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किरोस्तामी के सिनेमा की सैद्धांतिकी

अजित राय संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी आज यदि ईरान का सिनेमा दुनियाभर में प्रतिष्ठित है, तो उसमें अब्बास किरोस्तामी (1940-2016) का बड़ा योगदान है. अमेरिकी फिल्मकार क्वेंटिम तारंतीनों और आॅस्ट्रिया के माइकल हेनेके से लेकर फ्रांस के ज्यां लुक गोदार तक किरोस्तामी के प्रबल प्रशंसकों में हैं. दुनिया में सिनेमा का शक्तिपीठ माना जानेवाला न्यू […]

अजित राय
संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी
आज यदि ईरान का सिनेमा दुनियाभर में प्रतिष्ठित है, तो उसमें अब्बास किरोस्तामी (1940-2016) का बड़ा योगदान है. अमेरिकी फिल्मकार क्वेंटिम तारंतीनों और आॅस्ट्रिया के माइकल हेनेके से लेकर फ्रांस के ज्यां लुक गोदार तक किरोस्तामी के प्रबल प्रशंसकों में हैं. दुनिया में सिनेमा का शक्तिपीठ माना जानेवाला न्यू याॅर्क का म्यूजियम ऑफ माॅडर्न आर्ट्स 2007 में उनकी फिल्मों पर विशेष आयोजन कर चुका है.
कान फिल्मोत्सव में उन्हें ‘टेस्ट ऑफ चेरी’ (1997) के लिए बेस्ट फिल्म का ‘पॉम दि ओर’ पुरस्कार मिल चुका है. वे कई बार कान की जूरी में रह चुके हैं. उनकी फिल्म ‘सर्टीफाइड कॉपी’ (2010) के लिए फ्रेंच अभिनेत्री जुलिएट बिनोशे को कान में बेस्ट एक्ट्रेस का पुरस्कार मिला है. अब्बास किरोस्तामी की फिल्में दुनिया के गंभीर सिनेमा केंद्रों और सिलेबस का हिस्सा बन चुकी हैं.
किरोस्तामी की पहली फीचर फिल्म ‘रिपोर्ट’ (1977) एक ऐसे सरकारी मुलाजिम का पक्ष रखती है, जिस पर रिश्वत लेने का आरोप है. धीरे-धीरे कई ऐसी चीजें सामने आती हैं कि दर्शक अपराधी के प्रति सहानुभूति रखने लगते हैं. उसी तरह ‘क्लोज-अप’ में एक नौजवान पर मुकदमा चलता है कि उसने खुद को ईरान का चर्चित फिल्मकार मखमलबॉफ बता कर एक अमीर परिवार को फिल्म में काम देने का झांसा देकर ठगने की कोशिश की. सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म में किरोस्तामी उस युवक की मानसिक परिस्थितियों का ऐसा सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं, दर्शकों को उससे सहानुभूति होने लगती है.
अब्बास किरोस्तामी को जिस फिल्म ने दुनियाभर में प्रतिष्ठित किया वह है- ‘ह्वेयर इज द फ्रेंड्स होम’ (1987). एक आठ साल का बच्चा गलती से अपने स्कूल के सहपाठी की नोटबुक उठा लाता है, जो पड़ोस के गांव में कहीं रहता है. अब वह उसकी तलाश में निकल पड़ता है, क्योंकि यदि नोटबुक उसे नहीं मिली और उसने होमवर्क नहीं किया, तो अगले दिन उसका सहपाठी स्कूल से निकाल दिया जायेगा. बेहद सरल-सी लगनेवाली इस पटकथा में किरोस्तामी ईरान की पारंपरिक ग्रामीण संस्कृति का सुंदर कोलाज बनाते हैं. इस फिल्म में किरोस्तामी के सिनेमा की सारी विशेषताओं के बीज देखे जा सकते हैं, जो सिनेमा की नयी सैद्धांतिकी बने.
ईरान (तेहरान) में 22 जून, 1940 को जन्मे अब्बास किरोस्तामी ने पेरिस के अस्पताल में आंतों के कैंसर के कारण चार जुलाई, 2016 को आखिरी सांस ली. उनकी छोटी-बड़ी 40 फिल्में विश्व सिनेमा की अनमोल धरोहर हैं, जिनमें से छह को तो महान फिल्मों की सूची में शामिल किया गया है. किरोस्तामी का सिनेमा कम-से-कम चीजों और डाॅक्यूमेंट्री शैली में जीवन और मृत्यु के दार्शनिक सवालों की पड़ताल करता है.
फिल्म ‘टेस्ट ऑफ चेरी’ (1997) में किरोस्तामी ने अनूठा विषय उठाया है. मिस्टर बादी आत्महत्या करने के लिए अपनी कार से तेहरान के बाहर किसी गांव में जाते हैं. उन्हें ऐसा साथी चाहिए, जो मरने के बाद उनकी लाश को धार्मिक तरीके से दफना दे. पहले वे एक कुर्दिश सिपाही को नियुक्त करते हैं, जो बीच रास्ते में ही भाग जाता है. फिर उन्हें एक अफगानी मिलता है, पर उसे धार्मिक कारणों से ऐतराज है. तीसरा इसलिए राजी होता है कि उसे अपने बीमार बेटे के इलाज के लिए पैसों की जरूरत है.
रात में तेज आंधी-तूफान और गरज के साथ बारिश होने लगती है. एक लंबे ब्लैक आउट के बाद हम देखते हैं कि दीवार तोड़ कर अब्बास किरोस्तामी बाहर आते हैं और उनके सहयोगी ‘टेस्ट ऑफ चेरी’ फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं.
आवाजों से दृश्य बनाने में उन्हें बड़ा मजा आता है. फिल्म ‘दि विंड्स विल कैरी अस’ (1999) में तेरह-चौदह चरित्र कभी नहीं दिखते, केवल उनकी आवाजें सुनायी देती हैं.
अपनी अंतिम दो फिल्में उन्होंने ईरान से बाहर बनायी. ‘सर्टीफाइड कॉपी’ में वे इटली के सुदूर गांव में गये, जहां एक फ्रेंच महिला (जुलिएट बिनोशे) आर्ट गैलरी चलाती हैं.
उसके आमंत्रण पर एक ब्रिटीश कला समीक्षक (विलियम शीमेल) कला में नकल पर भाषण देने आते हैं. दोनों लगभग पति-पत्नी की तरह चौबीस घंटे साथ बिताते हैं. किरोस्तामी का दर्शन है कि हमारी दुनिया में मौलिक या असली कुछ नहीं होता. जो है, वह किसी न किसी की कॉपी है, जिसे अपने अनुभव से हम सर्टीफाई करते हैं.
किरोस्तामी की अंतिम फिल्म ‘लाइक समवन इन लव’ (2012) जापान में एक प्रेमकथा के जरिये हमारी आधुनिक सभ्यता पर कुछ तीखे सवाल खड़े करती है.

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