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ऐसे कैसे बनेगा भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था

<figure> <img alt="नरेंद्र मोदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/14C4/production/_108561350_gettyimages-1164774017.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर नरेंद्र मोदी की सरकार को बड़ा झटका लगा है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून तक भारत की आर्थिक विकास दर घटकर महज 5 प्रतिशत रह गई है.</p><p>बीते वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही के दौरान विकास दर 8 प्रतिशत […]

<figure> <img alt="नरेंद्र मोदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/14C4/production/_108561350_gettyimages-1164774017.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर नरेंद्र मोदी की सरकार को बड़ा झटका लगा है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून तक भारत की आर्थिक विकास दर घटकर महज 5 प्रतिशत रह गई है.</p><p>बीते वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही के दौरान विकास दर 8 प्रतिशत थी. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मौजूदा विकास दर पिछली 25 तिमाही में सबसे कम है. </p><p>इससे पहले की तिमाही (जनवरी-मार्च) में विकास दर 5.8 प्रतिशत रही थी.</p><p>इससे पहले, सबसे कम विकास दर वित्तीय वर्ष 2012-13 की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) में दर्ज की गई थी जो महज 4.3 प्रतिशत थी.</p><p>शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछली तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में भारी गिरावट दर्ज की गई. विकास दर पर इस क्षेत्र का सबसे ज़्यादा असर हुआ है.</p><p>मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर घटकर 0.6 प्रतिशत रह गई है. कृषि क्षेत्र में भी गिरावट का दौर जारी है.</p><p><strong>'</strong><strong>सरकार की कमजोर नीतियों का </strong><strong>नतीजा</strong><strong>'</strong></p><p>आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि यह प्रदर्शन नरेंद्र मोदी सरकार की कमजोर नीतियों का परिणाम है. </p><p>जानकार मानते हैं कि आर्थिक मोर्चे पर कमजोर प्रदर्शन के पीछे, नोटबंदी और जीएसटी लागू करने जैसे फ़ैसले असल वजह हैं.</p><p>अर्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला का मानना है कि नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्यमों को ख़त्म कर दिया या फिर दबाव में डाल दिया है.</p><p>वे कहते हैं, &quot;नोटबंदी और जीएसटी की नीतियों का असर तत्काल दिखा, लेकिन जैसे बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है, वैसे ही इसने अर्थव्यवस्था को कमजोर करना शुरू कर दिया था.&quot;</p><p>वहीं वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार एमके वेणु का मानना है, &quot;आंकड़ों से साफ जाहिर होता है कि अर्थव्यवस्था बुरे दौर में प्रवेश कर रही है. ऑटो सेक्टर, कंज्यूमर गुड्स की बिक्री घटी है, ये आंकड़ें उसी का नतीजा हैं.&quot;</p><figure> <img alt="अर्थव्यवस्था" src="https://c.files.bbci.co.uk/4282/production/_108562071_aae2bf7d-1600-4ec4-ae6e-34e9eca39e3b.jpg" height="351" width="624" /> <footer>PTI</footer> </figure><p><strong>क्या मंदी आ गई</strong><strong>?</strong></p><p>इस साल अगस्त की शुरुआत में रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था की सुस्ती के संकेत को देखते हुए मौजूदा वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी में बढ़त के अनुमान को घटाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया था.</p><p>जबकि इससे पहले रिजर्व बैंक ने इस वित्तीय वर्ष में आर्थिक विकास दर में 7 प्रतिशत की बढ़त होने का अनुमान लगाया था.</p><p>ऐसे में सवाल उठता है कि क्या देश की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है?</p><p>भरत झुनझुनवाला इससे इनकार करते हैं और इसका तकनीकी मतलब समझाते हुए कहते हैं, &quot;मंदी तब आती है जब देश की जीडीपी दो तिमाही तक लगातार निगेटिव रहे.&quot;</p><p>वो कहते हैं, &quot;फिलहाल हमारी विकास दर निगेटिव नहीं है. यह पांच प्रतिशत है. तकनीकी रूप से देखा जाए तो यह मंदी नहीं है और इसकी संभावना भी नहीं दिख रही है, क्योंकि अभी भी हमारे सर्विस सेक्टर की विकास दर सकारात्मक है.