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नागरिकता संशोधन विधेयक: ‘पूर्वोत्तर के लोग ग़ुलाम नहीं’- नज़रिया

<figure> <img alt="गौरव गोगोई" src="https://c.files.bbci.co.uk/1827D/production/_110114989_gettyimages-1183881458.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>असम में कई तरह की जाति-जनजातियाँ रहती हैं जिनकी संख्या आज कम है और वो उपेक्षित भी हैं. उनकी भाषा को जिस तरह से पहचान मिलनी चाहिए थी, वैसी पहचान नहीं मिल पाई है.</p><p>उनके समाज में इस बात का डर है कि उनकी भाषा और […]

<figure> <img alt="गौरव गोगोई" src="https://c.files.bbci.co.uk/1827D/production/_110114989_gettyimages-1183881458.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>असम में कई तरह की जाति-जनजातियाँ रहती हैं जिनकी संख्या आज कम है और वो उपेक्षित भी हैं. उनकी भाषा को जिस तरह से पहचान मिलनी चाहिए थी, वैसी पहचान नहीं मिल पाई है.</p><p>उनके समाज में इस बात का डर है कि उनकी भाषा और संस्कृति धीरे-धीरे समाप्त हो रही है और ये बिल कहीं ना कहीं उनके मन में और शंका पैदा करता है.</p><p>सरकार को इस डर का ध्यान रखना चाहिए था और सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए था. लेकिन सरकार मनमाने ढंग से काम कर रही है.</p><p>यही वजह है कि लोग आज सड़क पर आ गए हैं. यहाँ के लोगों की ये एकदम स्वत: प्रतिक्रिया है. इसके साथ कोई संगठन या समूह जुड़ा हुआ नहीं है.</p><p>और अफ़सोस की बात ये है कि सरकार इस विरोध को दबाने के लिए इंटरनेट बंद कर रही है, एसएमएस बंद कर रही है.</p><p>जहाँ तक मेरे सूत्रों के हवाले से मुझे पता चला है, तो त्रिपुरा में फ़िलहाल दो दिन का बंद है. असम में भी इंटरनेट पर पाबंदी लगाई गई है और सुरक्षाबल तैनात किए गए हैं.</p><p>बार-बार गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं कि उत्तर-पूर्व में इस बिल का समर्थन हो रहा है. कोई विरोध नहीं कर रहा.</p><p>तो कौन हैं ये लोग जो सड़कों पर है? ये बड़ा सवाल है. ये सब आम लोग हैं. किसान हैं. छात्र हैं. बुज़ुर्ग हैं. सभी इस बिल का विरोध कर रहे हैं.</p><figure> <img alt="नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध" src="https://c.files.bbci.co.uk/163A/production/_110109650_e62e2db2-d4bd-4f20-be7f-3701a682902c.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><h3>असम में कड़े विरोध की वजह</h3><p>गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि इनर लाइन परमिट के तहत कई प्रदेशों और कुछ इलाकों में ये लागू नहीं होगा.</p><p>इनर लाइन परमिट अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड में पहले से ही लागू है.</p><p>राष्ट्रपति के आदेश के बाद बुधवार को इसका विस्तार मणिपुर तक कर दिया गया है.</p><p>इनर लाइन परमिट एक ख़ास दस्तावेज़ है जो इन राज्यों में बाहर से आने वाले लोगों को (भारतीय और ग़ैर-भारतीय सभी को) जारी किया जाता है.</p><p>इसकी तय समयसीमा ख़त्म होने के बाद बाहर से आए लोग यहाँ नहीं रुक सकते.</p><p>इसके तहत दूसरे राज्यों के लोगों के यहाँ ज़मीन खरीदने, घर बनाने और नौकरी करने पर भी रोक है.</p><p>ये उत्तर-पूर्व को बाँटने का बीजेपी का एक तरीक़ा है. लेकिन अगर आप देखें तो बीते दिनों विरोध सभी जगहों पर हो रहा है.</p><p>जिन जगहों को इनर लाइन परमिट के तहत सुरक्षा मिली है उन सभी जगहों पर भी विरोध हो रहा है.</p><p>एक बात तो ये है कि उत्तर-पूर्व इस मुश्किल दौर में एकजुट है. हम चाहें अलग-अलग जाति-जनजाति से क्यों न हों, लेकिन इस समय अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए पूरा समाज एक साथ आया है.</p><p>उत्तर-पूर्व की कई जगहों को इनर लाइन परमिट के तहत सुरक्षा दे दी गई है.</p><p>इसका सीधा मतलब ये है कि जो बाहर से लोग आएंगे वो सभी असम में ही आएंगे. पूरे उत्तर-पूर्व की ज़िम्मेदारी फिर अकेले असम को लेनी होगी.</p><figure> <img alt="नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध" src="https://c.files.bbci.co.uk/645A/production/_110109652_7c921b36-05dc-4c5b-8cf0-9026ece2b7e5.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><h3>आइडिया ऑफ़ इंडिया के ख़िलाफ़ क्यों?</h3><p>स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि पूरी दुनिया में भारत एकमात्र ऐसा देश हैं जहाँ हर कोने से और हर धर्म के शरणार्थियों को शरण मिलती है.</p><p>महात्मा गांधी जिस रामराज्य की बात करते हैं उसमें वो सभी को समानता की नज़र से दखते हैं.</p><p>डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर ने देश के लिए जो संविधान बनाया है उसके प्रस्तावना में ही समानता की बात को जगह दी गई है.</p><p>जिसे हम वसुधैव कुटुंबकम बोलते हैं- यानी समानता वहीं हमारे देश का मूल आधार है. इस बिल में आज वहीं नहीं दिखता.</p><p>ना तो इसमें स्वामी विवेकानंद सुनाई देते हैं, न तो इसमें महात्मा गांधी सुनाई देते हैं और न ही डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर सुनाई देते हैं.