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झारखंड : कोख व कुल की रक्षा करती हैं मां कुलेश्वरी, बच्चे की तिरछी आंख भी कर देती हैं ठीक

झारखंड के चतरा जिले में कौलेश्वरी पहाड़ पर अवस्थित है मां कुलेश्वरी का मंदिर. माता पर लोगों की गहरी आस्था है. मां कुलेश्वरी कोख व कुल की रक्षा करती हैं. मान्यता है कि बच्चे की तिरछी आंख भी मां की कृपा से ठीक हो जाती है. कहते हैं पहाड़ पर स्थित सरोवर का जल कभी भी नहीं सूखता.

चतरा, दीनबंधु : चतरा के हंटरगंज प्रखंड के कौलेश्वरी पहाड़ पर स्थित है मां कुलेश्वरी का मंदिर. मां कुलेश्वरी को माताओं की कोख और कुल की रक्षा करनेवाली भी कहा जाता है. दुर्गा सप्तशती में भी ”रक्षेत्कुलेश्वरी” का जिक्र किया गया है. यह एक शक्तिपीठ है. इस जगह को कोल्हुआ पहाड़, कौलेश्वरी पर्वत व मां कुलेश्वरी पहाड़ के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं, मां कुलेश्वरी उसे अवश्य पूरा करती हैं. विशेष रूप से श्रद्धालु यहां संतान प्राप्ति की मन्नत मांगने आते हैं. मन्नत पूरी होने के बाद भक्त अपने संतान के साथ आकर मां की पूजा-अर्चना करते हैं और मुंडन संस्कार कराते हैं. ऐसी मान्यता है कि यदि किसी बच्चे की आंख तिरछी हो जाये तो मां कुलेश्वरी से मन्नत मांगने पर ठीक हो जाता है. संतान की आंख ठीक होने पर भक्त माता की नेत्र के बराबर सोना अथवा चांदी से बना आंख चढ़ाते हैं.

तीन धर्मों का है समागम स्थल

हंटरगंज प्रखंड मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर पूर्व की दिशा में अवस्थित है ख्याति प्राप्त सिद्ध पीठ मां कुलेश्वरी का मंदिर. कौलेश्वरी पहाड़ की चोटी पर तीन धर्मों का समागम सनातन, बौद्ध व जैन धर्म का संगम स्थल माना जाता है. महाभारत काल में यह स्थल राजा विराट की राजधानी थी. धर्मपरायण राजा विराट ने ही मां कुलेश्वरी की प्रतिमा को पर्वत पर स्थापित किया था. महाकाव्य काल एवं पुराणकाल से भी इस पवित्र स्थल का रिश्ता जुड़ा हुआ है. सनातनी यहां पूजा के साथ शादी व बच्चों का मुंडन संस्कार कराने आते हैं. बौद्धों के लिए कुलेश्वरी पहाड़ भगवान बुद्ध की तपोभूमि के साथ ही मोक्ष प्राप्त करने का एक पवित्र स्थल रहा है. ”डॉ एमए स्टिन” व ”जैन विद्वानों” का मानना है कि इस पर्वत शिखर पर जैनियों के 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ जी का जन्म हुआ था. उन्होंने यहीं साधना की थी. मंदिर के पास एक गुफा है, जिसमें 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा देखी जा सकती है. उनकी इस प्रतिमा के गले में सांप लिपटे हुए हैं. महापुराण रचयिता ”आचार्य जनसेन” ने भी इसे अपना साधना स्थल बनाया था. पर्वत पर कई स्थानों पर जैन व बौद्ध धर्म से संबंधित कई आकृतियों पत्थरों में उकेरी हुई दिखती हैं.

महाभारतकालीन शिव मंदिर

मां कुलेश्वरी पहाड़ पर महाभारतकालीन शिवलिंग है. माना जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान भगवान शिव की आराधना की थी. पांडव पांचाली के साथ इस पहाड़ पर अज्ञातवास में थे. वर्तमान सरोवर में सभी स्नान कर भगवान शिव को जलाभिषेक किया करते थे. शिवलिंग की जगह अब एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जा चुका है. वर्तमान समय में श्रद्धालु इस शिव मंदिर में रात भर भजन कीर्तन करते हैं. भगवान शिव पर जलाभिषेक के लिए पहाड़ पर ही एक प्राकृतिक सरोवर है. श्रद्धालु जिसमें स्नान कर भीगे बदन ही जल लेकर भगवान शिव को अर्पित करते हैं.

  • चतरा के कौलेश्वरी पहाड़ पर अवस्थित है मां कुलेश्वरी का मंदिर

  • दुर्गा सप्तशती में भी ”रक्षेत्कुलेश्वरी” का जिक्र किया गया है

  • मान्यता है कि बच्चे की तिरछी आंख भी मां की कृपा से ठीक हो जाती है

  • पहाड़ पर स्थित सरोवर का जल कभी भी नहीं सूखता

  • कौलेश्वरी पहाड़ पर पहुंचने के लिए एक अरब की लागत से बनेगा रोपवे

ऐसे पहुंचें माता के दर्शन के लिए

मां कुलेश्वरी पर्वत जाने के लिए दो रास्ते हैं. चतरा के जोरी प्रखंड के बानसिंह से गया जानेवाले एनएच से दाहिने मुड़कर दंतार गांव होते हुए नेढ़ो नदी पार कर पहुंचा जा सकता है. दूसरा रास्ता जिला के हंटरगंज प्रखंड मुख्यालय से दाहिने ओर केदली गांव होते हुए निरंजना अथवा फल्गु नदी पार करते हुए सीधे कोल्हुआ पहाड़ जाया जा सकता है. यह गया अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से 45 किलोमीटर और डोभी (जीटी रोड) से मात्र 25 किलोमीटर दूर है. कौलेश्वरी पहाड़ हंटरगंज से 15 किलोमीटर और चतरा मुख्यालय से 37 किलोमीटर दूर है. यह पहाड़ समुद्र तल से 1575 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित है. हंटरगंज के कोल्हुआ पहाड़ स्थित मां कुलेश्वरी मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे निर्माण की योजना है. पर्यटन विभाग इसकी मंजूरी दे चुका है. पर्यटन विभाग और रोपवे निर्माण करनेवाली कंपनी के सदस्यों ने सर्वे का काम पूरा कर लिया है.

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