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राजनाथ सिंह बीजेपी की नई पहेली बन गए हैं?: नज़रिया

<figure> <img alt="राजनाथ सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/5238/production/_107284012_gettyimages-1076549830.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>राजनाथ सिंह बीजेपी की नई पहेली बन गए हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को कैबिनेट मामलों की आठ समितियों का गठन किया.</p><p>इन आठ समितियों में अमित शाह तो शामिल थे लेकिन राजनाथ सिंह सिर्फ़ दो समितियों में शामिल किए गए थे. राजनीतिक और संसदीय मामलों […]

<figure> <img alt="राजनाथ सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/5238/production/_107284012_gettyimages-1076549830.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>राजनाथ सिंह बीजेपी की नई पहेली बन गए हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को कैबिनेट मामलों की आठ समितियों का गठन किया.</p><p>इन आठ समितियों में अमित शाह तो शामिल थे लेकिन राजनाथ सिंह सिर्फ़ दो समितियों में शामिल किए गए थे. राजनीतिक और संसदीय मामलों जैसी अहम समितियों में राजनाथ सिंह को शामिल नहीं किया गया था.</p><p>इस ख़बर के मीडिया में आते ही सरकार में राजनाथ सिंह की भूमिका पर सवाल उठाए जाने लगे. इसके कुछ घंटों बाद ही गुरुवार देर रात कैबिनेट समितियों की एक नई लिस्ट आती है. नए लिस्ट में राजनाथ सिंह को दो से बढ़ाकर छह समितियों में शामिल किया गया. </p><p>यह मोदी-शाह युग में अनहोनी की तरह है.</p><p>भारतीय जनता पार्टी में राजनाथ सिंह की छवि ऐसे शख़्स की है, जिनसे लोगों के मतभेद कम ही हैं. बाहर वाले तो कम से कम यही मानते हैं. हालांकि पार्टी के अंदर ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनकी राय इससे अलग है.</p><p>बीजेपी में ऐसे भी लोग हैं जिनको लगता है कि राजनाथ सिंह भाग्य के धनी हैं. यक़ीन न हो तो कलराज मिश्र से पूछ लीजिए.</p><p>वे कभी यह मानने को तैयार नहीं हुए कि राजनाथ सिंह को जो मिला वह उनकी काबलियत से मिला. वरिष्ठ होते हुए भी वे हर बार पिछड़ गए.</p><p>उन्हें सबसे ज़्यादा बुरा तब लगा जब साल 2002 में राजनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी पहले से तीसरे नंबर पर आ गई और उसके कुछ दिन बाद राजनाथ केंद्रीय मंत्री बन गए.</p><figure> <img alt="राजनाथ सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/2431/production/_107256290_gettyimages-668552760.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><h1>भाग्य या अवसर?</h1><p>कलराज मिश्र जिसे भाग्य कहते हैं उसे आप अवसर भी कह सकते हैं. कई बार ऐसा हुआ कि राजनाथ सिंह सही समय पर सही जगह थे.</p><p>उत्तर प्रदेश में जब कल्याण सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला तो वे इन दो बड़ों की लड़ाई में वाजपेयी का मोहरा बनने को सहर्ष राज़ी हो गए और यह लड़ाई कल्याण सिंह बनाम राजनाथ बन गई.</p><p>ईनाम में राजनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री और बाद में केंद्रीय मंत्री का पद मिला. वे राज्य के नेता से राष्ट्रीय नेता बन गए.</p><p>उनके जीवन में दूसरा अवसर आया, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने का फैसला किया.</p><p>राजनाथ हमेशा से संघ के पदाधिकारियों की नज़र में समन्वयवादी नेता के रूप में उपस्थित थे, जो किसी के लिए चुनौती नहीं बन सकते थे.</p><p>इतना ही नहीं पद और ज़िम्मेदारी देने वालों के तय किए ढर्रे पर चलने को तैयार रहते हैं. उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद एक समय ऐसा भी आया जब लगा कि उनमें और आडवाणी में खुला युद्ध हो सकता है.</p><p>लेकिन राजनाथ सिंह की यह खूबी है कि वे युद्ध के मुहाने तक जाने के बाद कदम पीछे खींच लेते हैं. जीत से ज़्यादा उनका ध्यान इस बात पर होता है कि हार न हो. जब युद्ध होगा ही नहीं तो जय पराजय का सवाल ही कहां है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48538778?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">अब छह अहम समितियों का हिस्सा बने राजनाथ सिंह </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-46782124?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">राजनाथ सिंह एनडीए के लिए क्यों ज़रूरी हैं?</a></li> </ul><figure> <img alt="राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/15002/production/_107281068_d48aac42-d09c-41ba-841b-a15458b20b65.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>’राजनाथ डरपोक हैं'</h1><p>शायद उन्होंने आडवाणी, कल्याण सिंह, शंकर सिंह वाघेला और उमा भारती के हश्र से सबक लिया कि धागे को इतना मत खींचो कि वह टूट जाए. </p><p>उनके विरोधी इस स्वभाव को उनकी कमज़ोरी बताते हैं और कहते हैं कि राजनाथ डरपोक हैं.</p><p>वे डरपोक हों न हों लेकिन यह तो सही है कि वे अब तक सफल रहे हैं. उनकी सफलता में संघ की काफी कृपा है. </p><p>दोनों बार वे राष्ट्रीय अध्यक्ष संघ की मदद से ही बने. दूसरी बार भी उनके सामने अवसर पके आम की तरह टपका.