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कोलकाता : हॉग से पूर्व रेलवे की प्रति वर्ष 25 करोड़ की बचत
42 ट्रेनें हॉग पद्धति में परिवर्तित कोलकाता : पूर्व रेलवे ने 42 ट्रेनों को हेड ऑन जेनरेशन (हॉग) पद्धति में परिवर्तित किया है. इस पद्धति से सालाना 25 करोड़ रुपये की बचत होगी. इन 42 ट्रेनों में बिजली आपूर्ति के लिए अलग से जेनरेटर रखने की जरूरत नहीं होगी. अत्याधुनिक इंजन में लगाये गये कंवर्टर्स […]
42 ट्रेनें हॉग पद्धति में परिवर्तित
कोलकाता : पूर्व रेलवे ने 42 ट्रेनों को हेड ऑन जेनरेशन (हॉग) पद्धति में परिवर्तित किया है. इस पद्धति से सालाना 25 करोड़ रुपये की बचत होगी. इन 42 ट्रेनों में बिजली आपूर्ति के लिए अलग से जेनरेटर रखने की जरूरत नहीं होगी. अत्याधुनिक इंजन में लगाये गये कंवर्टर्स के माध्यम से ओवर हेड उपकरण से बिजली की आपूर्ति पूरे ट्रेन में होगी. हॉग पद्धति से ही ट्रेनों में एसी, लाइट व पंखे चलेंगे. जेनरेटर नहीं चलने से प्रदूषण पर रोक लगेगी. जानकारी के अनुसार, पूर्व रेलवे ने तीन और एलएचबी रेक को हेड ऑन जेनरेशन में परिवर्तित किया है.
12367/12368 (भागलपुर- आनंद विहार) विक्रमशिला एक्सप्रेस के तीन रेक में से दो और 12337/12338 की चार रेक में से तीन रेक, 12339/12340 , 12341/12342 (हावड़ा-बोलपुर शांतिनिकेतन एक्सप्रेस, हावड़ा-धनबाद कोलफील्ड एक्सप्रेस, हावड़ा-आसनसोल अग्निवीणा एक्सप्रेस) और 13011/13012 (हावड़ा-मालदा इंटरसिटी एक्सप्रेस) और 53047/53048 (विश्वभारती फास्ट पैसेंजर) को हॉग सिस्टम में बदला है.
क्या है हॉग सिस्टम: डब्ल्यू एपी-7 व 5 मॉडल के इंजन काफी अत्याधुनिक हैं. इसकी खासियत है कि इस इंजन को जिस ट्रेन में लगाया जाता है, उस ट्रेन में जेनरेटर रखने की जरूरत नहीं पड़ती है. ओवरहेड तार के जरिये ट्रेन के डिब्बों में बिजली की आपूर्ति होती है. एक घंटे तक एक जेनरेटर चलाने पर 60 लीटर डीजल की खपत होती है. कई दूरगामी ट्रेनों में दो जेनरेटर लगाये जाते हैं. ऐसे में डीजल की खपत दोगुनी होती है.
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