दक्षा वैदकर
बिजनेस करना अच्छी बात है, लेकिन क्या बिजनेस क्लीन और प्योर नहीं हो सकता? क्या बिजनेस करते वक्त अपने फायदे से पहले दूसरे के फायदे के बारे में सोचा जा सकता है? क्या हम यह कर सकते हैं कि हमारा लाभ किसी दूसरे के नुकसान के बदले में न हो. दोनों को ही फायदा हो. एक उदाहरण लें.
मान लीजिए, आप एक बेकरीवाले के पास गये और आपने उससे 20 रुपये की ब्रेड मांगी. बेकरीवाले ने ब्रेड को देखा और आपसे कहा, ‘सर, ये ब्रेड बासी हो गयी है. आप कल फ्रेश ब्रेड ले जाएं’. आप उस बेकरीवाले के बारे में क्या सोचेंगे? आप उसे दुआएं देंगे और सोचेंगे, वाह, आजकल के जमाने में भी इतने अच्छे इनसान होते हैं.
अब इसका दूसरा पक्ष देखें. अगर बेकरीवाले ने बिना कुछ कहे आपको वह ब्रेड दे दिया होता और आपको घर आ कर पता चलता कि वह बासी है, तो आप क्या सोचते? भले ही 20 रुपये कोई बड़ी रकम नहीं होती, लेकिन आप उस बेकरीवाले को कोसते. आप सोचते कि उसने आपको धोखा दिया है. पहली वाली सिचुएशन में बेकरीवाले ने भले ही अपना 20 रुपये का नुकसान किया, लेकिन उसने बदले में उस ग्राहक की दुआएं कमा ली. ऐसी सिचुएशन हम सभी के सामने आती है. इसमें हमें तय करना है कि या तो हम दुआएं कमा सकते हैं या इसके विपरीत मिलनेवाली चीजें. हमें खुद से यह वादा करना होगा कि हम अपने फायदे से पहले दूसरे का फायदा सोचेंगे. अगर आपने अपने फायदे के बारे में ही सोचा और दूसरे को बदले में दर्द मिला, धोखा मिला, तो सामने वाले की तरफ से आपको नेगेटिव एनर्जी मिलेगी, जो आपके और आपके परिवार के लिए नुकसानदायक होगी.
दोस्तों, जब हम बिजनेस करते हैं और उससे धन कमाते हैं, तो जरूरी नहीं है कि हम दुआएं कमा रहे हैं. लेकिन जब हम दुआएं कमाते हैं, तो हम अपनी कैपेसिटी से कई गुना ज्यादा धन कमाने लगते हैं. यह सच है. उस बेकरीवाले के साथ भी यही हुआ. उस ग्राहक ने कई लोगों से उसकी इमानदारी की बात कही और बाद में उसकी बेकरी में लोगों की भीड़ लगने लगी.
बात पते की..
– जब आप धन कमाते हैं, तो घर में चीजें आती हैं, लेकिन जब आप दुआएं कमाते हैं, तो वह धन के साथ खुशी, सेहत, प्यार भी लेकर आता है.
– किसी को दुख दे कर कमाया गया धन आपके घर में भी दुख ही लेकर आयेगा. इसलिए किसी को धोखा दे कर बिजनेस बिल्कुल न करें.