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ईश्वर चंद्र विद्यासागर समाज सुधार की मशाल, विधवाओं के लिए बने बड़ी उम्मीद

संस्कृत के विद्वान और प्रसिद्ध समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने तत्कालीन सामाजिक रुढ़ियों को चुनौती दी. बाल विवाह, महिलाओं के शिक्षा के अधिकार और विधवा पुनर्विवाह कानून पास करने में उनका योगदान अतुलनीय है. 19वीं सदी के लिए महान सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रेरणा 21वीं सदी में उससे कहीं अधिक है. ऐसे वक्त […]

संस्कृत के विद्वान और प्रसिद्ध समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने तत्कालीन सामाजिक रुढ़ियों को चुनौती दी. बाल विवाह, महिलाओं के शिक्षा के अधिकार और विधवा पुनर्विवाह कानून पास करने में उनका योगदान अतुलनीय है.
19वीं सदी के लिए महान सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रेरणा 21वीं सदी में उससे कहीं अधिक है. ऐसे वक्त में जब हम सामाजिक स्तर पर तमाम विषमताओं का सामना कर रहे हैं, उनकी मुहिम हमारी सबसे बड़ी मार्गदर्शक है. ईश्वर चंद्र विद्यासागर के 200वें जयंती वर्ष के प्रारंभ के अवसर पर उनके योगदान, महिलाओं की दशा में सुधार, देश में विधवाओं की वर्तमान स्थिति समेत तमाम जानकारियों पर विशेष प्रस्तुति.
विधवाओं के लिए बने बड़ी उम्मीद
महान शिक्षाविद, संस्कृत विद्वान और प्रसिद्ध सामाजिक सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने समाज में व्याप्त रुढ़ियों को चुनौती देते हुए सामाजिक सुधार की जो अलख जगायी, उससे देश में सामाजिक स्तर पर क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ. विधवा पुनर्विवाह अधिनियम और महिलाओं की शिक्षा प्रसार में विद्यासागर की भूमिका अकथनीय है.
उन्होंने बाल विवाह जैसे क्रूरतम कृत्यों को रोकने के लिए अभियान चलाया. महान शिक्षाविद् विद्यासागर का बंगाली भाषा के विकास में बहुत बड़ा योगदान है. बंगाली भाषा की लिपि और वर्णक्रम के विकास में ईश्वरचंद्र ने अमूल्य योगदान दिया है. विद्यासागर भारत के इतिहास में ऐसे महापुरुष के रूप में दर्ज हैं, जिनकी सोच और कार्य करने के तरीके समय से बहुत आगे थे.
साल 1854 में विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह के लिए अभियान शुरू किया. 19वीं सदी में व्याप्त कई कुप्रथाएं महिलाओं के जीवन को नरक बना रही थीं.
मसलन, किशोर आयु में ही बालिकाओं का विवाह अधेड़ पुरुषों से कर देने जैसा चलन था. पति का निधन हो जाने के बाद ऐसी लड़कियों को ताउम्र सफेद साड़ी में एक कलंकित और पृथक अस्तित्व में जीने को मजबूर होना पड़ता था. एेसी सामाजिक कुप्रथाओं से आहत विद्यासागर ने 1854 में तत्वबोधिनी पत्रिका में कुरीतियों के खिलाफ लिखना शुरू किया.
उन्होंने तत्कालीन सरकार के सामने एक याचिका देकर विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए कानून बनाने की मांग की. उन्हें वर्धमान के महाराजा का समर्थन मिला. हालांकि, हिंदू समाज के कई संगठनों ने उनका पुरजोर विरोध किया. उनके प्रयासों के फलस्वरूप 26 जुलाई, 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पास हुआ.
बांग्ला का आधार विद्यासागर की पुस्तिका ‘बर्णो पोरिचय’
आज भी 160 वर्ष से अधिक समय बाद यदि कोई बच्चा बांग्ला की शिक्षा लेना प्रारंभ करता है, तो उसके हाथ में सबसे पहले विद्यासागर द्वारा रचित ‘बर्णो पोरिचय’ दी जाती है. इसमें बांग्ला अक्षरों की जानकारी होती है. बंगाल पुनर्जागरण के इस महापुरुष का ज्ञान के प्रति समर्पण अनेक पीढ़ियों से प्रेरणा बना हुआ है. आज भी माता-पिता अपनी संतानों को और शिक्षक अपने शिष्यों को बताते हैं कि निर्धन परिवार में पैदा हुए विद्यासागर ने सड़क पर लगी रोशनी के नीचे पढ़ाई की थी.
अक्षर ज्ञान के अलावा कालिदास की ‘शकुंतला’ समेत अनेक संस्कृत ग्रंथों के उनके अनुवाद ने बांग्ला भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में बड़ा योगदान दिया. उन्होंने विधवाओं की दुर्दशा पर दो भागों में पुस्तक की रचना की और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लगभग 35 विद्यालयों की स्थापना की. उन्होंने वर्तमान झारखंड में संताल आदिवासियों के उत्थान के लिए वर्षों तक अथक परिश्रम किया था और संताल बालिकाओं की शिक्षा के लिए पहले विद्यालय की स्थापना की थी.
महान बंगाली शख्सियतों में नौवें स्थान पर विद्यासागर
बंगाल के हजार वर्षों के इतिहास में सबसे महान बंगाली हस्तियों को जानने के लिए बीबीसी की बांग्ला-सेवा ने साल 2004 में एक ओपिनियन पोल का आयोजन किया. यह ओपिनियन पोल 11 फरवरी से 22 मार्च के बीच चला, जिसमें सिर्फ भारत के बंगालियों ने ही नहीं, बल्कि विदेशों में रहनेवाले बंगालियों ने भी हिस्सा लिया. पोल में कुल 140 हस्तियों के नाम सामने आये, जिनमें से शीर्ष सौ हस्तियों के नाम की घोषणा बांग्लादेश के स्वतंत्रता-दिवस 26 मार्च से लेकर बंगाली नव वर्ष 14 अप्रैल के बीच की गयी.
पहली महान शख्सियत के रूप में बांग्लादेश के संस्थापक-पिता शेख मुजीबुर रहमान हैं, जिन्हें ‘बंगबंधु’ के नाम से भी जाना जाता है. दूसरी शख्सियत रबींद्रनाथ टैगोर हैं, जिन्होंने भारत और बांग्लादेश, दोनों देशों के राष्ट्रगान लिखे थे. इस सूची में समाज-सुधारक और शिक्षाविद ईश्वर चंद्र विद्यासागर नौवीं शख्सियत हैं.
जीवन परिचय
जन्मतिथि 26 सितंबर, 1820
जन्मस्थान बीरसिंहा, जिला मेदिनीपुर बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान में पश्चिम बंगाल).
माता-पिता ठाकुरदास बंद्योपाध्याय और भगवती देवी
पत्नी दिनामनी देवी
बच्चे नारायण चंद्र बंद्योपाध्याय
शिक्षा संस्कृत कॉलेज, कलकत्ता
आंदोलन बंगाल नवजागरण
सामाजिक सुधार विधवा पुनर्विवाह
प्रकाशित कृतियां बेताल पंचबिंसति (1847), जीबनचरित्र (1850), बोधादोय (1851), बर्नोपोरिचय(1854), सितार बोनोबास (1860)
निधन 29 जुलाई, 1891 कलकत्ता, बंगाल प्रेसिडेंसी (पश्चिम बंगाल).
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