</p><p>अगर इसमें हमें कुछ सुनाई देती हैं वो पुरानी बातें जो मोहम्मद अली जिन्ना कहते थे. मुझे लगता है आज उन्हीं को भाजपा ने पुनर्जीवित किया है.</p><p>भातीय सभ्यता एक प्राचीन सभ्यता है जो अभी और भी आगे बढ़ेगी. इसके कुछ मूल्य हैं और उनके अनुसार चलेंगे तभी हमरा देश एकजुट रहेगा. </p><p>नागरिकता बिल के विरोध में कुछ ऐसा ही आज उत्तर पूर्व में देखने को मिल रहा है. हमारी जड़ों को कमज़ोर करने वाली चीज़ों क हमें विरोध करना चाहिए और वही हो रहा है.</p><figure> <img alt="नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध" src="https://c.files.bbci.co.uk/B27A/production/_110109654_ea19226d-6f0f-464f-ba40-845381c0137e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><h3>’उत्तर-पूर्व के लोग गुलाम नहीं'</h3><p>असमिया होने के नाते मैं इसका विरोध करता हूँ क्योंकि ये बिल असम समझौते का उल्लंघन करता है.</p><p>साल 1985 के असम समझौता हुआ था जिसके तहत राज्य के लोगों की सामाजिक-सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को सुरक्षा प्रदान की गई है.</p><p>एक उत्तर-पूर्वी होने के नाते मैं इसका विरोध करता हूँ क्योंकि ये उत्तर-पूर्व की संस्कृति, भाषा और वहां के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है.</p><p>एक भारतीय होने के नाते इसका विरोध करता हूँ क्योंकि ये संविधान का उल्लंघन है और जिन मूल्यों के आधार पर भारत बना था उसके ख़िलाफ़ है.</p><p><a href="https://www.facebook.com/watch/?v=2390489574395184">https://www.facebook.com/watch/?v=2390489574395184</a></p><p>सरकार ने करोड़ों रुपये ख़र्च कर एनआरसी लागू की लेकिन उसे भी ठीक तरीके से लागू नहीं कर पाए.</p><p>जब तीन करोड़ के लिए बीजेपी एनआरसी ठीक से नहीं ला पाई तो वो 130 करोड़ लोगों के लिए नागरिकता संशोधन बिल लाने की बात कैसे कर सकती है.</p><p>उत्तर-पूर्व के लोग ग़ुलाम नहीं हैं जो आप कुछ भी लाएं उसे स्वीकार कर लें.</p><p>ये मेरी आवाज़ नहीं है बल्कि उन लाखों कॉलेज के छात्रों की आवाज़ हैं जिन पर आज आंसूगैस के गोले छोड़े जा रहे हैं. ये उनका आक्रोश है जिनका सदन के भीतर मैं प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ.</p><p>मैं एक लोकसभा क्षेत्र का सासंद नहीं हूँ बल्कि पूरे असम और उत्तर-पूर्व की आवाज़ यहाँ तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं. क्योंकि उत्तर-पूर्व के बाक़ी दलों ने सरकार के साथ समझौता कर लिया है.</p><p>कई लोग मानते हैं कि ये बिल ग़ैर-संवैधानिक है और आने वाले समय में लोग इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी जाएंगे.</p><p>लोकतंत्र तभी तक जीवित रह सकता है जब तक लोगों का विश्वास उसमें रहे. लेकिन अगर सत्ता पक्ष लोकतंत्र में ही विश्वास नही रखेंगे और अहंकार से मनमानी करेंगे तो लोगों का भी भरोसा लोकतंत्र से उठ जाएगा.</p><p><strong>(गौरव गोगोई युवा कांग्रेस के नेता हैं. उनका ये नज़रिया बीबीसी संवाददाता मानसी दाश से हुई बातचीत पर आधारित है.)</strong></p><hr /><h3>नागरिकता संशोधन विधेयक पर अन्य नज़रिये भी पढ़ें:</h3> <ul> <li>बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद के मेंबर <a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50734406?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">शेषाद्रि चारी का लेख</a> जो कहते हैं कि इससे बड़ा असत्य कुछ और नहीं हो सकता कि नागरिकता संशोधन बिल भारत के उस मूल विचार (आइडिया ऑफ़ इंडिया) के ख़िलाफ़ है जिसकी बुनियाद हमारे स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों ने रखी थी.</li> </ul> <ul> <li>कांग्रेस नेता मनीष तिवारी नागरिकता संशोधन <a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50744183?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">बिल को ग़ैर-संवैधानिक क़ानून बताते हैं</a> जो शीर्ष अदालत के सामने टिक नहीं पाएगा.</li> </ul> <ul> <li>नालसार लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और <a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50736859?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क़ानून विशेषज्ञ फ़ैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं</a> कि संविधान के अनुछेद-14 की ये माँग कभी नहीं रही कि एक क़ानून बनाया जाए.</li> </ul> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50713582?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन का नज़रिया</a> जो ये मानते हैं कि आज़ादी के 72 साल बाद ही सही, लेकिन हिंदुस्तान की संसद ने भी हिन्दू-मुसलमान भेद को क़ानूनी रूप में मान लिया और हिंदुस्तान में ग़ैर-मुसलमानों को ख़ास दर्जा दे दिया.</li> </ul><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a 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