (ट्रेंड न्यूरल-कन्वरसेशनल मॉडल) पर आधारित होगा. इस मॉडल के प्रयोग से गूगल वर्तमान में चैटबोट में मौजूद कई महत्वपूर्ण खामियों को दुरुस्त करेगा.
गूगल की रिसर्च टीम- ब्रेन टीम के सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट थेंग लोंग और सीनियर रिसर्च इंजीनियर डैनियल एडिवारडाना ने एक गूगल पोस्ट में इस चैटबोट को लेकर कई जानकारी साझा की है. इस जानकारी के अनुसार, कई बार सामान्य बोध और सामान्य ज्ञान में कमी के चलते चैटबोट द्वारा उपभोक्ताओं को दिये जाने वाले उत्तर बेमेल से लगते हैं. इसके साथ ही, चैटबोट अक्सर ऐसी प्रतिक्रियायें देता है जो वर्तमान संदर्भ के लिए विशिष्ट नहीं होता है.
गूगल का मीना मुख्य तौर पर इस संदर्भ में अलग होगा कि यह वार्तालाप के संदर्भ को समझने पर ध्यान देगा. इससे चैटबोट पहले के मुकाबले ज्यादा समझदार जवाब दे पायेगा. वास्तव में गूगल की रिसर्च टीम का उद्देश्य ऐसे चैटबोट का निर्माण करना है जो यूजर्स की इच्छाओं के अनुरूप चैट कर सके. एक ब्लॉग पोस्ट में गूगल की ब्रेन टीम ने मीना के साथ हुए दो संवाद भी दिखाये हैं, जिसमें एक में यूजर मीना को अनुशंसा दिखाने को कहता है. जबकि दूसरे वार्तालाप के जवाब में मीना चुटकुले के साथ जवाब देती है.

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