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भारत-ईरान व्यापारिक संबंध पर सीधा असर

संदीप बामजई, आर्थिक मामलों के जानकार भारत का ईरान के साथ बहुत पुराना संबंध है और ईरान से तेल आयात करनेवाला भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है. भारत में तेल की मांग का तकरीबन 12 प्रतिशत हिस्सा ईरान से आता है. इसलिए भारत के लिए ईरान बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन दोनों में एक […]

संदीप बामजई,
आर्थिक मामलों के जानकार
भारत का ईरान के साथ बहुत पुराना संबंध है और ईरान से तेल आयात करनेवाला भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है. भारत में तेल की मांग का तकरीबन 12 प्रतिशत हिस्सा ईरान से आता है. इसलिए भारत के लिए ईरान बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन दोनों में एक अटूट संबंध है.
यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत डॉलर के मुकाबले रुपये में ही ईरान से तेल खरीदता है और फॉरेन एक्सचेंज की जरूरत भी नहीं पड़ती. जाहिर है, इससे तेल सस्ता पड़ता है. एक दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भारत को तेल खरीद पर ईरान 60 दिन का क्रेडिट भी देता है, जो दुनिया का कोई देश नहीं देता. और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि भारत तेल के बदले में ईरान को रुपये की जगह चावल या कोई अन्य चीज दे देता है. साथ ही ईरान से तेल निर्यात करने के टर्म्स भी बहुत सुलझे हुए हैं. ये बातें भारत और ईरान के बीच प्रगाढ़ संबंधों का बेहतरीन सबूत हैं.
जब से ईरान पर अमेरिका ने प्रतिबंधों का खेल खेलना शुरू किया है, तब से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत बढ़ते-बढ़ते अब 75 डॉलर प्रति बैरल हो गयी है. इसका सीधा असर भारत पर पड़ेगा. भारत तकरीबन 80 प्रतिशत तेल विदेश से खरीदता है. एक तरफ भारत में तेल की मांग लगातार बढ़ रही है, तो वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल का दाम भी बढ़ रहा है. इसका मतलब साफ है कि तेल की धार महंगी होगी ही.
सऊदी अरब, अबूधाबी, कतर आदि देशों से भी भारत के अच्छे संबंध हैं, जहां से हम तेल खरीद सकते हैं. लेकिन, इनके साथ समस्या है कि ये देश भारत से रुपये में पेमेंट नहीं लेते और न ही इतना क्रेडिट ही देते हैं.
इसलिए भारतीय तेल कंपनियों- भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और इंडियन ऑयल- का ईरान के साथ अच्छे संबंध हैं. ईरान के साथ भारत अब एक रणनीतिक योजना पर काम कर रहा है, जिसके तहत भारत ने ईरान के चाबहार में एक पोर्ट बनाने में निवेश किया है. ठीक उसी तरह से, जैसे पाकिस्तान के ग्वादर में चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना- ओबीओआर है. चाबहार एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जिससे भारत और ईरान के बीच तेल व्यापार को एक नया आयाम मिलेगा.
मध्य-पूर्व में सऊदी अरब, यूएई और कतर जैसे देश ईरान के खिलाफ हैं. वहीं अमेरिका तो सऊदी अरब और यूएई के साथ खड़ा है, पर ईरान के खिलाफ है. यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत का इन सभी के साथ अच्छे संबंध हैं. इसलिए भारत के लिए मुश्किल है कि वह अमेरिका की सुने या फिर ईरान के साथ अपने प्रगाढ़ संबंधों को बनाये रखे.
ईरान पर प्रतिबंध लगता है, तो भी भारत के पास कई विकल्प हैं. वह सऊदी अरब या अबुधाबी से तेल खरीद सकता है, यहां तक कि वह अमेरिका से भी खरीद सकता है.
लेकिन, ईरान के मुकाबले किसी भी अन्य देश से तेल खरीदना भारत के लिए बहुत महंगा सौदा है. तेल की वैश्विक अर्थव्यवस्था में ईरान शीर्ष पांच देशों में है. ईरान प्रतिदिन 3.5 मिलियन बैरल कच्चे तेल उत्पादन करता आ रहा था, लेकिन खींचतान के चलते आज ईरान प्रतिदिन मात्र 2.7 मिलियन बैरल तेल उत्पादित करता है. स्वाभाविक है कि इसका असर ईरानी अर्थव्यवस्था के साथ ही तेल की वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा.
इधर अमेरिका ईरान पर दबाव डालता है, उधर इस्राइल भी अमेरिका पर दबाव डालता है. अब अगर ईरान पर प्रतिबंध लगते हैं, तो वैश्विक तेल के दाम पर असर होगा, जिसका सीधा असर भारत पर होगा, चीन पर होगा, ग्रोथ पर होगा, आयात पर होगा, फॉरेन एक्सचेंज रेट पर होगा. यानी एक की वजह से दसियों चीजों पर सीधा और ऑटोमेटिक असर पड़ेगा.

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