&quot;</p><p>आंकड़े जारी करने के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने सरकार का बचाव किया और कहा, &quot;हम जिन शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे प्रतीत होता है कि हम मंदी के दौर से गुजर रहे हैं, इसलिए हमें इस बात को लेकर सतर्क रहना चाहिए कि हम क्या बोल रहे हैं.&quot;</p><p>उनका कहना था, &quot;देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब है, लेकिन बावजूद इसके हम पांच प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रहे हैं.&quot;</p> <ul> <li>यह भी पढ़ें | <a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48895282?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मोदी पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था कैसे बनाएंगे </a></li> </ul><figure> <img alt="निर्मला सीतारमण" src="https://c.files.bbci.co.uk/90A2/production/_108562073_gettyimages-1163350842.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>आम लोगों की जेब पर क्या असर पड़ेगा </strong><strong>?</strong></p><p>पिछले छह साल में भारत की विकास दर सबसे निचले स्तर पर पहुंचने से आम लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ेगा?</p><p>इस सवाल के जवाब में भरत झुनझुनवाला कहते हैं कि इसका कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक असर होगा.</p><p>वो कहते हैं, &quot;कुछ चीज़ों के दाम गिरेंगे. ये फायदेमंद होगा, लेकिन नकारात्मक असर ये होगा कि रोज़गार के जो अवसर बचे थे, वो भी बंद हो जाएंगे. मैं यह नहीं कह सकता कि पूरी तरह बंद हो जाएंगे, लेकिन तुलनात्मक रूप से कम हो जाएंगे और बेरोज़गारी बढ़ेगी.&quot;</p><p>भरत झुनझुनवाला यह भी बताते हैं कि आर्थिक विकास दर में कमी आने से सरकार के राजकोषीय घाटे पर भी दबाव पड़ेगा.</p> <ul> <li>यह भी पढ़ें | <a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48479056?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">निर्मला सीतारमण के सामने अर्थव्यवस्था की कौन-कौन सी चुनौतियां हैं?</a></li> </ul><figure> <img alt="जीडीपी" src="https://c.files.bbci.co.uk/DEC2/production/_108562075_gettyimages-1145559327.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>सरकार की नीतियों</strong><strong> पर सवाल</strong></p><p>इस साल मई के महीने में नई सरकार के गठन के बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया था.</p><p>आर्थिक सर्वेक्षण में वर्तमान वित्तीय वर्ष यानी 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर के 7 फ़ीसदी रहने का अनुमान जताया गया था.</p><p>साथ ही भारत को साल 2025 तक 5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए विकास दर निरंतर 8 प्रतिशत रखने की बात कही गई थी.</p><p>इतना ही नहीं, साल 2032 तक सरकार ने 10 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए एक मजबूत और लचीले बुनियादी ढांचे की आवश्यकता पर बल दिया गया है.</p><p>लेकिन सरकार द्वारा जारी आंकड़े पहले जताई गई उम्मीद और अनुमान पर खरे नहीं उतर रहे हैं.</p><p>वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार एमके वेणु इसके लिए सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति को वजह मानते हैं. वो कहते हैं कि सरकार अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए संजीदा नहीं दिखती है. उसका ध्यान अन्य मुद्दों पर ज़्यादा है.</p><p>एमके वेणु कहते हैं, &quot;लोगों को लगा कि नई सरकार में अर्थव्यवस्था की बेहतरी पर ध्यान दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सरकार अपने बड़े जनाधार का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था पर न करके राजनीतिक मुद्दों पर कर रही है. वो हिंदू राष्ट्रवाद, राम मंदिर, कश्मीर, तीन तलाक़ जैसे मुद्दों को तवज्जो दे रही है.&quot;</p><p>आर्थिक मामलों के जानकार भरत झुनझुनवाला का कहना है, ”अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव करना होगा. आयात को कम करना होगा. छोटे उद्योगों को बढ़ाना होगा, जिससे रोजगार पैदा हो.”</p><p>उनका ये भी मानना है कि जीएसटी के मौजूदा स्ट्रक्चर में परिवर्तन लाना ज़रूरी है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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