</p><p>संघ की पसंद नितिन गडकरी के दूसरे कार्यकाल के लिए बीजेपी नेतृत्व सहमत नहीं हुआ तो एक बार फिर उन्हें अध्यक्ष पद मिल गया. दूसरी बार अध्यक्ष पद मिलने के बाद पहली बार राजनाथ सिंह को लगा कि अब वे प्रधानमंत्री पद की दावेदारी में आ गए हैं.</p><figure> <img alt="राजनाथ सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/101E2/production/_107281066_58b637c2-0537-4934-aef0-91e36968bf30.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>मोदी को रोक नहीं सके तो साथ हो गए</h1><p>लेकिन उनके सामने नरेन्द्र मोदी पहाड़ की तरह खड़े हो गए. उस समय मोदी और आडवाणी की लड़ाई में उन्होंने आडवाणी को निपटा कर पुराना हिसाब बराबर करने का फ़ैसला लिया. </p><p>इसके लिए उन्हें मोदी के साथ की ज़रूरत थी. मोदी को भी उस समय उनके साथ की ज़रूरत थी. यह दो जरूरतमंदों की दोस्ती थी. </p><p>राजनाथ सिंह को पता था कि वे चाहें भी तो मोदी को रोक नहीं पाएंगे. इसलिए वे साथ हो गए.</p><p>राजनाथ सिंह और संघ ने जयपुर में जो देखा उससे उन्हें पक्का हो गया था कि मोदी अब किसी के रोके रुकने वाले नहीं हैं. हुआ यह कि गुजरात की तत्कालीन राज्यपाल कमला बेनीवाल की पोती की जयपुर में शादी थी, मोदी को भी न्योता था. </p><p>मोदी ने जाने से पहले जयपुर में पार्टी के तीन चार लोगों को फोन किया कि वे साथ चलें क्योंकि वहां ज़्यादातर कांग्रेसी होंगे और उनकी पहचान वाले कम होंगे.</p><p>मोदी वहां पहुंचे और वर-वधु को आशीर्वाद देने स्टेज की ओर बढ़ने लगे तो कई लोगों ने देखा. मोदी-मोदी की कुछ आवाज़ हुई और कुछ ही मिनटों में सब तरफ से मोदी-मोदी का स्वर गूंजने लगा. मोदी खुद भी चौंक गए.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48471709?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">अमित शाह को गृह मंत्रालय, जानिए किस मंत्री को क्या मंत्रालय मिला</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48123178?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या अटल की नक़ल कर रहे हैं राजनाथ</a></li> </ul><figure> <img alt="राजनाथ सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/65A2/production/_107281062_ba2919bd-d466-4a33-a6a3-fb5c72d0a90e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>नंबर दो का दर्जा मिला, पर विश्वास नहीं</h1><p>उसके बाद राजनाथ ने देखा कि पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव आया तो मुखर विरोध सिर्फ सुषमा स्वराज ने किया.</p><p>सुषमा ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘सब पछताओगे. लिखो मेरा डिसेन्ट नोट लिखो. मेरा विरोध लिखित में होना चाहिए.’ उस समय राजनाथ डिगे नहीं.</p><p>उन्हें लगा अभी मोदी के साथ खड़े होकर बाकी को निपटा दो. मोदी को चुनाव के बाद देखेंगे. लेकिन 2014 के चुनाव नतीजे से राजनाथ को निराशा हुई. मोदी ने उस साथ का मान रखा और उन्हें सरकार में नंबर दो दर्जा दिया. पर विश्वास नहीं किया.</p><p>पांच साल तक राजनाथ को यह दर्द रहा कि बाजी उनके हाथ से निकल गई. सरकार बनने के बाद उनके पुत्र के बारे में ख़बर आई तो उन्होंने प्रधानमंत्री से मिलकर नाराज़गी जताई.</p><p>साथ ही इस तरह की ख़बर उनके क़रीबी लोगों से मीडिया में आई कि मंत्रिमंडल के सदस्य ने यह बात फैलाई, जो कि सही नहीं था.</p><figure> <img alt="राजनाथ सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/B3C2/production/_107281064_d88044f7-f400-443c-8aa0-e6e1d8597ea5.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>समिति से </strong><strong>बाहर रखना बड़ा संदेश</strong></p><p>यह बात प्रधानमंत्री को भी पता चल गई. उसके बाद समय-समय पर वे कुछ न कुछ ऐसा बोलते-करते रहे जिससे सरकार और ख़ासतौर से प्रधानमंत्री असहज स्थिति में आ जाएं.</p><p>आख़िरी बात थी इस लोकसभा चुनाव के समय की. जब उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन से बीजेपी को पंद्रह बीस सीटों को नुकसान हो सकता है.</p><p>इस बात में कोई संदेह नहीं है कि मोदी-शाह और राजनाथ के बीच विश्वास की कमी है. राजनाथ सिंह का कांटा उन्हें एक न एक दिन निकालना ही है.</p><p>उसकी शुरुआत गुरुवार को हुई थी, उन्हें कैबिनेट की कई कमिटियों से बाहर रख कर. इसमें सबसे अहम बात है राजनीतिक मामलों की समिति से उन्हें बाहर करना, जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का मुख्यमंत्री, दो बार पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष और कुछ दिन पहले तक देश का गृहमंत्री रहा हो, उसका इस कमिटी से बाहर होना बड़ा संदेश देता है.</p><p>वह संदेश यह है कि नेतृत्व का अब उनपर विश्वास नहीं रहा. जो बात पार्टी के बंद गलियारों में थी वह बाहर आ गई है.</p><p>राजनाथ सिंह ने सुबह इसे स्वीकार कर लिया, पर शाम होते-होते लगता है संघ से उनके संबंध एक बार फिर काम आए.</p><p>मोदी-शाह के युग में पार्टी में शायद ही कोई ऐसा फैसला हुआ जिसे चौबीस घंटे से कम समय में बदलना पड़ा हो. यह राजनाथ की सिंह की जीत है या आने वाली हार की मुनादी?</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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